SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० निरुक्त कोश ४७. अट्टकर (अर्थकर) अर्थान्—हिता हितप्राप्तिपरिहारादीन् राजादीनां दिग्यात्रादौ तथोपदेशतः करोतीत्यर्थकरः। (स्थाटी प २३३) ___ जो अर्थ हित की प्राप्ति और अहित के परिहार का उपदेश करता है, वह अर्थकर/मंत्री/नैमित्तिक है । ४८. अट्ठजात (अर्थजात) अर्थेन अथितया जातं कार्य यस्य सोऽर्थजातः । अर्थः प्रयोजनं जातो ऽस्येत्यर्थजातः। ___ (व्यभा ४/२ टी प ४६) ___जिसका अर्थ प्रयोजन सिद्ध हो गया है, वह अर्थजात है। अपने अर्थ/प्रयोजन के लिए जिसका कार्य निष्पन्न हो गया, वह अर्थजात (भिक्षु) है। ४६. अणंतघाइ (अनन्तघातिन्) अनन्ते-ज्ञानदर्शने हन्तुं शीलं येषां तेऽनन्तघातिनः। (उशाटी प ५८०) जो अनन्त--ज्ञान-दर्शन का हनन करता है, वह अनन्तघाति है। ५०. अणंतनाण (अनन्तज्ञान) अणंतं जेण नज्जइ णाणेणं तं अणंतनाणं । (दजिचू पृ ३०६) जिस ज्ञान के द्वारा अनन्त को जाना जाता है, वह अनन्तज्ञान ५१. अणंतहितकाम (अनन्तहितकाम) अणंतं हितं कामयतीति अणंतहितकामए। (दजिचू पृ ३३४) जो अनन्त हित/मोक्ष की कामना करता है, वह अनन्तहितकाम ५२. अणंताणुबंधि (अनन्तानुबन्धिन् ) अनन्तं संसारमनुबध्नन्तीत्येवंशीला अनन्तानुबन्धिनः । (प्रज्ञाटी पृ ४६८) जो अनन्त संसार का अनुबन्ध करते हैं, वे अनन्तानुबंधी (कषाय) हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy