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________________ निरुक्त कोश अधीयते वा–पठ्यते आधिक्येन स्मर्यते गम्यते वा तदित्यध्ययनम् । (स्थाटी प ५) जो पढ़ा जाता है, अधिक स्मृत और ज्ञात किया जाता है, वह अध्ययन है। अधीयन्ते-जायन्ते यैस्तान्यध्ययनानि । (सूर्यटी प १४६) जिनसे जाना जाता है, वे अध्ययन हैं। ४१. अज्झाक्य (अध्यापक) अध्यापयतीति अध्यापकः । (उचू पृ २०७) जो अध्यापन कराता है, वह अध्यापक है । ४२. अज्झोयर (अध्यवतर) अहियं उदरं अज्झोयरं। (जीतभा १२८३) अधि--आधिक्येनावपूरणं स्वार्थदत्ताधिश्रयणादेः साध्यागमनमवगम्य तद्योग्यभक्तसिद्ध्यर्थं प्राचुर्येण भरणमध्यवपूरः। (प्रसाटी प १४४) पकाते समय (साधुओं के निमित्त) अधिक ऊरना/डालना अध्यवतर (दोष) है। ४३. अज्झोवण्ण (अध्युपपन्न) अधिकं उपपण्णा अज्झोवण्णा । (सूचू १ पृ ७०) जो अत्यधिक उपपन्न/आसक्त हैं, वे अध्युपपन्न हैं। ४४. अट्ट (आत) ऋतं-दुःखं तन्निमित्तं दुरझवसातो अट। (दअचू पृ १६) जो अध्यवसाय ऋत/दु:ख का कारण है, वह आत्तं (ध्यान) है। ४५. अट्ट (अट्ट) अट्यते-- अतिक्राम्यतेऽनेनेत्यट्टः । (भटी प १४३१) जिसके द्वारा गमन-आगमन किया जाता है, वह अट्ट/आकाश है । ४६. अट्ट (अर्थ) इयर्ती इच्छति वा अर्थः। (उचू पृ १६७) जो प्राप्त किया जाता है, वह अर्थ/धन है। जिसकी इच्छा की जाती है, वह अर्थ/धन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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