SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 336
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०५ निरक्त कोश १६१८. सहिय (सहित) सम्यग् ज्ञानक्रियाभ्यां सहितः। जो हित/सम्यक् ज्ञान और क्रिया से युक्त है, वह सहित/ मुनि है। सह हितेन-आयतिपथ्येन अर्थादनुष्ठानेन वर्तत इति सहितः । (उशाटी प ४१६) ___ जो हित/भावी कल्याणकारी प्रवृत्ति से युक्त है, वह सहित/ मुनि है। १६१६. साइम (स्वाद्य) साएइ गुणे तओ साई। (आवनि १५८८) सादयति ---विनाशयति स्वकीयगुणान् माधुर्यादीन् स्वाद्यमानमिति स्वादिमम् । (प्रसाटी प ५१) स्वाद लेते लेते जिसके माधुर्य आदि गुण विनष्ट हो जाते हैं, वे स्वादिम हैं। स्वाद्यत इति स्वादिमम् । (आटी पृ २६४) जिसका आस्वाद लिया जाता है, वह स्वादिम है। १६२०. साउणिय (शाकुनिक) शकुनेन-श्येनलक्षणेन चरन्ति शकुनान् वा घ्नन्तीति शाकुनिकाः । (अनुद्वामटी प ११९) जो बाज पक्षी से शिकार करवाता है, वह शाकुनिक है । जो पक्षियों को मारता है, वह शाकुनिक है। १. तथा स्वादयति रसादीन् गुणान् गुडादिद्रव्यं कर्तृसंयमगुणान् वा यतस्ततः स्वादिम, हेतुत्वेन तदेवास्वादयतीत्यर्थः। ......न चैतन्निरुक्तं कल्पनामात्रं स्वकीयमिति ज्ञेयं । (प्रसाटी प ५०, ५१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy