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________________ निरक्त कोश २५९ १३६७. वासग (वासक) वासंतीति वासगा। (आचू पृ २०४) ___जो शब्द करते हैं, वे वासक द्वीन्द्रिय आदि जंतु हैं । १३६८. वासहर (वर्षधर) वर्ष-क्षेत्र विशेष धारयतो-व्यवस्थापयत इति वर्षधरः। (स्थाटी प ६५) जो वर्ष/क्षेत्रविशेष की व्यवस्था करता है सीमा करता है, वह वर्षधर (पर्वत) है। १३६६. वासावास (वर्षावास) वरिसासु चत्तारि मासा एगत्थ अच्छंतीति वासावासो। (दश्रुचू प ५२) वर्षाकाल में जहां चार मास तक एक स्थान पर रहा जाता है, वह वर्षावास है। १३७०. वाह (वाह) वाहतीति वाहः। (सूचू १ पृ.७१) जो वाहन को चलाता है, वह वाह/गाड़ीवान् है । १३७१. विउल (विपुल) 'पुल महत्त्वे' विशेषेण पुलानि विपुलानि । (सूचू २ पृ ४५०) जो अनेक हैं, विशिष्ट हैं, वे विपुल हैं। १३७२. विकहा (विकथा) विणट्टा कहा विकहा। (दअचू पृ ५८) जो कथा विनाश की ओर ले जाती है, वह विकथा है । १३७३. विक्किया (विक्रिया) विविधा क्रिया विक्रिया। (आवहाटी १ पृ १८५) जो विविध प्रकार की क्रिया है, वह विक्रिया है । विरुद्धा विरूपा वा कथा विकथा। (उशाटी प ६१३) विसंवादी और विसंगत कथन विकथा है । १. वास-शब्दे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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