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________________ २५८ १३६२. वाम ( व्याम ) व्यामयन्ते - परिच्छिद्यन्ते रज्ज्वादि अनेनेति व्यामः ।" (राटी पृ १३ ) जिससे रज्जु आदि का प्रमाण जाना जाता है, वह व्याम / मापविशेष है । १३६३. वामवट्ट (वामवर्त्त ) वामं विवट्टतित्ति वामवट्टो " ( निघू ४ १ २५८ ) जो वाम / प्रतिकूल वर्तन करता है, वह वामवर्त्त / विपरीत कारी है । १३६४. वायग (वाचक) वायेंति सिस्साणं कालियपुव्वसुतं ति वातगा । जो शिष्यों को कालिकपूर्वश्रुत की वाचना प्रदान करते हैं, वे वाचक / आचार्य हैं । गुरुण्णिहाणे वा सिस्सभावेण वाइतं सुतं जेहि ते वायगा । निरुक्त कोश १३६५. वालव ( व्यालप) गुरु के सानिध्य में जिन्होंने शिष्यभाव से वाचना को सुना है, वे वाचक हैं | १३६६. वास (वर्ष) व्यालान् — भुजङ्गान् पान्तीति व्यालपाः । (प्रटी प ३७ ) जो व्याल / सर्पों का पालन करते हैं, वे व्यालप / सपेरे हैं । वर्षतीति वर्षः । Jain Education International जो बीतता है, वह वर्ष है । ( नंचू पृ 2 ) For Private & Personal Use Only १. तिर्यग् बाहुद्वयं प्रसारणप्रमाणो व्यामः । (राटी पृ १३ ) २. एहि भणितोति वच्चति वच्चसु भणिओ त्ति तो समुल्लियति । जं जह भणितो तं तह, अकरेंतो वामवट्टो उ ॥ ( निभा ६२११ ) (उच् पृ १६२ ) www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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