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________________ २२८ निरुक्त कोश १२०६. मयंगा (मृतगङ्गा) मृतेव मृता विवक्षितभूदेशे तत्कालाप्रवाहिणी सा चासौ गङ्गा च मृतगङ्गा। (उशाटी प ३५४) जो विवक्षित भूभाग में मृत/अप्रवाहित है, वह गंगा मृतगंगा है। १२१०. मयण (मदन) मदयतीति मदनः। (दटी प ८५) जो मत्त बनाता है, वह मदन/काम है । १२११. मरण (मरण) मरतीति मरणं । (आचू पृ ६७) म्रियते येन तद् मरणम् । (सूचू १ प ६९) जिसके द्वारा प्राणी मृत्यु को प्राप्त होता है, वह मरण/ मृत्यु है। १२१२. मरालि (मरालि) म्रियत इव शकटादौ योजितो राति च--ददाति लत्तादि लीयते च भुवि पतनेनेति मरालिः। (उशाटी प ४६) ___ जो बैल गाड़ी में जोते जाने पर मृत-सा हो जाता है, लात मारता है, भूमी पर गिर पड़ता है, वह मरालि दुष्ट बैल है । १२१३. मल (मल) मृद्नाति' तमिति मलम् । (उचू पृ १३४) जिसे साफ किया जाता है, वह मल है। १. मृद्- to remove (आप्टे पृ १२८६) २. 'मल' का अन्य निरुक्त-- मलते धारयति कायं मलं, मृज्यते वा । (अचि पृ १४२) जो शरीर को टिकाये रखते हैं, वे मल/वात-पित्त-कफ हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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