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________________ २१८ ११५७. भवसिद्धिय (भवसिद्धिक) भविष्यति भवा-- भाविनी सा सिद्धि: - निर्वृतिर्येषां ते भवसि - ( स्थाटी प२८ ) १.१५८. भवोवग्गह (भवोपग्रह ) द्धिकाः । T जिन्हें भव / भविष्य में सिद्धि प्राप्त होगी, वे भवसिद्धिक हैं । t. भवे - मनुष्यभवे उप- - समीपेन गृह्यते - अवष्टम्भ्यते यैस्तानि भवोपग्रहाणि । ( प्रज्ञाटी प ६०३ ) ११५६. भागहार (भागहार ) जिनके कारण (केवली को) मनुष्यभव में रहना पड़ता है, वे भवोपग्राही / अघाति कर्म हैं । भागं हरतीति भागहारः । है । ११६०. भायण (भाजन ) ( व्यभा २ टीप ८ ) जो भाग का हरण करता है, वह भागहार (भाग / गणित ) भाजनाद् विश्वस्याश्रयणाद् भाजनम् । जो विश्व के लिए भाजन / आश्रय का भाजन / आकाश है । ११६१. भार (भार) बिर्भात भ्रियते वाऽसौ भारः । ' जो भारी करता है, वह भार है । जो ढोया जाता है, वह भार है । निरुक्त कोश ११६२. भारही (भारती ) अत्यभारं धरेतीति भारती । ( भटी पृ १४३१ ) कार्य करता है, वह Jain Education International १. मार - गुरुत्वपरिमाणे तद्वति द्रव्ये । ( वा पृ ४६५२ ) २. 'भारती' के अन्य निरुक्त ( सुचू १ पृ १३३ ) For Private & Personal Use Only ( अचू पृ १५९ ) भरतानां नटानामियं देवता भारती । भरतानां ऋत्विजां स्तुतिलक्षणा तैरवतारित्वात् इति याज्ञिकाः । (अचि पृ ५६ ) www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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