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________________ निरुक्त कोश २११ ब्रह्म अणतीति ब्राह्मणः । (सूचू २ पृ ३३५) जो ब्रह्म/आत्मा में रमण करता है, वह ब्राह्मण/मुनि है । ११२०. बंभण (ब्राह्मण) ब्रह्मणोऽपत्यानि ब्राह्मणाः। जो ब्रह्म की सन्तान हैं, वे ब्राह्मण हैं। बृहन्मनस्त्वाद्वा ब्राह्मणाः । (सूचू २ पृ ४४२) जिनका मन विशाल/उदार है, वे ब्राह्मण हैं । ११२१. बंभयारि (ब्रह्मचारिन्) ब्रह्मण ब्रह्म वा चर्य चरतीति ब्रह्मचारी। (उचू पृ २०७) जो ब्रह्म/संयम का आचरण करता है, वह ब्रह्मचारी है। ११२२. बंभव (ब्रह्मवित्) ब्रह्म -अशेषमलकलङ्कविकलं योगिशर्म वेत्तीति ब्रह्मवित् । । (आटी प १५३) जो ब्रह्म शाश्वत सुख को जानता है, वह ब्रह्मवित् है । ११२३. बहिद्ध (दे) धर्माद् बहिर्भवतीति बहिद्धं । (सूचू १ पृ १७७) जो धर्म से बहिर्भूत है, वह बहिद्ध/मैथुन है । ११२४. बहुरय (बहुरत) बहुषु समयेषु रता-आसक्ता बहुभिरेव समयैः कार्य निष्पद्यते नैकसमयेनेत्येवंविधवादिनो बहुरताः। (औटी पृ २०१) ____जो बहुत समयों/क्षणों में कार्य की निष्पत्ति मानते हैं, वे बहुरतवादी हैं। ११२५. बाल (बाल) द्वाभ्यां कलितो बालः,' कार्याकार्यानभिज्ञो वा बालः। (दश्रुचू प ३) १. जमाली (ई० पू० छठी) का बहुचर्चित सिद्धान्त । २. द्वाभ्यां-बुभुक्षया तृषा वाऽऽगलितो बालः । (बृटी पृ ६४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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