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________________ २१० निरुक्त कोश १११४. फासुय (प्रासुक) प्रगता असवः--असुमन्तः प्राणिनो यस्मात् तत्प्रासुकम् । (स्थाटी प १०३) जो असु/जीव रहित है, वह प्रासुक/अचित्त है । १११५. बंध (बन्ध) बज्झति जेण सो बंधो। (आचू पृ १७१) जिससे प्राणी बंधता है, वह बंध/बंधन है । १११६. बंधु (बन्धु) बध्नातीति बंधु ।' (उचू पृ ११२) जो (स्नेह से) बांधता है, वह बंधु है । १११७. बंभ (ब्रह्मन्) बृहति बृहितो वा अनेनेति ब्रह्म। (उचू पृ २०७) जो संयम का बृहण पोषण करता है, वह ब्रह्म/ब्रह्मचर्य है । १११८. बंभचेर (ब्रह्मचर्य) ब्रह्म चर्यते –अनुष्ठीयते यस्मिन् तद् ब्रह्मचर्यम् ।' (सूटी २ प ११६) जहां ब्रह्म सत्य, संयम का आचरण किया जाता है, वह ब्रह्मचर्य/निर्ग्रन्थ प्रवचन है। १११६. बंभण (ब्राह्मण) अट्ठारसविधं बंभं धारयतीति बंभणो'। (दअचू पृ २३४) जो अठारह प्रकार से ब्रह्मचर्य को धारण करता है, वह ब्राह्मण मुनि है। १. बघ्नाति स्नेहं बन्धुः । (अचि पृ १२७) २. ब्रह्म-सत्य तपोभूतदयेन्द्रियनिरोधलक्षणं तच्चर्यते—अनुष्ठीयते ___ यस्मिन् तन्मौनीन्द्रप्रवचनं ब्रह्मचर्यमित्युच्यते । (सूटी २ प ११६) ३. ब्रह्म वेदं शुद्धं चैतन्यं वा वेत्त्यधीते वा ब्राह्मणः । (आप्टे पृ ११७७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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