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________________ निरुक्त कोश २०५ १०८६. पुग्गल (पुद्गल) पूरणगलणतणतो पुग्गलो। (अनुद्वाचू पृ २२) द्रव्याद् गलन्ति–वियुज्यन्ते किञ्चित्तु द्रव्यं स्वसंयोगतः पूरयन्ति -पुष्टं कुर्वन्ति पुद्गलाः। (प्रसाटी प २८६) जो द्रव्य से गलित वियुक्त होते हैं, और अपने संयोग से द्रव्य को पुष्ट करते हैं, वे पुद्गल हैं। १०८७. पुढवी (पृथिवी) प्रथते पृथति वा तस्यां पृथिवी । (उचू पृ १८५) जो प्रथित/विस्तृत है, वह पृथ्वी है। जिस पर सब फैले हुए हैं, वह पृथ्वी है। १०८८. पुण्ण (पुण्य) पुणाति–सोधयतीति पुण्णं । (दअचू पृ २६१) जो पवित्र/विशुद्ध करता है, वह पुण्य है । १०८६. पुण्णमासी (पौर्णमासी) पूर्णो माः चन्द्रमाः अस्यामिति पौर्णमासी'। (जीटी प ३०५) जिस रात्री में मा/चांद पूर्ण हो, वह पौर्णमासी/पूर्णिमा १०९०. पुत्त (पुत्र) पुनाति पितरं पाति वा पितृमर्यादामिति पुत्रः । (स्थाटी प ४६३) १. पुत् वर्द्धनशीलः गलो ह्रासवांश्चेति पुद्गलः । (शब्द ३ पृ १७०) २. पृथुत्वात् पृथ्वी । (अचि पृ२०७) ३. 'पौर्णमासी' का अन्य निरुक्त पूर्णमास इयमिति पौर्णमासी। (अचि पृ ३३) जो महीने को पूर्ण करती है, वह पौर्णमासी है। ४. 'पुत्र' का अन्य निरुक्तपुन्नाम्नो नरकात् त्रायते इति पुत्रः। (अचि पृ १२३) जो पुत् नामक नरक से रक्षा करता है, वह पुत्र है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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