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________________ निरक्त कोश १९३ जो पापकारी प्रवृत्ति करने वाले लोगों का पालन/संरक्षण करती है, वह पल्ली/छोटा गांव है। १०१६. पल्हायणिज्जा (प्रह्लादनीया) प्रह्लादयतीति प्रह्लादनीया। (प्रज्ञाटी प ३६६) जो प्रह्लाद/आनन्द उत्पन्न करती है, वह प्रह्लावनीया है। १०२०. पवंचा (प्रपञ्चा) प्रपञ्चते-व्यक्तीकरोति प्रपञ्चति वा विस्तारयति खेलकासादि या सा प्रपञ्चा । जो श्लेष्म, खांसी आदि रोगों को प्रपञ्चित/विस्तृत और व्यक्त करती है, वह प्रपंचा (जीवन के सातवें दशक की अवस्था) है। प्रपञ्चयति वा-संसयति आरोग्यादिति प्रपञ्चा। (स्थाटी प ४६७) जो आरोग्य से दूर करती है, वह प्रपञ्चा है । १०२१. पवत्ति (प्रवर्तिन्) तवसंजमजोगेसु जो जोगो तत्थ तं पवत्तेइ । असहं च नियत्तेइ गणतत्तिल्लो पवत्तीओ।। यथोचितं प्रशस्तयोगेषु साधून प्रवर्तयतीति प्रवर्तकः । (प्रज्ञाटी प २४) जो साधुओं को प्रशस्त योगों में प्रवृत्त करता है, वह प्रवर्तक १०२२. पवन (पवन) पवतीति पवणो। पवते पुनातीति वा पवनः । जो तेज चलता है, वह पवन है। जो पवित्र करता है, वह पवन/वायु है। (अनुद्वा ३२०) (पिटी ५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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