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________________ १७८ निरुक्त कोश ९२५. पडिसेवअ (प्रतिसेवक) प्रतिषिद्धं सेवते इति प्रतिसेवकः। (व्यभा १ टी प १६) ___जो प्रतिषिद्ध/निषिद्ध का सेवन करता है, वह प्रतिसेवक है। ९२६. पडिसेवणा (प्रतिसेवना) सम्यगाराधनविपरीता प्रतिगता वा सेवना प्रतिसेवना । (स्थाटी प ३२४) प्रतिकूल आसेवन आचरण करना प्रतिसेवना है। १२७. पडिसेह (प्रतिषेध) प्रतिषिध्यतेऽनेनेति प्रतिषेधः । (बृटी पृ २६१) जिससे निषेध किया जाता है, वह प्रतिषेध है । ६२८. पडिहारिय (प्रतिहार्य) प्रतिहरणीयं प्रतिहार्य । (दश्रुचू प २२) जो पुनः देने योग्य है, वह प्रतिहार्य (वस्तु) है। ९२६. पडोयार (प्रत्यवतार) प्रति सर्वतः सामस्त्येन अवतीर्यते-व्याप्यते यैस्ते प्रत्यवताराः। (प्रज्ञाटी प ५३२) जो परितः अवतरित/व्याप्त हैं, वे प्रत्यवतार/परिधियां हैं। ९३०. पडोयर (प्रत्यवतार) प्रत्यवतार्यते पात्रमस्मिन्निति प्रत्यवतारः। (पिटी प १३) जिसमें पात्र का प्रत्यवतरण/स्थापन किया जाता है, वह प्रत्यवतार/झोली है। ९३१. पणामअ (प्रणामक) प्रणामयन्तीति प्रणामकाः। (सूचू १ पृ ६७) जो अत्यन्त नीचे झुकाते/गिराता हैं, वे प्रणामक कामभोग हैं। ९३२. पणिहाण (प्रणिधान) प्रकर्षेण नियते आलम्बने धानं-धरणं मनःप्रभृतेरिति प्रणिधानम् । (भटी पृ १३८१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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