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________________ निरक्त कोश दीव्यन्ति-क्रीडन्ति देवाः। (उशाटी प ३२३) ___ जो क्रीड़ा करते रहते हैं, वे देव हैं। दोव्यन्ते—स्तूयन्ते जगत्त्रयेणापोति देवाः। (उशाटी प ६१६) ___जो तीनों लोकों के द्वारा स्तुत्य हैं, वे देव हैं । ५३६. देवराय (देवराज) देवानां मध्ये राजमानत्वात्-शोभमानत्वाद्देवराजः । ___ (उपाटी प १२४) जो देवों के मध्य राजित/सुशोभित होता है, वह देवराज/ इन्द्र है। ८४०. देस (द्वष) दूसंति तेण तम्मि व दूसणमह देसणं व देसो त्ति ।' __(विभा २९६६) जिससे प्राणी दूषित/विकृत होते हैं, वह द्वेष है । जिसके होने पर अप्रीति उत्पन्न होती है, वह द्वेष है । ८४१. देसअ (देशक) देशयन्तीति देशकाः। . (आवहाटी १ पृ.६०) जो उपदेश करते हैं, वे देशक/उपदेशक हैं। ८४२. देसणा (देशना) अत्थं देसयतीति देसणा। (दजिचू पृ २३५) जो अर्थ का देशन/कथन करती है, वह देशना/भाषा है। १. दुष्यन्ति विकृति भजन्ति तेन तस्मिन् वा प्राणिन इति द्वेषः । (दुष् वैकृत्ये) द्विषन्ति-अप्रीति भजन्ति तेन तस्मिन् वा प्राणिन इति द्वेषः । (द्विष-अप्रीतौ) (विभामहेटी २ पृ २२३) द्विषत्यनेनेति द्वेषः । (आवचू २ पृ ७६) जिस भावना से द्वेष/शत्रुता पैदा होती है, वह द्वेष है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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