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________________ निरुक्त कोश ७२० तण (तृण) तरतीति तृणं । जो ( जल में ) तैरता है, वह तृण है । तृणेढि तृण्वंति वा तमिति तणम् । ' पशु जिसका भक्षण करते हैं, वह तृण है । ७२१. तणु (तनु ) ७२४. तमोकाइ ( तमस्कायिक) तनोति --- विस्तारयत्यात्मप्रदेशानस्यामिति तनुः ॥ ] (नक ४ टी पृ १२८ ) जहां आत्मा अपने प्रदेशों को फैलाती है, वह तनु / शरीर है । ७२२. तम (तमस् ) तमयति- खेदयति जनलोचनानीति तमः । ( उशाटीप ३८ ) जो आंखों को खिन्न करता है, वह तम / अंधकार है । ७२३. तमोकसिय ( तमस्काषिन् ) तमसि कषितुं शीलं येषां ते तर्मासकाषिणः । ( सूटी २ प ५३ ) जो तम / अंधेरे में दुराचार करते हैं, वे तमस्काषी हैं । तमसि कार्यं कुर्वन्तीति तमोकाइया । ७२५. तरु (तरु) अत्थाहमुदगं तरंति तेहि तरवो ।' (सू २ पृ ३४७) जो अंधकार में क्रियाशील रहते हैं, वे तमस्कायिक / चोर हैं । Jain Education International जिनसे अथाह जल तरा जाता है, वे तरु हैं । नदीतलागादीणि तेहिं तरिज्जंति तेण तरवो । जिनसे नदी तालाब आदि तरे जाते हैं, वे १. तृण्यतेऽद्यते पशुभिरिति तृणम् । (अचि पृ २६६ ) २. 'तरु' का अन्य निरुक्त (उच्च् पृ ७८ ) (उच् पू २११ ) १३६ तरन्त्यापदमनेन तरुः । (अचि पृ २४८ ) | जिससे आपत्ति का पार पाया जाता है, वह तरु है । For Private & Personal Use Only ( अचू पृ७ ) ( दजिचू पृ ११ ) तरु हैं । www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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