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________________ निरुक्त कोश १३५ जहां सूत्र और अर्थ के ग्रहण या परावर्तन के लिए बैठा जाता है, वह निषद्या/स्वाध्याय-भूमि है । ६६६. णिसीहिआ (नषेधिकी) निषेधेन–स्वाध्यायव्यतिरिक्तशेषव्यापारप्रतिषेधेन निर्वृत्ता नषेधिको।' (व्यभा ३ टी प ५४) जहां स्वाध्याय के अतिरिक्त शेष प्रवृत्तियों का निषेध है, वह नषेधिकी/स्वाध्याय भूमि) है। ६६७. णिसीहिआ (नषेधिकी) निषिध्यन्ते-निराक्रियन्ते अस्यां कर्माणीति नैषेधिको । (उशाटी प ३२२) जहां कर्मों का निषेध/नाश होता है, वह नषेधिकी/निर्वाण भूमि है। ६९८. णिस्साणपद (निश्राणपद) निश्रीयते--मन्दश्रद्धाकैरासेव्यत इति निश्राणं तच्च तत् पदं च निश्राणपदम् । (बृटी पृ २४१) __जो पद दुर्बल व्यक्तियों द्वारा निश्रित आसेवित है, वह निश्राणपद/अपवादपद है। ६६६. णिस्सेयस (निःश्रेयस्) नियतं निश्चितं वा श्रेयः निःश्रेयसम् । (उचू पृ १७१) ___जो नियत और निश्चित रूप से श्रेयस्कर है, वह निःश्रेयस्/ मोक्ष है। ७००. णिह (स्निह) स्निह्यत इति स्निहः । (आटी प १२४) जो स्नेह करता है, वह स्निह/स्नेहवान्/रागी है। १. निषेधः-गमनादिव्यापारपरिहारः स प्रयोजनमस्याः तमहतीति वा नषेधिको । (बृटी ६२५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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