SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३४ निरुक्त कोश ६६०. णिविण्णचारि (निर्विण्णचारिन्) णिविण्णो चरति णिविण्णचारी। (आचू पृ १७८) जो उदासीन भाव से आचरण करता है, वह निविण्णचारी ६६१. णिव्वेयणी (निदनी) निविद्यते-संसारादेनिविण्णः क्रियते अनयेति निर्वेदनी । (स्थाटी प २०४) जो संसार से निविण्ण/उदासीन करती है, वह निर्वेदनी (कथा) है। ६६२. णिसंस (नृशंस) नून्-नरान् शंसति-हिनस्तीति नृशंसः। (ज्ञाटी प ८६) जो नर का शंसन/हनन करता है, वह नृशंस है। ६६३. णिसण्ण (निषण्ण) अहियं सण्णो निसण्णो। जो (पाप में) अत्यधिक निमग्न है, वह निषण्ण है। णियतं णिच्छितं वा सण्णो णिसण्णो। (आचू पृ ११७) जो निरंतर निश्चितरूप से (पाप में) निमग्न है, वह निषण्ण है। ६६४. णिसाद (निषाद) निषीदन्ति स्वरा यस्मिन् स निषादः। (अनुद्वामटी प ११७) जिसमें सभी स्वर निषण्ण/समाविष्ट होते हैं, वह निषाद स्वर ६९५. णिसिज्जा (निषद्या) णिसज्जति सुत्तत्थाणनिमित्तं जत्थ भूपदेसे सा णिसिज्जा । (निचू १ पृ. ६४) १. षड्जादयः षडेतेऽत्र स्वराः सर्वे मनोहराः । निषीदन्ति यतो लोके निषादस्तेन कथ्यते ॥ (शब्द २, पृ ६०२) national Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy