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________________ १३२ निरुक्त कोश ६७९.णियाण (निदान) निश्चितमादानं निदानं । (आवचू २ पृ ७६) ऐहिक प्राप्ति के लिए जो निश्चित संकल्प किया जाता है, वह निदान है। निदायते-लूयते ज्ञानाधाराधनालता येनाध्यवसायेन तन्निदानम् ।' (स्थाटी प ४६१) जिस अध्यवसाय/संकल्प से ज्ञान आदि की आराधना उखड़ जाती है, वह निदान है। ६८०. णियाय (निकाय) निर्गतः कायः--औदारिकादिर्यस्माद्यस्मिन्वा सति स निकायः । (आटी प ४२) जिसमें औदारिक आदि काय/शरीर नहीं है, वह निकाय/ मोक्ष है। ६८१. णिरंगण (निरङ्गण) रङ्गणं-रागाद्युपरञ्जनं तस्मान्निर्गतः निरङ्गणः । (स्थाटी प ४४४) जो राग आदि के रंगण/रंजन से उपरत है, वह निरक्षण निलिप्त है। ६८२. णिरय (निरय) निर्गतम्-अविद्यमानमयम्--इष्ट फलं कर्म येभ्यस्ते निरयाः । (स्थाटी प २६) जिनमें से अय/पुण्यकर्म निकल गया है, वे निरय/नरक हैं । ६८३. णिरवकंख (निराकांक्ष) निष्क्रान्तमाकाङ्क्षातो निराकाङ्क्षम् । (उशाटी प ६००) ___जो (भोजन की) आकांक्षा से रहित है, वह निराकांक्ष (अनशन) है। १. नितरां दीयन्ते---लयन्ते दीयन्ते वा खण्ड्यन्ते तथाविधसानुबन्धफलाभावतस्तपःप्रभृतीन्यनेनेति निदानम् । (उशाटी प ३८४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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