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________________ १३० ६६७. दिरिसण ( निदर्शन ) अहिकं दरिसणं निदरिसणं । निच्छियं दरिसिति अणेण अत्था तेण निदरिसणं । ६६८. णिदा (दे ) जिससे अर्थ का निश्चित दर्शन / प्रकटीकरण होता है, वह निदर्शन / उदाहरण है . वेदना है | ६६. णिदाह ( निदाघ ) अदाहो निदाहो । नितरां निश्चितं वा सम्यक् दीयते चित्तमस्यामिति निदा । अधिक दाह निदाघ / गर्मी है | ६७०. णिद्दा ( निद्रा) (प्रज्ञाटी प ५५७ ) जिसमें चित्त निश्चित रूप से निविष्ट होता है, वह णिदा / निद्रा है । ६७१. सिवत्ति ( निर्देशवर्तिन् ) निरुक्त कोश नियतं द्राति- कुत्सितत्वम विस्पष्टत्वं गच्छति चैतन्यमनयेति निद्रा ( स्थाटी प ४२८ ) Jain Education International ( अचू पृ २० ) ६७२. द्धिम्म ( निर्धर्मन् ) णिग्गतधम्मा गिद्धम्मा । . ( दजिचू पृ ४० ) जिससे चेतना निश्चित रूप से सुषुप्ति को प्राप्त होती है, वह जो धर्म से रहित हैं, वे निर्धर्म हैं । १. द्वा- कुत्सायां गतौ । निद्देसो आणा तम्मि वति निद्देसवत्तिणो । ( दअचू पृ २१८) जो निर्देश / आज्ञा में वर्तन करता है, वह निर्देशवर्ती / आज्ञानुवर्ती है । For Private & Personal Use Only ( बृभा १९४ ) ( निचू १ पृ १२२) www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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