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________________ निरुक्त कोश १०७ ५४६. चिइ (चिति) चीयते असाविति चितिः । (आवहाटी २ पृ १४) जिसका उपचय किया जाता है, वह चिति है। " ५५०. चिंध (चिह्न) चिह्नते-ज्ञायतेऽनेनेति चिह्नम् । (सूटी १५ १०२) जिसके द्वारा जाना जाता है, वह चिन्ह है। ५५१. चिक्खल्ल (दे) चिच्चं करोति खल्लं च भवति चिक्खल्लं। (अनुद्वा ३६८) जो फिसलाता है और लिप्त कर देता है, वह चिक्खल/ कर्दम है। जो 'चिक् चिक् चग् चग्' शब्द करता है, वह चिक्खल है। ५५२. चितका (चितका) चीयन्ते इति चितकाः । (सूचू १ पृ १३७) जिसको चिना जाता है, वह चितका/चिता है । ५५३. चित्त (चित्त) चितिज्जइ जेण तं चित्तं । (नंचू पृ ५) जिससे स्मरण किया जाता है, वह चित्त है ।। चित्यते यैस्तानि चित्तानि । (नंटी पृ ८) जिनके द्वारा संज्ञान किया जाता है, वे चित्त हैं। १. चीयते श्मशानाग्निरस्यां यद्वा चीयते उच्चीयतेऽसौ प्रेतस्य परलोक शर्मगे इति चिता। (शब्द २ पृ ४४७) २. चित्-स्मृतौ, चित्-ज्ञाने। ३. 'चित्त' के अन्य निरुक्तचित्तेति आरम्भणं उपनिज्झायति ति चित्तं । __ जो आलम्बन को ग्रहण करता है, वह चित्त है। सन्तानं चिनोतीति पि चित्तं । (विटी पृ १६) जो व्यक्तित्व को पुष्ट करता है, वह चित्त है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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