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________________ १०४ निरुक्त कोश चक्रं वास्ति येषां ते चाक्रिकाः। चक्र के द्वारा जो आजीविका प्राप्त करते हैं, वे चाक्रिक/ कुंभकार, तैली आदि हैं। चक्रं वोपदर्थ्य याचन्ते ये ते चाक्रिकाः। (ज्ञाटी प ६४) जो चक्र दिखाकर याचना करते हैं वे चाक्रिक/भिखारी हैं। ५३६. चक्खु (चक्षुष्) चक्ष्यतेऽनेनेति चक्षुः। (आवचू १ पृ ५३०) जो देखती है, वह चक्षु (इन्द्रिय) है। ५३७. चरक (चरक) तवं चरइ त्ति चरको। (दअचू पृ ३७) जो तप का आचरण करता है, वह चरक श्रमण है। ५३८. चरण (चरण) चर्यत इति चरणम् । (सूटी २ प ४१) जिसका आचरण किया जाता है, वह चरण चारित्र है। चर्यते – गम्यते-प्राप्यतेऽनेन संसारोदधेः परं कूलमिति चरणम् । i(विभाकोटी पृ ३) जिसके द्वारा संसार-समुद्र का पार पाया जाता है, वह चरण चारित्र है। . चरन्ति - परमपदं गच्छन्ति जीवा अनेनेति चरणम् । (नक १ टी पृ ३०) जिससे जीव परमपद/मोक्ष को प्राप्त करते हैं, वह चरण/ ____ चारित्र है। १. चश्-दर्शने । २. 'चक्षु' का अन्य निरुक्त चष्टे शुभाशुभं स्फुरणाच्चक्षुः । (अचि पृ १३०) जिसके स्फुरण/स्पन्दन से शुभ-अशुभ का निर्देश किया जाता है, वह । चक्षु है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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