SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०३ निरुक्त कोश ५३२. चउत्थ (चतुर्थ) चत्वारि भक्तानि यत्र त्यज्यन्ते तच्चतुर्थ (भक्तम्) । (ज्ञाटी प ७६) जिसमें चार समय का आहार छोड़ा जाता है, वह चतुर्थ भक्त/उपवास है। ५३३. चंडाल (चण्डाल) चंडेन अलं यस्य भवति चंडालः । __ जो चंड/क्रोध से परिपूर्ण है, वह चण्डाल/क्रोधी है । चंडेन वा आगलितः चंडालः । (उचू प २९) जो चंड/क्रोध से उद्विग्न है, वह चण्डाल/क्रोधी है । ५३४. चक्कवट्टि (चक्रवतिन्) चक्रेण वर्तयति पालयतीति चक्रवर्ती ।' (अनुद्वामटी प १५८) जो चक्र के द्वारा राज्य का संचालन करता है, प्रजा का पालन करता है, वह चक्रवर्ती है। ५३५. चक्किय (चाक्रिक) चक्र प्रहरणमेषामिति चाक्रिकाः। चक्र जिनका शस्त्र है, वे चाक्रिक योद्धा हैं । १. चण्डमुग्रं कर्म अलति पर्याप्नोति चण्डालः। (अचि पृ १६८) २. 'चक्रवर्ती' के अन्य निरुक्त नृपाणां चक्रे समूहे वर्तते स्वाम्यनेनेति चक्रवर्ती । जो राजाओं के चक्र समूह में स्वामी होता है, वह चक्रवर्ती है । चक्रं राष्ट्र वर्तयतीति वा । (अचि पृ १५४) जो राष्ट्र का पालन करता है, वह चक्रवर्ती है । चक्रे भूमण्डले वर्तित, चक्रं सैन्यचक्रं वा सर्वभूमौ वर्तयित शीलमस्य चक्रवर्ती । (वा पृ २८३६) जो (छह खण्ड) पृथ्वी पर शासन करता है, वह चक्रवर्ती है। जिसकी सेना सम्पूर्ण पृथ्वी पर फैल जाती है, वह चक्रवर्ती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy