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________________ १६ निरुक्त कोश ४६७. गामंतिय (ग्रामान्तिक) ग्रामस्यान्ते- समीपे वसन्तीति ग्रामान्तिकाः। (सूटी २ प ५५) जो ग्राम के समीप रहते हैं, वे ग्रामान्तिक हैं। ४९. गाय (गात्र) ___ गच्छति गत इति वा गात्रम् ।' (उचू पृ ७६) जो परलोक में जाता है, गया है, वह गात्र/शरीर है। ४६९. गाह (ग्राह) गृह्णन्तीति ग्राहाः। (उशाटी प ६६६) जो ग्रहण करते हैं/पकड़ते हैं, वे ग्राह|मगरमच्छ हैं । ५००. गाहग (ग्राहक) ग्राहयतीति ग्राहकः। गृह्णातीति ग्राहकः। (व्यभा ४/२ टी प ७१) जो ग्रहण कराता है, वह ग्राहक है । जो ग्रहण करता है, वह ग्राहक है। ५०१. गिम्ह (ग्रीष्म) ग्रसत इति ग्रीष्मः । (उचू पृ ५७) ___जो (रसों का) शोषण करता है, वह ग्रीष्म है । ५०२. गिरा (गिर्) णिगिरंति तामिति गिरा। (दअचू पृ १५६) जो भाषावर्गणा के पुद्गलों का निगरण/भक्षण करती है, वह गिर वाणी है। गीयते गिरति गृणाति वा गिरा।' __(उचू पृ २०६) जो शब्द करती है, वह गिर्/भाषा है। १. गच्छति मरणात् परं स्वकारणभूतपञ्चत्वं प्राप्नोति यद्वा गम्यते स्थानात् स्थानान्तरं प्राप्यते सञ्चाल्यते वाऽनेन इति गात्रम् । (शब्द २ पृ ३२२) २. ग्रसते रसानिति ग्रीष्मः । (वा पृ २७७५) ३. गृ---शब्दे, विज्ञापने, निगरणे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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