SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ निरुक्त कोश धर्मगणं धारयतीति गणधरः। (दटी प १०) __ जो धर्मगण को धारण करता है, वह गणधर है। ४८६. गणहारि (गणधारिन्) गणं-साध्वादिसमुदायलक्षणं धारयितुं शीलमस्येति गणधारी। (आवहाटी १ पृ १६०) जो गण/साधुसमुदाय को धारण करता है, वह गणधारी है । गुणसमुदयं वा धारयितुं शीलमस्येति गणधारी। (बृटी पृ ३७७) जो गुणसमूह को धारण करता है, वह गणधारी है। ४६०. गणिम (गणिम) जण्णं गणिज्जइ (गणिमं)। (अनुद्वा ३८२) गण्यते--सङ्ख्यायते वस्त्वनेनेति गणिमम् । जिसके द्वारा वस्तु की गणना की जाती है, वह गणिम है। गण्यते-सङ्ख्यायते यत्तद्गणिमम् । (अनुद्वामटी प १४२) जिसकी गणना की जाती है, वह गणिम है। ४६१. गमक (गमक) गम्यते अनेनार्थ इति गमकः ।' (सूचू १ पृ १२) जिसके द्वारा अर्थ को जाना जाता है, वह गमक/विकल्प ४६२. गमिय (गमिक) गमबहुलत्तणतो गमियं । (नंचू पृ ५६) जिसमें गमों/विकल्पों की बहुलता है, वह गमिक श्रुत है । १. गम्यते वस्तुस्वरूपमेभिरिति गमा-वस्तुपरिच्छेदप्रकाराः। (उशाटी प ३४२) २. आदि-मज्झ-वसाणे वा किंचिविसेसजुत्तं सुत्तं दुगादिसतग्गसो तमेव पढिज्जति तं गमियं भण्णति । (नंचू पृ ५६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy