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________________ कहा है । जिन कृतियों में याज्ञिक समाख्यातत्त्व, अनुष्ठानस्मारकत्व, स्तुतिरूपत्व, आमंत्रणोपेतत्व आदि भाव विद्यमान हों उन्हें मंत्र कहते हैं । इसके अतिरिक्त श्रुतिभाग को ब्राह्मण कहते हैं । सामान्यतः यज्ञ अनुष्ठान के साथ किसी देवता पर लक्षित की गयी श्रुतियाँ मन्त्र हैं और किसी कार्य विशेष में किस मन्त्र का प्रयोग होना चाहिए इसका उल्लेख करके मंत्र की व्याख्या जिन श्रुतियों में की गयी है वे ब्राह्मण है । ब्राह्मणभाग के तीन भेद-विधिरूप, अर्थवादरूप और उभयविलक्षण है । प्रभाकर ने विधि का लक्षण शब्दभावना और लिंगादि प्रयोग से किया है। ताकिकों ने तो इष्टसाधनता को ही विधि कहा है। विधि के चार प्रकार-उत्पत्ति, अधिकार, विनियोग और प्रयोग है । विधि के अवशिष्ट स्तुति-निन्दायुक्त वाक्यसमूह को अर्थवाद कहा गया है। अर्थवाद के तीन प्रकार गुणवाद, अनुवाद और भूतार्थवाद हैं। वेदान्त वाक्य विध्यर्थवाद से विलक्षण हैं पर वे अज्ञातज्ञापक होने पर भी अनुष्ठान के अप्रतिपादक है इसलिए उन्हें विधि नहीं कहते। सब विधियाँ उन्हीं में विलीन होती हैं, इसलिए वे अर्थवाद भी और चरणविद्या में से केवल शौनक शाखा (और पंपलाद शाखा ) ही आज रह गयी है। इसमें २० काण्ड हैं । अथर्ववेद शत्रुपीडन, आत्मरक्षा, विपनिवारण आदि कार्यों के मंत्रों से भरा पड़ा है। ऐसा मालूम पड़ता है कि वर्तमान तांत्रिक साधना इसी से उद्भूत है। अथर्ववेद के ब्राह्मण का नाम गोपथ है। इसके ज्ञानकाण्ड में बहत उपनिषदें थीं और आज भी जाबाल, कैवल्य, आनन्दवल्ली, आरुणेय, तेजोबिन्दु, ध्यानबिन्दु, अमृतबिन्दु, ब्रह्मबिन्दु, नादबिन्दु, प्रश्न, मुण्डक, अथर्वशिरस्, गर्भ, माण्डूक्य, नीलरुद्र आदि उपनिषदें पायी जाती है । _ अथर्ववेद के संकलन के विषय में तीन मत प्रचलित हैं। कुछ लोग अथर्वा और अंगिरा ऋषि के वंशधरों द्वारा, कुछ लोग भृगुवंशियों द्वारा और कुछ लोग अथर्वा ऋषि द्वारा ही इसका संकलन होना बतलाते हैं। ऋक्, साम, यजु और अथर्व में कुछ ऐसे सामान्य सूक्त मिलते हैं जिनसे एक ही वेद से वेदचतुष्टय के निर्माण की संभावना प्रबल हो जाती है। इस सम्बन्ध में सूतसंहिता में स्पष्ट लिखा है कि महर्षि वेदव्यास ने अम्बिकापति की कृपा से वेद के चार भाग किये, जिनमें ऋग्वेद प्रथम, यजुर्वेद द्वितीय, सामवेद तृतीय तथा अथर्ववेद चतुर्थ है। इन विभागों का एक मुख्य प्रयोजन यह है कि ऋग्वेद के द्वारा यज्ञीय होतृप्रयोग, यजुर्वेद से अध्वर्युप्रयोग, सामवेद से उद्गातृ- प्रयोग (ब्रह्मयजमान प्रयोग भी) और अथर्ववेद से शांतिक- पौष्टिक, आभिचारिक आदि यज्ञ, कर्म, देवता व उपासना के रहस्य तथा ज्ञान प्रतिपादक मन्त्रों का विधान होता है। इससे यज्ञप्रतिपादन में पर्याप्त सुविधा मिलती है। शाखाओं के सम्बन्ध में यद्यपि महर्षियों द्वारा निर्धारित इनकी संख्या में भेद है पर वाक्य में कोई विरोध नहीं है । अतः इस भेद का कोई तात्त्विक कारण नहीं है। __ मनुष्य को त्रिविध शुद्धि द्वारा मुक्ति प्रदान करने के लिए ही वेद का कर्म, उपासना और ज्ञान नामक तीन काण्डों में विभाग किया गया है, जो मंत्र, ब्राह्मण तथा आरण्यक वा उपनिषद् नाम से अभिहित हैं । मंत्र या संहिता में उपा- सना, ब्राह्मण में कर्म तथा आरण्यक में ज्ञान की प्रधानता है। उपनिषदें संहिता और ब्राह्मण में ही अन्तर्भूत है इसलिए वेद का विवरण तीन भागों में न करके मंत्र और ब्राह्मण इन दो भागों में ही किया जाता है। महर्षि आप- स्तम्ब और जैमिनि दोनों ने मंत्र और ब्राह्मण को वेद कुछ लोग ब्राह्मण भाग को परतः प्रमाण और संहिता भाग से भिन्न तथा न्यून बतलाते हैं। वस्तुतः वेद मन्त्रब्राह्मणात्मक हैं अतएव ब्राह्मण हर शाखा में हैं । ब्राह्मण भाग में संहिता के मन्त्रों के व्यवहार की क्रियाप्रणाली वर्णित है। कर्म. उपासना और ज्ञान भारतीय वैदिक शिक्षा के मूल आधार हैं और इन्हीं से वेद का वेदत्व है। वेद में उनकी आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक सार्थकता तीनों सुरक्षित है। इसीलिए प्रत्येक शाखा में मन्त्र, ब्राह्मण और उपनिषद् तीनों वर्तमान हैं। स्मृति के अनुसार प्रत्यक्ष या अनुमान से जो कुछ प्राप्त नहीं हो सकता वह वेद से प्राप्त हो जाता है । लौकिक प्रत्यक्ष या अनुमानातीत आध्यात्मिक ब्रह्मपद की प्राप्ति ब्राह्मण भाग की सहायता से ही संभव हो सकती है, क्योंकि उपनिषद् भी ब्राह्मण का भाग है। कर्म, उपासना और ज्ञान में जीव को ब्रह्म भाव में लाने की शक्ति है और इसी कारण वेद की पूर्णता तथा अपौरुषेयता सुरक्षित है । सत्, चित और आनन्द इन तीनों भावों की पूर्ण उपलब्धि से ही ब्रह्मभाव की उपलब्धि होती है। कर्म के द्वारा सद्भाव, उपासना के द्वारा आनन्द भाव तथा ज्ञान के द्वारा ७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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