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________________ के ज्ञान से उसकी आधिदैविक शक्ति तथा ऋषि के ज्ञान से तैत्तिरीय संहिता में कुल सात अष्टक हैं जिनमें प्रत्येक अष्टक उसकी आध्यात्मिक शक्ति का पता चलता है । वेद के कर्म ७,८ अध्यायों का है। अध्याय को प्रश्न और अष्टक को और उपासना काण्ड के बीच इन्द्र, वरुण, अग्नि आदि दैवी प्रपाठक भी कहा गया है। प्रत्येक अध्याय बहुत से अनुशक्तियों का स्वर्ग आदि फल प्रदान करने के लिए सकाम वाकों से युक्त है और पूरे ग्रंथ में अनुवाकों की संख्या साधना में आह्वान किया जाता है । ७०० है । इसमें अश्वमेध, अग्निष्टोम, ज्योतिष्टोम, राजचारों वेदों के विषयों का यत्किञ्चित वर्णन इस सूय, अतिरात्र आदि यज्ञों का वर्णन है और प्रजापति, प्रकार है । ऋग्वेदसंहिता के दस मण्डल हैं, जिनमें ८५ सोम आदि इसके देवता हैं। कृष्ण यजुःसंहिता के ब्राह्मण अनुवाक और अनुवाकसमूह में १०२८ सूक्त हैं। मण्डल, को तैत्तिरीय ब्राह्मण तथा आरण्यक को तैत्तिरीय आरण्यक अनुवाक और सूक्त वर्तमान खण्ड, परिच्छेद आदि के कहते हैं । इसके ज्ञानकाण्ड को तैत्तिरीय उपनिषद् कहते नामान्तर है । ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में २४, द्वितीय में हैं । इसके अतिरिक्त शाखाओं के अनुसार मैत्रायणीय ४, तृतीय में ५, चतुर्थ में ५, पंचम, षष्ठ और सप्तम में उपनिषद्, कठोपनिषद्, श्वेताश्वतर उपनिषद् तथा नारासे प्रत्येक में ६, अष्टम में १०, नवम में ७ और दशम यणोपनिषद् आदि का भी उल्लेख मिलता है। मण्डल में १२ अनुवाक निहित हैं। प्रत्येक मण्डल में सूकों शुक्ल यजुर्वेद को वाजसनेयी और माध्यन्दिनी संहिता की संख्या क्रमशः १९१, ४३, ६२,५८,८७, ७५, १०४, भी कहते हैं। इसके ऋषि याज्ञवल्क्य हैं। इस संहिता में १०३,११४ और १९१ है । सूक्तों के बहुत से भेद किये ४० अध्याय, २९० अनुवाक और अनेक काण्ड हैं। यहाँ है, यथा-महासूक्त, मध्यमसूक्त, क्षुद्रसूक्त, ऋषिसूक्त, दर्शपौर्णमास, अग्निष्टोम, वाजपेय, अग्निहोत्र, चातुर्मास्य, छन्दःसुक्त और देवतासूवत । कुछ लोगों के अनुसार ऋग्वेद षोडशी, अश्वमेध, पुरुषमेध आदि यज्ञों का वर्णन है । वैदिक के मन्त्रों की संख्या १०४०२ से १०६२८ तक है, शब्द- युग के सामाजिक रीति-रिवाजों के वर्णन से युक्त इस वेद संख्या १५३८२६ और शब्दांशसंख्या ४३२००० है। की माध्यन्दिनी शाखा में 'शतपथ ब्राह्मण' भी सम्मिलित लेकिन इसमें मतभेद है। है । इसके दो भागों में कुल १४ काण्ड हैं, जिनमें बृहदामहाभाष्य में यद्यपि ऋग्वेद की २१ शाखाओं का रण्यकोपनिषद भी सम्मिलित है। अब पाँचशाखायें भी उपलब्ध नहीं हैं। सामवेद को सहस्र शाखाओं में से मात्र आसूरायणीय, लोगों का अनुमान है कि आजकल केवल शाकल शाखा ही वासूरायणीय, वार्तान्तवेय, प्राञ्जल, ऋग्वर्णभेदा, प्राचीनप्रचलित है। वाष्कल शाखा की मन्त्रसंख्या १०६२२। योग्य, ज्ञानयोग्य, राणायनीय नामों का ही उल्लेख मिलता और शाकल की १०३८१ है, परन्तु वेद का अधिकांश है । राणायनीय के नव भेद इस प्रकार हैं-शाटचायनीय, लुप्त हो जाने के कारण इस गणना में भी मतभेद है। सात्वल, मौद्गल, खल्वल, महाखल्वल, लाङ्गल, कौथुम, ऋग्वेद के दो ब्राह्मण उपलब्ध हैं-ऐतरेय और कौषीतकि गौतम और जैमिनीय । ये सभी शाखाएँ लुप्त हो गयी है। या सांख्यायन । ऐतरेय ब्राह्मण में आठ पंजिकाएँ, प्रत्येक ____ अब केवल कौथुमी शाखा ही मिलती है। सामवेद के पूर्व पंजिका में पांच अध्याय और प्रत्येक अध्याय कई काण्डों से और उत्तर दो भाग हैं । पूर्व संहिता को छन्द आचिक युक्त है । ऋग्वेद के आरण्यक को ऐतरेय कहते हैं, यह और सप्तसाम नामों से भी अभिहित किया गया है । इसके पाँच आरण्यकों और अठारह अध्यायों से युक्त है। छः प्रपाठक है । सामवेद की उत्तर संहिता को उत्तराचिक यजुर्वेद के दो भाग है-शुक्ल और कृष्ण । इनमें कृष्ण या आरण्यगान भी कहा गया है। इसके ब्राह्मण भाग में यजुर्वेदसंहिता को तैत्तिरीय संहिता भी कहते हैं, जिसकी आर्षेय, देवताध्याय, अद्भुत, ताण्ड्य महाब्राह्मण, साम'चरणव्यूह' के अनुसार ८६ शाखाएँ थीं। महाभाष्य के विधान आदि आठ ब्राह्मण हैं। इनमें ज्ञानकाण्ड का छान्दोग्य अनुसार यजुः को १०१ तथा मुक्तिकोपनिषद् के अनुसार और केनोपनिषद् प्रमुख हैं। १०९ शाखाएँ थीं, जिनमें आज मात्र १२ शाखायें और १४ अथर्ववेद की मंत्रसंख्या १२३०० है, जिसका अति न्यून उपशाखायें ही उपलब्ध हैं । मंत्रब्राह्मणात्मक कृष्णयजुर्वेद अंश आजकल प्राप्त है। इसकी नौ शाखायें पैप्पल, में कुल १८००० (अठारह हजार ) मन्त्र मिलते हैं। __ दान्त, प्रदान्त, स्नात, सौत्न, ब्रह्मदावल, शौनक, दैवीदर्शनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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