SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 616
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६०२ वेदत्रयी-वेदाचार चिद्भाव की प्राप्ति होती है। वेद के तीन काण्ड हैं। 'शाश्वत' कहलाते हैं। यही नाम महाभारत के संकलनउसके मन्त्रभाग को उपासना काण्ड, ब्राह्मणभाग को कर्ता, वेदान्तदर्शन के स्थापनकर्ता तथा पुराणों के व्यवकर्मकाण्ड तथा आरण्यक भाग को ज्ञानकाण्ड कहते हैं। स्थापक को भी दिया गया है। ये सभी व्यक्ति वेदव्यास इनमें से एक भी भाग के अभाव में वेद की अपौरुषेयता कहे गये हैं। विद्वानों में इस बात पर मतभेद है कि ये और पूर्णता खण्डित हो जाती है। भाग शब्द भागान्तर सभी एक ही व्यक्ति थे अथवा विभिन्न। भारतीय परम्परा का सूचक है इसलिए केवल मन्त्र ही वेद नहीं हो सकता, इन सबको एक ही व्यक्ति मानती है। महाभारतकार उसमें ब्राह्मण और तदन्तर्गत उपनिषद् की स्थिति भी व्यास ऋषि पराशर एवं सत्यवती के पुत्र थे, ये साँवले अनिवार्य है । प्रत्येक भाग में कर्म, उपासना और ज्ञान रंग के थे तथा यमुना के बीच स्थित एक द्वीप में उत्पन्न का वर्णन न्यूनाधिक मात्रा में है, यद्यपि एक में किसी एक हुए थे। अतएव ये सांवले रंग के कारण 'कृष्ण' तथा पक्ष की ही प्रधानता रहती है। जन्मस्थान के कारण 'द्वैपायन' कहलाये । इनकी माता ने __ कुछ आधुनिक विचारकों ने ऋषि-मुनियों और राजाओं बाद में शान्तनु से विवाह किया, जिनसे उनके दो पुत्र का इतिहास ब्राह्मणों में देखकर उसे वेद कहना अस्वीकार हुए, जिनमें बड़ा चित्राङ्गद युद्ध में मारा गया और छोटा कर दिया है । उन्होंने यह भी कहा है कि इनसे अलग विचित्रवीर्य संतानहीन मर गया। कृष्ण द्वैपायन ने धार्मिक कोई इतिहास या पुराण नहीं है। वास्तविक बात यह है तथा वैराग्य का जीवन पसंद किया, किन्तु माता के कि पुराण वेद से भिन्न नहीं हैं । वेद की बातों को ही आग्रह पर इन्होंने विचित्रवीर्य की दोनों सन्तानहीन पुराणों में सरल करके भिन्न भिन्न रूपों में उपस्थित रानियों द्वारा नियोग के नियम से दो पुत्र उत्पन्न किये किया गया है । इनमें यत्र-तत्र प्राप्त होने वाले अन्तर्विरोध जो धृतराष्ट्र तथा पाण्डु कहलाये, इनमें तीसरे विदुर भी तात्त्विक न होकर भाव की भिन्नता के कारण हैं । इस थे। पुराणों में अठारह व्यासों का उल्लेख है जो ब्रह्मा तरह पुराणों की रचना भावों के अनुसार हुआ करती है। या विष्णु के अवतार कहलाते हैं एवं पृथ्वी पर विभिन्न अतएव पुराणों को ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता । वाज- युगों में वेदों की व्याख्या व प्रचार करने के लिए अवतीर्ण सनेयी ब्राह्मणोपनिषद् के अनुसार ऋक् आदि चार वेद, होते हैं। इतिहास, पुराण आदि सभी भगवान् के निःश्वासस्वरूप है। वेदव्रत-यह चतुर्मूर्तिव्रत है । मनुष्य को चैत्र मास से ऋग्वेद वेदत्रयी-प्रारम्भ में वेदमन्त्र अपने छान्दस् रूप में अविभक्त की पूजा करके नक्त विधि से आहार कर वेदपाठ श्रवण थे । उनमें पद्य और गद्य दोनों प्रकार की सामग्री सम्मि- करना चाहिए। ज्येष्ठ मास के अन्तिम दिन दो वस्त्र, लित थी। फिर धीरे-धीरे उनका वर्गीकरण करके तीन सुवर्ण, गौ, घी से परिपूर्ण काँसे के पात्र का दान विहित है। विभाग किये गये-ऋक्, यजु और साम । यही तीन आषाढ़, श्रावण तथा भाद्रपद मास में उसे यजुर्वेद की पूजा वेदत्रयी कहलाते हैं । पहले विभाग का अर्थ है स्तुति और श्रवण करना चाहिए । आश्विन, कार्तिक तथा मार्गअथवा प्रार्थना, दूसरे का अर्थ है यज्ञों में विनियोग करने शीर्ष में सामवेद की तथा पौष, माघ एवं फाल्गुन में समस्त वाले गद्यमय मन्त्र अथवा वाक्य और तीसरे विभाग का वेदों की पूजा एवं पाठ श्रवण करना चाहिए । वस्तुतः अर्थ है गान । वैदिक मन्त्रों को इन्हीं तीन मूल भागों में यह भगवान् वासुदेव की ही पूजा है जो समस्त वेदों के बाँटा जा सकता है। कुछ विद्वान् अथर्ववेद को इससे आत्मा हैं । यह व्रत १२ वर्षपर्यन्त आचरणीय है । इसके पृथक् समझते हैं किन्तु वास्तव में अथर्ववेद इन्हीं तीनों ___ आचरण से व्रती समस्त संकटों से मुक्त होकर विष्णुलोक से बना हुआ संग्रह है। यह वेद का चतुर्विध नहीं अपितु प्राप्त कर लेता है। त्रिविध विभाजन है। वेदसार वीरशैवचिन्तामणि-यह नजनाचार्य विरचित वेदव्यास-व्यास का अर्थ है 'सम्पादक' । यह उपाधि अनेक वीर शैव सम्प्रदाय का एक प्रमुख ग्रन्थ है। पुराने ग्रन्थकारों को प्रदान की गयी है, किन्तु विशेषकर वेदाचार-तान्त्रिक गण सात प्रकार के आचारों में विभक्त वेदव्यास उपाधि वेदों को व्यवस्थित रूप प्रदान करने वाले हैं। कुलार्णवतन्त्र के मत से वेदाचार श्रेष्ठ है, वेदाचार से उन महर्षि को दी गयी है जो चिरंजीव होने के कारण वैष्णवाचार उत्तम है, वैष्णवाचार से शैवाचार उत्कृष्ट है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy