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________________ वादावली-वामनपुराण ५८३ (२) इनके मतानुसार गतिश्रुतिबल से कार्यब्रह्म अर्थात् है। इन्हें गौतम का पुत्र कहा गया है। बृहद्देवता में सगुण ब्रह्मा को ही प्राप्ति होती है और अमानव पुरुष ही वामदेव के बारे में दो असंगत कथाएँ वणित हैं । यद्यपि ब्रह्म की प्राप्ति करा सकते हैं ।। वामदेव अथर्ववेद (१८.३.१५ १६) तथा प्रायः ब्राह्मणों में (३) इनके मत में ज्ञानी पुरुष के शरीरादि नहीं होते; उल्लिखित है, किन्तु यहाँ उन्हें पूर्व कथाओं का नायक मुक्त पुरुष निरिन्द्रिय एवं शरीरहीन होते हैं । नहीं कहा गया है। (४) इनके मत में वैदिक कर्म करने का सबको वामनजयन्ती-भाद्र शुक्ल द्वादशी को वामनजयन्ती मनायी अधिकार है। जाती है । विष्णु के अवतार वामन भगवान् इसी दिन मध्याह्न काल में उत्पन्न हुए थे और उस दिन श्रवण नक्षत्र वादावली-स्वामी जयतीर्थाचार्य द्वारा रचित ग्रन्थों में से था । इस दिन उपवास का विधान है । यह व्रत समस्त एक ग्रन्थ वादावली है। व्यासराज स्वामी ने इसी का पापों को दूर करता है । भागवत पुराण में कहा गया है अवलम्बन कर माध्व सिद्धान्त का न्यायामृत नामक ग्रन्थ कि वामन भगवान् द्वादशी को प्रकट हुए थे और उस दिन लिखा है। श्रवण नक्षत्र तथा अभिजित् मुहूर्त था। इस तिथि को वादिहंसाम्बुजाचार्य-इनका अन्य नाम द्वितीय रामानुजा विजया द्वादशी भी कहा जाता है । चार्य है। ये वेङ्कटनाथ के मामा और गुरु थे ! इनके पिता वामनद्वादशी-चैत्र मास की द्वादशी को इस व्रत का अनुका नाम पद्मनाभाचार्य था। द्वितीय रामानुजाचार्य ने ष्ठान होता है । विष्णु इसके देवता हैं । उस दिन उपवास न्यायलिश नामक ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ सम्भवतः रखना चाहिए । भगवान् के चरणों से प्रारम्भ कर मस्तक कहीं प्रकाशित नहीं हुआ है। इसमें प्रायः बारह विषयों पर्यन्त उनके सभी शरीरावयवों की भिन्न-भिन्न नाम पर विचार किया गया है, जो निम्नांकित है : (१) लेकर पूजा करनी चाहिए । यज्ञोपवीत, छत्र, पादुका तथा सिद्धार्थव्युत्पत्त्यादिसमर्थन (२) स्वतः प्रामाण्यनिरूपण (२) माला युक्त वामन भगवान की प्रतिमा को एक कलश में ख्यातिनिरूपण (४) स्वयंप्रकाशवाद (५) ईश्वरानुमान- स्थापित कर द्वितीय दिवस उसका दान कर देना चाहिए। भङ्गवाद (६) वेदाद्यतिरिक्तात्मयाथार्थ्यवाद (७) समाना- इस व्रत से पुत्रहीन लोग पुत्र प्राप्त करते हैं । अन्य भी धिकरणवाद (८) सत्कार्यवाद (९) संस्थानसामान्यसम- जो कोई धनादि की इच्छा करते हैं वह अवश्य पूर्ण होती र्थनवाद (१०) मुक्तिवाद (११) भावान्तराभाववाद तथा है । कुछ अधिकृत ग्रन्थों के अनुसार वामन एकादशी को (१२) शरीरवाद। प्रकट हुए थे, जबकि बहुतों के अनुसार वे द्वादशी को ही वानप्रस्थ-जीवन के चार आश्रमों (विश्रामस्थलों) में से प्रकट हुए थे। इन सब बातों के लिए दे० निर्णयसिन्ध, तीसरा । इस आश्रम को वन में बिताने का आदेश है । इसमें शरीर तथा मन को विविध प्रकार के अनुशासन में __ वामनपुराण-अठारह महापुराणों में एक वामन पुराण भी रखकर धार्मिक कार्यों के लिए तैयार करते हैं । इसका है । वैष्णव पुराण होने के कारण इसमें विष्णु के विभिन्न उद्देश्य ब्रह्मचिन्तन के लिए चरित्र की पवित्रता, अपरिग्रह अवतारों की कथाएँ हैं किन्तु वामन अवतार की प्रधानता और शुद्ध सात्विक भाव प्राप्त करना है। इसके लिए है । वामन पुराण में दस हजार श्लोक हैं तथा पंचानवे अध्याय हैं। यौगिक क्रिया द्वारा शरीर तथा मन का निग्रह किया इस महापुराण में शैव सम्प्रदाय का वर्णन भी मिलता जाता है। यह आश्रम संन्यास का पूर्व रूप है । दे० है। इसमें शिव, शिवमाहात्म्य, शैवतीर्थ, उमाशिव विवाह. 'आश्रम' । गणेश की उत्पत्ति, कार्तिकेयजन्म और उनके चरित्र का वामकेश्वर तन्त्र-आगमतत्त्वविलास में उद्धृत ६४ वर्णन पाया जाता है । इस पुराण की प्रकृति समन्वयात्मक तन्त्रों में एक वामकेश्वर भी है। इस ग्रन्थ में भी ६४ है । करकचतुर्थी तथा कायज्वली व्रतकथा, गङ्गामानसिक तन्त्रों की तालिका प्रस्तुत हुई है। स्नान, गङ्गामाहात्म्य, दधिवामनस्तोत्र, वराहमाहात्म्य, वामदेव-कुछ ऋग्वेदीय सक्तों के संकलयिता सप्तर्षियों में से वेङ्कटगिरि माहात्म्य इत्यादि कई छोटी-छोटी पोथियाँ एक । ऋग्वेद के चौथे मण्डल का ऋषि इनको माना जाता वामनपुराणान्तर्गत कहलाती हैं। १४०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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