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________________ ५८४ वामन अवतार विष्णु के दस अवतारों में से वामन अवतार पाँचवाँ है वामन का शाब्दिक अर्थ है बौना भगवान् ने यह अवतार असुरों से पृथ्वी को देवों को दिलाने के लिए लिया था। इस कथा का मूल सर्वप्रथम ऋग्वेद के विष्णुसूक्त में पाया जाता है । शतपथ ब्राह्मण में वामनअवतार का संक्षिप्त वर्णन है। वामनपुराण में उसी को विस्तृत रूप दे दिया गया है । वामनपुराण से यह मालूम होता है कि भगवान् विष्णु ने कई बार वामन रूप धारण किया था । त्रिविक्रम नामक वामनावतार में उन्होंने धुन्धु नामक असुर को ढककर तीन ही चरणों में सारे भुवन को वश में कर लिया । इसी प्रकार अन्य वामन अवतारों में विष्णु ने अपने प्रिय देवों की निर्बलता पर दया करके अपनी माया से असुरों को ठगकर उनसे पृथ्वी, स्वर्ग, लक्ष्मी आदि को छुड़ाया । वामन की प्रसिद्ध कथा बलि के सम्बन्ध में है । वाममार्ग वाम सुन्दर सरग, रोचक उपासनाभागं । --- = शाक्तों के दो मार्ग है- दक्षिण (सरल) और वाम (मधुर)। पहला वैदिक तान्त्रिक तथा दूसरा अवैदिक तान्त्रिक सम्प्रदाय है । भारत ने जैसे अपना वैदिक शाक्त मत औरों को दिया, वैसे ही जान पड़ता है कि उसने वामाचार औरों से ग्रहण भी किया । आगमों में वामाचार और शक्ति की उपासना की अद्भुत विधियों का विस्तार से वर्णन हुआ है। 'चीनाचार' आदि तन्त्रों में लिखा है कि वसिष्ठ देव ने चीन देश में जाकर बुद्ध के उपदेश से तारा का दर्शन किया था । इससे दो बातें स्पष्ट होती हैं । एक तो यह कि चीन के शाक तारा के उपासक थे और दूसरे यह कि तारा की उपासना भारत में चीन से आयी। इसी तरह कुलालिकाम्नायतन्त्र में मगों को ब्राह्मण स्वीकार किया गया है । भविष्यपुराण में भी मगों का भारत में लाया जाना और सूर्योपासना में साम्ब की पुरोहिताई करना वर्णित है । पारसी साहित्य में भी पीरे-मगाँ' अर्थात् मगाचार्य की चर्चा है मगों की उपासनाविधि में मद्य मांसादि के सेवन की विशेषता थी। प्राचीन हिन्दू और बौद्ध तन्त्रों में शिव-याक्ति अथवा बोधिसत्व-यशक्ति के सामन प्रसंग में पहले सूर्यमूर्ति की भावना का भी प्रसंग है । वयानी सिद्धों, वाममागियों और मगों के पंचमकार सेवन की तुलना की जाय तो पता लगेगा कि किसी काल Jain Education International में लघु एशिया से लेकर चीन तक मध्य एशिया और भारत आदि दक्षिणी एशिया में शाक्रमत का एक न एक रूप में प्रचार रहा होगा । कनिष्क के समय में महायान और वज्रयान मत का विकास हुआ था और बौद्ध शाक्तों के द्वारा पञ्चमकार की उपासना इनकी विशेषता थी । वामाचार अथवा वाममार्ग का प्रचार बंगाल में अधिक व्यापक रहा । दक्षिणमार्गी शाक्त वाममार्ग को हेय मानते हैं । उनके तन्त्रों में वामाचार की निन्दा हुई है । वामनावतार - वामाचार , वैदिक दक्षिणमार्गी वर्णाश्रम धर्म का पालन करने वाले थे। अवैदिक बौद्ध आदि वामाचारी चक्र के भीतर बैठकर सभी एक जाति के सभी द्विज या ब्राह्मण हो जाते थे । वामाचार प्रच्छन्न रूप से वैदिक दक्षिणाचार पर जब आक्रमण करने लगा तो दक्षिणाचारी वर्णाश्रम धर्म के नियम टूटने लगे, वैदिक सम्प्रदायों में भी जाति-पाँति तोड़ने वाली शाखाएँ बन गयीं। वीर शैवों में बसवेश्वर का सम्प्रदाय, पाशुपतों में लकुलीश सम्प्रदाय, शैवों में कापालिक, वैष्णवों में बैरागी और गुसाई इसी प्रकार के सुधारकदल पैदा हो गये। वैरागियों और वसवेश्वर पन्थियों के सिवा सभी सुधारक दल मद्यमांसादि सेवन करने लगे । कोई गृहस्थ ऐसा नहीं रह गया जिसके गृहदेवता या कुलदेवताओं में किसी देवी की पूजा न होती हो । वाममार्ग बाहर से आया सही, परन्तु शाक्त मत और समान संस्कृति होने के कारण यहाँ खूब घुल-मिलकर फैल गया । दे० ' वामाचार' तथा 'वामाचारी' | वाममार्गी शेव - अवैदिक पंचमकारों का सेवन करने वाले, जाति-पांति का भेद भाव न रखने वाले शाक्त वाममार्गी शैव कहलाते हैं । कापालिकों को इस कोटि में स्पष्ट रूप से रखा जा सकता है । वाममार्ग का प्रभाव परवर्ती सभी शाकों पर म्यूनाधिक हो गया था। परिभाषा इस प्रकार कही वामाचार -- वामाचार की जाती है : पञ्चतत्त्वं खपुष्पञ्च पूजयेत् कुलयोषितम् । वामाचारी भवेत्तत्र वामो भूत्वा यजेत् पराम् ॥ [पञ्चतत्त्व अथवा पञ्चमकार, खपुष्प अर्थात् रजस्वला के रज और कुलस्त्री की पूजा करे । ऐसा करने से वामाचार होता है । इसमें स्वयं वाम होकर परा शक्ति की पूजा करे।] चाण्डाली, चर्मकारी, माती, मत्स्याहारिणी, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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