SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 530
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१६ मानवाचकम् [कडदान-तमिल शैवों में मानवाचकम कडन्दान एक आचार्य हुए हैं। ये मेयकण्डदेव के शैव थे तथा इन्होंने 'उष्मे विलesम्' नामक सिद्धान्त प्रस्थ लिखा । यह ग्रन्थ चौदह तमिल शैव सिद्धान्त ग्रन्थों में से एक है। इसमें ५४ छन्दों में प्रश्नोत्तर के रूप में सिद्धान्त की मुख्य शिक्षाओं का वर्णन हुआ है। मानसतीचं महत्व - सत्य तीर्थ है, क्षमा तीर्थ है, इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना भी तीर्थ है, सब प्राणियों पर दया करना भी तीर्थ है और सरलता भी तीर्थ है । दान तीर्थ है, मन का संयम तीर्थ है, संतोष भी तीर्थ कहा जाता है । ब्रह्मचर्य परम तीर्थ और प्रिय वचन बोलना भी तीर्थ है। ज्ञान तीर्थ है, धैर्य तोर्थ है; तप को भी तीर्थ कहा गया है। तीर्थों में भी सबसे श्रेष्ठ तीर्थ है अन्तःकरण की आत्यन्तिक विशुद्धि | जिसने इन्द्रिय-समूह को वश में कर लिया है वह मनुष्य जहाँ भी निवास करता है वहीं उसके लिए कुरुक्षेत्र, नैमिषारण्य और पुष्कर आदि तीर्थ हैं । ध्यान के द्वारा पवित्र तथा ज्ञानरूपी जल से भरे हुए, रागद्वेष रूपी मल को दूर करने वाले मानसतीर्थ में जो पुरुष स्नान करता है वह परम गति ( मोक्ष ) को प्राप्त होता है । मानसोल्लास - ( २ ) सुरेश्वराचार्य या ( पूर्वाश्रम के ) मण्डन मिश्र कृत मानसोल्लास को दक्षिणामूर्तिस्तोत्रवार्तिक भी कहते हैं । (२) यह राजनीति का प्रसिद्ध ग्रन्थ है इसकी रचना कल्याणी के चालुक्य वंशी राजा चतुर्थ सोमेश्वर ने की थी । माया- शंकराचार्य के अनुसार सम्पूर्ण वेदान्त एक वाक्य में कहा जा सकता है ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मव नापर: ।' [ ब्रह्म सत्य और जगत् मिथ्या है; जीव भी ब्रह्म ही है, अन्य नहीं ।] इस प्रकार केवल एक तत्त्व ब्रह्म ही जगत् में प्रतिभासित है । अपनी ही जिस शक्ति से ब्रह्म संसार में प्रतिभासित होता है वह माया है। माया शुद्ध भ्रम अथवा ज्ञान का अभाव नहीं है । यह भावरूपा ह | इसको न सत्य कह सकते हैं और न असत्य; यह दोनों का युग्म है ( सत्यानृते मिथुनीकृत्य ) यह सत्य इसलिए नहीं है कि केवल ब्रह्म ही एक मात्र सत्य है; इसको असत्य भी नहीं कह सकते, क्योंकि इसी के द्वारा ब्रह्म जगत् में प्रतिभासित होता है । वास्तव में यह दोनों से विलक्षण है ( सदसद् विलक्षण ) । यह शक्तिरूपा है । इसको अध्यास Jain Education International मानवाचकम् कन्दान-मायाखण्डन टीका ( आरोप ) भी कहते हैं । जिस प्रकार भ्रम के द्वारा शुक्ति ( सीप ) में रजत ( चाँदी ) का आरोप हो जाता है। उसी प्रकार माया के कारण ब्रह्म में जगत् का आरोप हो जाता है । जब वास्तविक ज्ञान ( प्रमा ) उत्पन्न होता है। तो भ्रान्ति दूर हो जाती है । माया के दो कार्य हैं - (१) आवरण और ( २ ) विक्षेप । आवरण से मोह उत्पन्न होता है जिसके कारण जीवात्मा में ब्रह्म और जगत् के बीच भ्रम उत्पन्न होता है और यह जगत् को सत्य समझने लगता है। विक्षेप के कारण ब्रह्म जगत् में प्रतिभासित होता है जब ब्रह्म अविद्या में विक्षिप्त होता है तो जीव बन जाता है और जब माया में विक्षिप्त होता है तो ईश्वर कहलाता है । शाङ्करमत में माया के निम्नांकित लक्षण है : - ( १ ) यह सांख्य की प्रकृति के समान जड़ है किन्तु न तो ब्रह्म से स्वतंत्र है और न वास्तविक (२) यह शक्तिरूपा ब्रा की सहवर्तनी और उस पर सर्वथा अवलम्बित है (३) यह अनादि है (४) यह सत् और असत् से विलक्षण है (६) यह वर्तमात्र हैं, किन्तु इसकी व्यावहारिक सत्ता है (७) यह अध्यास ( आरोप ) और भ्रान्ति है; इसकी सत्ता उसी समय तक है जब तक जीवात्मा भ्रम में रहता है (८) वह विज्ञान ( वास्तविक ज्ञान ) से दूर करने योग्य है ( विज्ञान निरस्या) और (९) इसका आश्रय और विषय दोनों ब्रह्म हैं। रामानुजाचार्य ने शङ्कर के इस मायावाद का घोर खण्डन किया है । वे माया को ईश्वर की वास्तविक शक्ति मानते हैं जिसके द्वारा वह जगत् की सृष्टि करता है । वे सृष्टि को मिथ्या न मानकर उसे वास्तविक और ईश्वर की लीला भूमि मानते हैं । मायातन्त्र' आगमतत्त्व विलास में उत तन्त्रों की सूची में से एक तन्त्र । मायावादशाङ्करमतानुसार सम्पूर्ण प्रपक्ष की सत्यत्वप्रतीति अध्यास या माया के ही कारण है । इसी से अद्वैतवाद को अध्यासवाद या मायावाद कहते हैं । दे० 'माया ।' मायावादखण्डन टीका - स्वामी जयतीर्थाचार्य ने 'मायावाद खण्डन टीका' रची। इसमें इन्होंने मध्व के मतों का ही विवेचन किया है । यह पन्द्रहवीं शताब्दी का ग्रन्थ है । मायाशक्ति माया (विश्व) सृष्टि के अभौतिक उपादान का नाम है। इससे नियति की उत्पत्ति हुई जो सभी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy