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________________ मार्कण्डेय-मालती माधव पदार्थों को नियमित करती है। नियति से काल तथा काल तक उनका पूजन करना चाहिए। इससे पूजक 'जातिसे गुणशरीर की उत्पत्ति होती है। स्मर'-पूर्व जन्म की घटनाओं को स्मरण रखनेवाला-हो मार्कण्डेयक्षेत्र-(गङ्गा-गोमतीसंगम )। वाराणसी-गाजी- जाता है तथा उस लोक को पहुंच जाता है जहाँ से फिर पुर के बीच कैथी बाजार के पास यह तीर्थ स्थल पड़ता संसार में लोटने की आवश्यकता नहीं पड़ती (अनुशासन, है। यहीं पर मार्कण्डेय महादेव का मन्दिर है। यह क्षेत्र अध्याय १०९, बृ० सं० १०४.१४-१६)। मार्गशीर्ष की मार्कण्डेय जी की तपोभूमि बतलायी जाती है। यात्री पूर्णिमा को चन्द्रमा की अवश्य पूजा की जानी चाहिए मन्दिर में भी ठहर सकते हैं। शिवरात्रि को यहाँ मेला क्योंकि इसी दिन चन्द्रमा को सुधा से सिञ्चित किया गया लगता है । मन्दिर से प्रायः दो फलाँग की दूरी पर गंगा था। इस दिन गौओं को नमक दिया जाय, तथा माता, में गोमती नदी मिलती है। यहाँ सन्तान प्राप्ति के लिए बहिन, पुत्री और परिवार की अन्य स्त्रियों को एक-एक अनुष्ठान-पूजन शीघ्र फलदायक होता है । जोड़ा वस्त्र प्रदान कर सम्मानित करना चाहिए। इस मार्कण्डेय पुराण-यह महापुराणों में से एक है। मार्कण्डेय मास में नृत्य-गीतादि का आयोजन कर एक उत्सव भी ऋषि द्वारा प्रणीत होने के कारण इसका यह नाम पड़ा। किया जाना चाहिए । मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को ही दत्तात्रेय जयन्ती मनायी जानी चाहिए। दे० कृत्यकल्पतरु का मत्स्यपुराण, ब्रह्म वैवर्तपुराण, नारदीय पुराण, भागवत नैत्य कालिक काण्ड, ४३२-३३; कृत्यरत्नाकर, ४७१-७२ । पुराण आदि के अनुसार मार्कण्डेय पुराण में नौ हजार नौ मार्जारी भक्ति-शैव आगमों के अनुसार जीवात्मा की सौ श्लोक होने चाहिए । परन्तु उपलब्ध पोथियों में केवल अवस्था देवता की दया पर ठीक उसी तरह आश्रित होती है छः हजार नौ सौ श्लोक पाये जाते हैं। इसके प्रारम्भिक अध्यायों में मरणोत्तर जीवन को विस्तृत कथा कही गयी जिस प्रकार बिल्ली के बच्चों का जीवन अपनी माँ की दया पर आधारित होता है । बिल्ली अपने मुंह से जब तक है । इस पुराण का मुख्य अंश 'चण्डी सप्तशती' है, जिसका नवरात्र में पाठ होता है। इस सप्तशती का अंश ७८वें न पकड़े, वे असहायावस्था में एक ही स्थान में पड़े रहते अध्याय से ९०वें अध्याय तक है । मार्कण्डेय पुराण का यही है । इसी तरह परमेश्वर पर पूर्णतः अवलम्बित भक्त है। अंश अलग प्रकाशित पाया जाता है । ब्रह्मवादिनी मदालसा इसकी विलोम वानरी भक्ति है, जिसमें बन्दर के का पवित्र जीवनचरित भी इसमें वर्णित है ! मदालसा ने बच्चे की तरह जीवात्मा अपनी ओर से भी आराध्य को शैशव में ही अपने पुत्र को ब्रह्मतत्त्व का उपदेश किया, कुछ पकड़ कुछ पकड़ने का प्रयास करता है । दे० मर्कटात्मज भक्ति । जिसके राजा होने पर भी जीवन में ज्ञान और योग का। मार्तण्ड सप्तमी-पौष शुक्ल सप्तमी को इसका अनुष्ठान सुन्दर समन्वय रहा। होता है । उस दिन उपवास करने का विधान है । 'मार्तण्ड' शब्द का उच्चारण करते हुए उस अवसर पर सूर्य का मार्गशीर्षकृत्य-यह सम्पूर्ण मास अत्यन्त पवित्र माना जाता है । मास भर बड़े प्रातः काल भजन मण्डलियाँ भजन तथा पूजन करना चाहिए । व्रतो को अपने शुद्धीकरण के लिए गोमूत्र या गोमय या गोदुग्ध या गोदधि लेना चाहिए । कीर्तन करती हुई निकलती है । गीता (१०.३५) में स्वयं अग्रिम दिन सूर्य का 'रवि' नाम लेकर पूजन करना चाहिए। भगवान् ने कहा है 'मासाना मार्गशीर्षोऽहम् ।' यहाँ इस इस प्रकार उसे दो दिनों के लिए हर मास यह आचरण एक मास से सम्बद्ध कुछ महत्त्वपूर्ण विषयों का उल्लेख किया वर्ष तक करना चाहिए । एक दिन किसी गौ को घास जा रहा है । सतयुग में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारम्भ किया। इसी मास में कश्यप या ऐसा ही कोई खाद्य पदार्थ देना चाहिए। इससे सूर्य ऋषि ने सुन्दर कश्मीर प्रदेश की रचना की। इसलिए लोक की प्राप्ति होती है। इसी मास में महोत्सवों का आयोजन होना चाहिए । मार्ग- मालती माधव-संस्कृत भाषा का नाटक जिसमें कापालिक शीर्ष शुक्ल १२ को उपवास प्रारम्भ कर प्रति मास की सम्प्रदाय के क्रिया-कलापों का वर्णन पाया जाता है। द्वादशी को उपवास करते हए कार्तिक की द्वादशी को नाटक का मुख्य पात्र कापालिक सन्यासी अघोरघण्ट था, पूरा करना चाहिए। प्रति द्वादशी को भगवान विष्ण के जो राजधानी के वामुण्डा मन्दिर का पुजारी तथा एक केशव से दामोदर तक १२ नामों में से एक-एक मास बड़े शैव ती श्रीशैल से सम्बन्धित था। कपाल कूण्डला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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