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________________ ५०२ रोहिणी नक्षत्र में हो तो वह तिथि महाज्येष्ठी कहलाती है। इस दिन दान, जप करने से महान् पुण्यों की प्राप्ति होती है । महातन्त्र - 'आगमतत्त्वविलास' में उल्लिखित ६४ तन्त्रों की सूची में यह भी एक तन्त्र है । महातपोद्यतानि अनेक छोटे-छोटे विधि-विधानों का इसी शीर्षक में यत्र-तत्र वर्णन किया जा चुका है। इसलिए यहाँ पृथक परिगणन नहीं किया जा रहा है । महातृतीया - माथ अपना चैत्र मास की तृतीया को 'महातृतीया कहते हैं। इसकी गौरी देवता है। मनुष्य इस दिन उनके चरणों में गुड़-धेनु अर्पित करे तथा स्वयं गुड़ न खाये । इस आचरण से उसे अत्यन्त कल्याण तथा आनन्द तो प्राप्त होता ही है, साथ ही मरणोपरान्त वह गौरी लोक प्राप्त करता है।[ गुड़-धेनु के विस्तृत वर्णन के लिए देखिये मत्स्यपुराण, ८४ ] । - - महात्मा ( महात्मन् ) दर्शनशास्त्र में इस शब्द का प्रयोग सर्वातिशयी तथा ऐकान्तिक आत्मा अथवा विश्वात्मा के लिए होता है । किसी सन्त अथवा महापुरुष के लिए आदरार्थ भी इसका प्रयोग किया जाता है । महादान महादान संख्या में दस या सोलह है। इनमें स्वर्णदान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। इसके पश्चात् भूमि, आवास, ग्राम- कर के दान आदि का क्रमश: स्थान है । स्वर्णदान सबसे मूल्यवान् होने से उत्तम माना गया है। इसके अन्तर्गत 'तुलादान' अथवा 'तुलापुरुषदान' है । सर्वा धिक दान देने वाला तुला के पहले पलड़े पर बैठकर दूसरे पलड़े पर समान भार का स्वर्ण रखकर उसे ब्राह्मणों को दान करता था । बारहवीं शताब्दी में कन्नौज के एक राजा ने इस प्रकार का तुलादान एक सौ बार तथा १४वीं शताब्दी के आरंभ में मिथिला के एक मन्त्री ने एक बार किया था। चीनी यात्री ह्वेनसांग हर्षवर्धन शीलादित्य के प्रत्येक पांचवें वर्ष किये जाने वाले प्रयाग के महादान का वर्णन करता है। यज्ञोपवीत के अवसर पर या महायशों के अवसर पर धनिक पुरुष स्वर्ण निर्मित नौ, कमल के फूल, आभूषण, भूमि आदि यज्ञान्त में ब्राह्मणों को दान कर देते हैं । आज भी महादानों का देश में अभाव नहीं है । सभी बड़े तीर्थों में सत्र चलते हैं जहाँ नित्य ब्राह्मणों, संन्यासियों एवं पंगु, लुंज व्यक्तियों को भोजन Jain Education International महातन्त्र-महाद्वादशी दिया जाता है । ग्राम-ग्राम में प्रत्येक हिन्दू परिवार में ऐसे ब्राह्मणभोज नाना अवसरों पर कराये जाते हैं। प्रथम शताब्दी के उपवदात्त के गुहाभिलेख से ज्ञात है कि वह एक लाल ब्राह्मणों को प्रतिवर्ष १ लाख गौ १६ ग्राम, विहार-भूमि, तालाब आदि दान करता था । सैकड़ों राजाओं ने असंख्य ब्राह्मणों का वर्षो तक और कभी कभी आजीवन पालन-पोषण किया। आज भी मठों, देवालयों के अधीन देवस्व अथवा देवस्थान की करहीन भूमि पड़ी है, जिससे उनके स्वामी मठाधीश लोग बड़े धनवानों में गिने जाते हैं । महादेव (शिव) - त्रिमूर्ति के अन्तर्गत शिव सर्वाधिक लोकप्रिय देवता हैं । गाँवों में इन्हें महादेव कहते हैं और प्रमुख देवता के रूप में उनका पूजन एक गोल पत्थर के (अर्ध्यपात्र) के बीच में होता है । उनके पवित्र वाहन 'नन्दी' की मूर्ति (जो धर्म की प्रतीक है) भी सम्मुख निर्मित होती है। उनकी पूजा प्रधान रूप से सोमवार को होती है क्योंकि वे सोम, ( स + उमा - सोम), पार्वती से संयुक्त माने जाते हैं। उनके प्रति कोई पशु बलि नहीं होती है। विश्व पत्र, चावल, चन्दन, पुष्प द्वारा उनके भक्त उनकी अर्चा करते हैं। ग्रीष्म काल में उनके ऊपर तीन पैरों वाली एक टिखटी के सहारे मिट्टी के पात्र की स्थापना करते हैं। जिसके नीचे छिद्र होता है जिससे बूंद-बूंद कर समस्त दिन मूर्ति पर जल पड़ा करता है । वर्षा न होने पर कभी कभी ग्रामवासी महादेव को जलपात्र में निमग्न कर देते हैं। ऐसा विश्वास है कि शिव को जल में निमग्न करने से वर्षा होती है । - । महादेव सरस्वती स्वयंप्रकाशानन्द सरस्वती के शिष्य । इन्होंने तत्त्वानुसन्धान नामक एक प्रकरण ग्रन्थ लिखा । इस पर इन्होंने अद्वैतचिन्ताकौस्तुम नाम की टीका भी लिखी । तत्त्वानुसन्धान बहुत सरल भाषा में लिखा गया है। इनका स्थितिकाल १८वीं शताब्दी था । महादेवी ( शिवपत्नी) - शिव की शक्ति का नाम । हजारों नाम व रूपों में ये विश्व को दीप्त करती हैं । प्रकृति तथा वसन्त ऋतु की आत्मा के रूप में दुर्गा तथा अनन्तता की मूर्ति के रूप में काली पूजित महादेवी होती है । महाद्वादशी - भाद्रपद की श्रवण नक्षत्रयुक्ता द्वादशी इस नाम से विख्यात है । इस दिन उपवास तथा विष्णु का पूजन करने से अनन्त पुण्यों की उपलब्धि होती है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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