SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 517
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गावा महानन्दा नवमी-महाफलवत ५०३ विष्णु धर्मोत्तर ( १.१६१.१-८ ) में लिखा है कि यदि है। कुछ विद्वान् भारती को इसका संकलनकार या भाद्रपद शुक्ल पक्ष की द्वादशी बुधवार को पड़े और उस टिप्पणी लेखक ही मानते हैं। इस प्रकार यह ग्रन्थ और दिन श्रवण नक्षत्र हो तो वह अत्यन्त महती (बड़ी से बड़ी) प्राचीन हो सकता है। यह दो भागों में है, किन्तु इसका होती है। इसके अतिरिक्त आठ अन्य भी पवित्र महा- प्रथम भाग ही प्रकाशित एवं अनूदित है । द्वादशियाँ है, जिन्हें जया, जयन्ती, उन्मीलिनी, वेञ्जुला, इसके प्रथम तथा द्वितीय अध्याय प्रास्ताविक हैं। तीसरे त्रिस्पृशा आदि कहा जाता है । में ब्रह्म के ध्यान-चिन्तन का कथोपकथन है । शेष अध्याय महानन्दा नवमी-माघ शुक्ल नवमी को महानन्दा कहते न केवल विधिवत् पूजा अपितु चरित्र, परिवार तथा विसर्जन हैं । यह तिथि व्रत है। एक वर्षपर्यन्त इसका अनुष्ठान सम्बन्धी क्रियाओं का विवरण उपस्थित करते हैं। इनमें होता है । दुर्गा इसकी देवता हैं। वर्ष को चार-चार मासों चक्रपूजा तथा पञ्चमकार-महिमा भी सम्मिलित है।। के तीन भागों में बांटकर प्रति भाग में भिन्न-भिन्न प्रकार महानुभांव--इस पन्थ को मानभाऊ सम्प्रदाय या दत्तात्रेय के पुष्प, धूप, नैवेद्य देवी जी को भिन्न-भिन्न नामों से सम्पदाय भी कहते हैं। इसका वर्णन अन्यत्र दत्तात्रेय । अर्पण किये जाते हैं । इससे मनुष्य की कामनाएं पूरी होती सम्प्रदाय के रूप में हुआ है । दे० 'दत्तात्रेय-सम्प्रदाय' । हैं तथा उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। महानुभाव पंथ-मानभाऊ सम्प्रदाय का ही शुद्ध रूप महानुमहानवमी-(१) यह दुर्गा-पूजा का उत्सव है। इसके लिए भाव पन्थ है । दे० 'दत्ता० सम्प्रदाय' ।। देखिए कृत्यकल्पतरु ( राजधर्म ) पृ० १९१-१९५ तथा महापौर्णमासीव्रत-प्रत्येक मास की पौर्णमासी को इस व्रत राजनीतिप्रकाश पृ० ४३९-४४४ । का अनुष्ठान विहित है। एक वर्ष तक इसमें हरि का (२) आश्विन शुक्ल अथवा कार्तिक शुक्ल अथवा मार्ग- पूजन होता है। इस दिन छोटी वस्तु का भी दान महान् शीर्ष शुक्ल नवमी को यह व्रत आरम्भ होता है। यह पुण्य प्रदान करता है। तिथि व्रत है। दुर्गा इसकी देवता हैं। एक वर्षपर्यन्त महाप्रलय निरूपण-निर्गणवादी संत साहित्य में इस ग्रन्थ इसका अनुष्ठान होता है । पुष्प, धूप तथा विभिन्न स्नानो- की गणना होती है। इसकी रचना १८वीं शताब्दी में पकरण समर्पित किये जाते हैं । कुछ मासों में कन्याओं को महात्मा जगजीवन दास द्वारा हुई, जो 'सतनामी' भोजन कराया जाता है। इससे व्रती देवीलोक को प्राप्त साधु थे । करता है। महाप्रसाद-संस्कार पूर्वक देवता को अर्पित नैवेद्य । वैष्णव महानाग-महानाग का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण (११.२,७, लोग जगन्नाथजी के भोग लगे हुए भात को महाप्रसाद १२) में हुआ है, जहाँ यह विशुद्ध पौराणिक नाम है। कहते हैं । कहीं कहीं बलि-पशु के मांस को भी महाप्रसाद महानारायणोपनिषद्-वैष्णव साहित्य (सामान्य) में इसकी कहा गया है। भी गणना होती है। रचना-काल वि० पू० दूसरी शताब्दी महाफल द्वादशी-विशाखा नक्षत्र युक्त पौष कृष्ण एकादशी है । इसमें वासुदेव को विष्णु का एक स्वरूप कहा गया को इस व्रत का प्रारम्भ होता है । विष्णु इसके देवता हैं । है, जिससे यह प्रकट होता है कि उस समय भी कृष्ण एक वर्षपर्यन्त इसका अनुष्ठान विहित है। शरीर की किसी न किसो अर्थ में विष्णु के रूप माने जाते थे। यह ___शुद्धि के लिए कतिपय मासों में कुछ वस्तुएँ प्रयुक्त की उपनिषद् कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा की है। जानी चाहिए तथा प्रति द्वादशी को क्रमशः इन वस्तुओं महामिरष्ट-यज्ञ दक्षिणा का वृषभ, जो यजुर्वेद संहिता में से एक वस्तु दान में दी जाय, जैसे-धी, तिल, चावल। (तैत्तिरीय संहिता १.८,९,१, का० सं० १५.४,९; मैत्रा० इस व्रत से व्रती को मरणोपरान्त विष्ण लोक की प्राप्ति सं० २.६,५) में राजसूय की दक्षिणा के रूप में उल्लि- होती है। खित है। महाफलवत-एक पक्ष, चार मास अथवा एक वर्ष तक महानिर्वाणतन्त्र-बहु प्रचलित, प्रसिद्ध तन्त्रग्रन्थ । इसके व्रती को प्रतिपदा से पूर्णिमा तक केवल एक वस्तु का रचयिता राजामोहन राय के गुरु हरिहरानन्द भारती कहे निम्नोक्त क्रम से आहार करना चाहिए। क्रम यह हैजाते हैं और इस प्रकार इसका रचनाकाल १९वीं शताब्दी दुग्ध, पुष्प, समस्त खाद्य पदार्थ नमक को छोड़कर, तिल, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy