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________________ ५०१ महत्तमव्रत-महाज्येष्ठी (२) संमान्य अथवा विशाल के अर्थ में 'महत्' नपुं- श्मशान में शवासन पर बैठते हैं और चिताभस्म लगाते सकलिंग विशेषण है। पुंलिंग में यह 'महान्' और स्त्री- है । काल को नष्ट कर जो स्वयं मृत्यु को जीतने वाले लिंग में 'महती' होता है । कर्मधारय और बहुब्रीहि समास (मृत्युञ्जय) है उनको महाकाल कहा गया है। इनका में यह 'महा' बनकर उत्तरपद के साथ मिल जाता है। प्रसिद्ध मन्दिर 'महाकाल निकेतन' उज्जयिनी में है और कतिपय समस्त पदों में यह निन्दा या अशुभ अर्थ प्रकट ये द्वादश ज्योतिलिंगों में गिने जाते हैं। करता है, यथा : महातैल (रुधिर), महाब्राह्मण (महापात्र) महाकाली-शाक्त मतानुसार दस महादेवियों में से प्रथम महामांस (नरमांस), महापथ (मृत्युमाग), महानिद्रा महाकाली हैं। इनके शक्तिमान अधीश्वर महाकाल रुद्र हैं। (मृत), महायात्रा (मृत्यु), महासंवैद्य (यम), महाशंख महाकौलज्ञानविनिर्णय-दसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध का एक (नरमुंड) तान्त्रिक ग्रन्थ । "शंखे तैले तथा मांसे वैद्ये ज्योतिषि के द्विजे । महाकौशीतकि-कौशीतकि का नाम शाङ्खायन ब्राह्मण में यात्रायां पथि निद्रायां महच्छब्दो न दीयते ।।" अनेक बार आया है । इसीलिए शाङ्खायन ब्राह्मण के भाष्यमहत्तमव्रत-भाद्र शुक्ल प्रतिपदा को इस व्रत का अनुष्ठान कार ने इसे 'कौशीतकि ब्राह्मण' कहा है। इसी भाष्य में होता है। यह तिथिव्रत है। भगवान् शिव की अनेक स्थानों पर 'महाकौशीतकि ब्राह्मण' नाम भी जटाओं से मण्डित तथा पञ्च मुखयुक्त सुवर्ण-रजत की आया है। प्रतिमा का कलश में रखकर पूजन किया जाता है । पंचा महाक्रतु (यज्ञक्रतु)-भारतीय कर्मकाण्ड अथवा याज्ञिक कार्यों में अश्वमेध यज्ञ एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कृत्य है। मृत में स्नान कराकर पुष्पादि चढ़ाते हुए १६ फल भगवान् की सेवा में अर्पित किए जाते हैं । व्रत के अन्त में गौ का इसकी गणना महाक्रतु या यज्ञक्रतु नाम से होती है। दान किया जाता है। इसके आचरण से व्रती दीर्घायु महागणपति-गाणपत्य सम्प्रदाय के छ: उपसम्प्रदायों में तथा राज्य प्राप्त करता है। प्रथम 'महागणपति' है। महागणाधिपति सम्प्रदाय-गाणपत्य सम्प्रदाय का प्रथम उपमहत्विज-महत्त्विज चार प्रधान पुरोहितों का सामूहिक नाम है । विशिष्ट यज्ञों में होता, उद्गाता, अध्वर्यु तथा सम्प्रदाय । महागणाधिपति के उपासक उन्हें महाब्रह्मा या स्रष्टा मानते हैं । प्रलय के बाद महागणपति ही रह जाते ब्रह्मा मिलकर महत्विज कहलाते हैं। है और आरम्भ में वे ही फिर से सृष्टि करते हैं । महर्षि वेदमन्त्रों के प्रकटकर्ता या विधि निर्धारक ऋषि महाचतुर्थी-भाद्र शुक्ल पक्ष की चतुर्थी यदि रविवार या कहे जाते हैं। किसी महान् ऋषि को महर्षि कहते हैं। भौमवार को पड़े तो वह महाचतुर्थी कहलाती है। उस दे० 'महाब्राह्मण'। दिन गणेश जी की पूजा करने से कामनाओं की सिद्धि महा उपनिषद्-एक परवर्ती संक्षिप्त वैष्णव उपनिषद् । इसमें कथित है कि नारायण (विष्णु) ही शाश्वत ब्रह्म है; उन्हीं महाचैत्री-चैत्री पूर्णिमा को बहस्पति और चन्द्रमा यदि चित्रा से सांख्य वर्णित पचीस तत्व उत्पन्न हुए हैं, शिव तथा नक्षत्र में एक साथ पड़ जायें तो वह महाचैत्री कहलाती है। ब्रह्मा उनके मानस पुत्र तथा आश्रितदेवता है। वैष्णव महाजयासप्तमी-जब सूर्य शुक्ल पक्ष की सप्तमी को दूसरी उपनिषदों में यह सर्वप्राचीन मानी जाती है। राशि पर पहुँचता है, तो वह तिथि ‘महाजया सप्तमी' महाकार्तिको-कार्तिक की पूर्णमासी को चन्द्रमा और बृहः कहलाती है । उस दिन स्नान, जप, होम तथा देवताओं स्पति यदि कृत्तिका नक्षत्र में हों तब यह तिथि महाकार्तिकी की पूजा करने से करोड़ों गुना पुण्य मिलता है। यदि कही जाती है। चन्द्र रोहिणी में भी हो सकता है। इस उसी दिन सूर्य की प्रतिमा को दूध या घी से स्नान कराया दिन सोमवार का योग इस पर्व को बहुत श्रेष्ठ बना जाय तो मनुष्य सूर्यलोक प्राप्त कर लेता है। यदि उस देता है। दिन उपवास किया जाय तो मनुष्य स्वर्ग प्राप्त करता है। महाकाल (शिव)-शिव के अनेक रूपों में से एक प्रलयंकर महाज्येष्ठी-ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को ज्येष्ठा नक्षत्र हो, रूप। इस स्वरूप में शिव मुण्डों की माला पहनते हैं। बृहस्पति तथा चन्द्रमा भी उसी नक्षत्र में हों तथा सूर्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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