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________________ मध्वसिद्धान्तसार-मनु भक्ति विषयक सुन्दर स्थलों को चुनकर 'भक्तिरत्नावली' के प्रवर्तक) द्वारा विरचित एक ग्रन्थ मनविरक्तकरन मक ग्रन्थ लिखा। यह भागवत भक्ति का सर्वश्रेष्ठ परिचय गु-का है । इसमें उनके ज्ञानोपदेशों का संग्रह है। देता है । लोरिय कृष्णदास ने इसका बंगला में अनुवाद मनस्-सांख्य दर्शन के सिद्धान्तानुसार प्रकृति से महत् किया है। अथवा बुद्धि (व्यक्ति की विचार एवं निश्चय करने वाली शक्ति) की उत्पत्ति होती है। इस तत्त्व से अहङ्कार की एक परवर्ती माध्व सन्त ईश्वरपुरी ने चैतन्यदेव को उत्पत्ति होती है। फिर अहङ्कार से मनस् की उत्पत्ति होती इस संप्रदाय में दीक्षित किया। इस नये नेता (चैतन्य) ने माध्व मत का अपनी दक्षिण की यात्रा में अच्छा प्रचार है । यह सूक्ष्म अंग व्यक्ति को समझने की शक्ति देता है किया (१५०९-११)। उन्होंने मावों को अपनी शिक्षा तथा बुद्धि को वस्तुओं के सम्बन्ध में प्राप्त किये गये ज्ञान एवं भक्तिपूर्ण गीतों से प्रोत्साहित किया। इन्होंने उक्त की सूचना देता है । यह बुद्धि द्वारा निर्णीत विचारों का सम्प्रदाय में सर्वप्रथम संकीर्तन एवं नगर-कीर्तन का प्रचार पालन कर्मेन्द्रियों द्वारा कराता है। वैशेषिक दर्शन के किया । चैतन्यदेव की दक्षिण यात्रा के कुछ ही दिनों बाद अनुसार नवद्रव्यों में मनस् नवां द्रव्य है। इसके द्वारा कन्नड भाषा में गीत रचना आरंभ हई। कन्नड गायक आत्मा ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान के सम्पर्क में आता है । भक्तों में मुख्य थे पुरन्दरदास । प्रसिद्ध माध्व विद्वान् पाञ्चरात्र के व्यूहसिद्धान्त में प्रद्युम्न को मनस् तत्त्व कहा व्यासराज चैतन्य के समकालीन थे। इन्होंने अनेक ग्रन्थ । गया है। लिखे जो आज भी पठन-पाठन में प्रयुक्त होते हैं। मनसा-शक्ति के अनेक रूपों में से मनसा नामक देवी की अठारवीं शताब्दी में कृष्णभक्ति विषयक गीत व स्तुतियों पूजा बंगाल में बहुत प्रचलित है। इनकी प्रशंसा के गीत की रचना कन्नड में तिम्मप्पदास एव मध्वदास ने की। ना भी पर्याप्त संख्या में रचे गये हैं, जिनका साहित्यिक नाम इसी समय चिदानन्द नामक विद्वान प्रसिद्ध कन्नड ग्रन्थ' 'मनसामंगल' है। ये सर्पो की माता मानी जाती हैं और 'हरिभक्ति रसायन' के रचयिता हए। मध्व के सिद्धान्तों इनकी पूजा से सर्पो का उपद्रव शान्त रहता है। का स्पष्ट वर्णन कन्नड काव्य-ग्रन्थ 'हरिकथासार' में हआ मनसावत-ज्येष्ठ शुक्ल की हस्त नक्षत्र युक्त नवमी अथवा है । मध्वमत के अनेक संस्कृत ग्रन्थों का अनुवाद कन्नडी बिना हस्त नक्षत्र के भी दशमी को स्नुही के वृक्ष में हुआ । माध्व संन्यासी शङ्कर के दशनामी संन्यासियों की शाखा पर मनसा देवी का पूजन करना चाहिए। हेमाद्रि में ही परिगणित है। स्वयं मध्व एवं उनके मुख्य शिष्य (चतुर्वर्ग चिन्तामणि, प्रथम ६२१ ) के अनुसार मनसा तीर्थ (दसनामियों में से एक) शाखा के थे । परवर्ती अनेक देवी की पूजा आषाढ़ कृष्ण पंचमी को होनी चाहिए। माध्व 'पुरी' एवं 'भारती' शाखाओं के सदस्य हए। मनसा श्रावण कृष्ण एकादशी को भी पूजी जाती है। मध्वसिद्धान्तसार-मध्वाचार्य के शिष्य पद्मनाभाचार्य ने देखिए, मनसा देवी तथा मनसा मंगल की कथा के लिए माध्व मत का वर्णन 'पदार्थसंग्रह' नामक ग्रन्थ में किया ए० सी० सेन की 'बंगाली भाषा तथा साहित्य' (प० है। ‘पदार्थसंग्रह' के ऊपर उन्होंने 'मध्व सिद्धान्त सार' नामक व्याख्या भी लिखी। मनावी-काठक संहिता ( ३०.१) तथा शतपथ ब्राह्मण मनभाऊ सम्प्रदाय-दे० 'दत्त सम्प्रदाय' । (१.१,४,१६) में मनु की स्त्री को मनावी कहा गया है । मनवाल महामुनि-श्री वैष्णव सम्प्रदाय के एक आचार्य। मनीषा पञ्चक-स्वामी शङ्कराचार्य विरचित एक उपदेशाइनका अन्य नाम राम्यजामातमुनि था। स्थिति काल त्मक लघु पद्य रचना। इसके पाँच शार्दूलविक्रीडित छन्दों १४२७-१५०० वि० के मध्य था। ये श्री वैष्णवों की । में धार्मिक और आध्यात्मिक उपदेश दिये गये हैं। दक्षिणी शाखा 'तेङ्गले' के नेता थे । वेदान्तदेशिक के मनु-मनु को वैदिक संहिताओं (ऋ० १.८०,१६,८.६३, पश्चात् इन्होंने श्रीरङ्गम् में वेदान्त शिक्षा प्रचलित रखी। १;१०.१००,५) आदि; अ०वे० १४.२,४१; तैत्ति० सं० इनके भाष्य विद्वत्तापूर्ण तथा बहु युक्त है। १.५,१,३;७.५,१५,३,६,७,१;३,३,२,१;५.४,१०,५;६.६, मनविरक्तकरन गुटका-संत चरनदास (चरनदासी पन्थ ६,१; का० सं०८१५; शतपथ ब्राह्मण १.१,४,१४ जै० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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