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________________ मनु का श्रौतसूत्र मनुस्मृति मनुस्मृति स्मृतियों में यह प्राचीनतम तथा सर्वाधिक मान्य हैं । इसमें समाजशास्त्र, नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र एवं अर्थशास्त्र सभी का समावेश है। अतः सामाजिक व्यवस्था का यह आधारभूत ग्रन्थ है। परम्परा के अनुसार इसके रचयिता मनु थे, जो आदि व्यवस्थापक माने जाते हैं। परन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से यह कहना कठिन है कि यह एक काल में तथा एक व्यक्ति के द्वारा प्रणीत हुई । इतना कहा जा सकता है कि मानव परम्परा में धर्मशास्त्र का प्रणयन हुआ। मनु के प्रथम उल्लेख ऋग्वेद (१.८०, १६, १.११४,२;२.३३,१३) में पाये जाते है। वे मानव जाति के पिता माने गये हैं । एक ऋषि प्रार्थना करते हैं कि वे मनु के पैतृक मार्ग से व्युत न हों (मानः पथः पित्र्यान्मा नवादधि दूरं नष्ट परावतः । ऋग्वेद ८.३०, ३) एक दूसरी वैदिक परम्परा के अनुसार मनु प्रथम यज्ञकर्ता थे (ऋग्वेद १०.६३,७) तैत्तिरीय संहिता और ब्राह्मण ग्रन्थों के अनु भगवद्गीता (१०६) भी मनुओं का उल्लेख करती करती है । मनु नामक अनेक उल्लेखों से प्रतीत होता है। सार मनु का कथन भेषज है- 'यद्वै किञ्च मनुरवदत्तदभे कि यह नाम न होकर उपाधि है । मनु शब्द का मूल मन् धातु (मनन करना) से भी यही प्रतीत होता है । मेधातिथि, जो मनुस्मृति के भाष्यकार हैं, मनु को उस व्यक्ति की उपाधि कहते हैं, जिसका नाम प्रजापति है। वे धर्म के प्रकृत रूप के ज्ञाता थे एवं मानव जाति को उसकी शिक्षा देते थे । इस प्रकार यह विदित होता है कि मनु एक उपाधि है। मनुरचित मानव धर्मशास्त्र' भारतीय धर्मशास्त्र में आदिम व मुख्य ग्रंथ माना जाता है। प्राचीन ग्रन्थों में जहाँ मानव धर्मशास्त्र के अवतरण आये हैं वे सूत्र रूप में हैं। और प्रचलित मनुस्मृति के श्लोकों से नहीं मिलते। वह सूत्रग्रन्थ 'मानव धर्मशास्त्र' अभी तक देखने में नहीं आया । वर्तमान मनुस्मृति को उन्हीं मूल सूत्रों के आधार पर लिखी हुई कारिका मान सकते हैं। वर्तमान सभी स्मृतियों में यह प्रधान समझी जाती है। दे० 'मनुस्मृति' । मनु का श्रौतसूत्र मनुरचित मानव श्रौतसूत्र विशेष प्रसिद्ध हैं । इसके वर्ण्यविषयों में प्रथम अध्याय में प्राक्सोम, दूसरे में अग्निष्टोम, तीसरे में प्रायश्चित्त, चौथे में प्रवर्ग्य, पाँचवें में दृष्टि, छठें में चयन, सातवें में वाजपेय, आठवें में अनुग्रह, नवें में राजसूय, दसवें में शुल्वसूत्र और ग्यारहवें अध्याय में परिशिष्ट है। अग्निस्वामी बालकृष्ण मिश्र और कुमारिलभट्ट इसके भाष्यकार हैं। जम्' । तै० सं० २-२-१०-२ - मनुर्वै यत्किञ्चावदत्तभेषजम्भैषजतायें ।' ताण्डय ब्राह्मण (२३,१६,१७) और शतपथ ब्राह्मण में मनु और जलप्लावन की कथा पायी जाती है । निरुक (अ० ३) में मनु को स्मृतिकार के रूप में स्मरण किया गया है। महाभारत स्वायम्भुव मनु (शान्ति २१. १२ ) । प्राचेतसमनु ( शान्ति, ५७.४३ ) और कहीं केवल मनु का उल्लेख करता है। गौतम, आपस्तम्ब तथा वसिष्ठ धर्मसूत्रों में मनु को प्रमाणरूप में उद्धृत किया गया है। अन्यत्र महाभारत (शान्ति, ५७.४३ ) में कहा गया है कि ब्रह्मा ने एक लक्ष श्लोकों का धर्मशास्त्र बनाया। इसमें प्रतिपादित धर्मों का प्रवर्तन स्वायम्भुव मनु ने किया इन पर आधारित शास्त्रों का प्रवर्तन उशना और बृहस्पति ने किया। नारदस्मृति की भूमिका के गद्यभाग में कथन है कि मनु ने एक लक्ष श्लोक एक सहस्र अस्सी अध्याय और चौबीस प्रकरणों में धर्मशास्त्र की रचना की। मनु ने इसको नारद को दिया, जिन्होंने इसे बारह सहस्र श्लोकों में संक्षिप्त किया। नारद ने इसको मार्कण्डेय को दिया, जिन्होंने इसका आकार आठ हजार श्लोकों तक सीमित किया । मार्कण्डेय से यह धर्मशास्त्र सुमति भार्गव को प्राप्त हुआ, जिन्होंने इसे चार सहस्त्र श्लोकों में निबद्ध किया। संभवतः मनु का प्रायः वही वर्तमान रूप है । काशी प्रसाद जयसवाल ( मनू एण्ड याज्ञवल्क्य) के अनुसार 7 , ४९४ उ० प्रा० ३.१५,२ आदि) में ऐतिहासिक व्यक्ति माना गया है। ये सर्वप्रथम मानव था जो मानव जाति के पिता तथा सभी क्षेत्रों में मानव जाति के पथ प्रदर्शक स्वीकृत हैं । वैदिककालीन जलप्लावन की कथा के नायक मनु ही हैं (काठ० सं० ११.२) । मनु को विवस्वान् ( ऋ० ८.५२, १ ) या वैवस्वत (अ० ० ८.१०,२४) विवस्वन्त (सूर्य) का पुत्र सार्वणि ( सवर्णा का वंशज ) एवं सांवण (ऋ० वे० ८.५१, १ ) ( संवरण का वंशज ) कहते हैं प्रथम नाम पौराणिक है, जबकि दूसरे नाम ऐतिहासिक हैं । सावण को लुड्विग तुर्वसुओं का राजा कहते हैं, किन्तु यह मान्यता सन्देहपूर्ण है । पुराणों में मनु को मानव जाति का गुरु तथा प्रत्येक मन्वन्तर में स्थित कहा गया है। वे जाति के कर्त्तव्यों (धर्म) के ज्ञाता है। --- Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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