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________________ ४७२ भस्मजाबालउपनिषद्-भागवतपुराण पाया जाता है । भगवान् कृष्ण के पुत्र साम्ब को कुष्ठ रोग भागवततात्पर्यनिर्णय-भागवतपुराण के व्याख्यारूप में हो गया था। उनकी चिकित्सा करने के लिए गरुड मध्वाचार्य द्वारा रचित एक ग्रन्थ । यह माध्वमत (द्वैतवाद) शकद्वीप से मग ब्राह्मणों को यहाँ लाये, जिन्होंने सूर्य का प्रतिपादन करता है। मन्दिर में सूर्य की उपासना करके उनका कुष्ठ रोग भागवतदेवालय-भागवत सम्प्रदाय के मन्दिरों को देवालय अच्छा कर दिया। सूर्योपासना का विशेष वर्णन इस कहते हैं, जिनमें कृष्ण या विष्णु के अन्य अवतारों की पुराण में पाया जाता है। कलि में स्थापित अनेक राज मूर्तियाँ स्थापित होती हैं। वंशों का इतिहास भविष्य पुराण में वर्णित है। इसमें भागवतधर्म-दे० 'भक्ति' और 'भागवत' । उद्भिज्ज विद्या का भी वृत्तान्त है जो आधुनिक विज्ञान की भागवत पुराण-यह पाँचवाँ महापुराण है । इस पुराण का दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। पूर्ण नाम श्रीमद्भागवत महापुराण है। इसमें बारह स्कन्ध, भस्मजाबाल उपनिषद्-एक परवर्ती उपनिषद् । ३३५ अध्याय और कुल मिलाकर १८,००० श्लोक है । भाई गुरदास की वार-सोलहवीं शती के अन्त में भाई श्रीमद्भागवत का प्रतिस्पर्धी देवीभागवत नाम का पुराण है। गुरुदास हुए थे । ये चौथे, पाँचवें तथा छठे सिक्ख गुरुओं इसमें भी १८,००० श्लोक एवं द्वादश स्कन्ध है। शाक्त के समकालीन थे । इन्होंने सिक्खधर्म को लेकर एक काव्य । इसी को महापुराण मानते हैं। दोनों के नाम में भी श्रीमत् ग्रन्थ रचा, जिसका नाम 'भाई गुरुदास को वार' है। और देवी का अन्तर है । श्रीमान् विष्णु की उपाधि है, इसका आंशिक अंग्रेजी अनुवाद, मैकोलिफ महोदय ने। इसलिए श्रीमद्भागवत का अर्थ है वैष्णव भागवत । नारद किया है। तथा ब्रह्म पुराण में भागवत के जितने लक्षणों का निर्देश भाई मणिसिंह-सिक्खों के अन्तिम गुरु गोविन्दसिंह को है वे श्रीद्भागवत में पाये जाते हैं। नारदपुराण में आस्था हिन्दू धर्म के ओजस्वी कृत्यों की ओर अधिक थी। श्रीमद्भागवत की संक्षिप्त विषयसूची तथा पद्मपुराण में खालसा पन्थ की स्थापना के पूर्व उन्होंने दुर्गाजी की महात्म्य का वर्णन किया गया है। इन दोनों के अनुसार आराधना की थी। इस समय उन्होंने मार्कण्डेय पुराण में श्रीमद्भागवत ही महापुराण सिद्ध होता है। उद्धत दुर्गास्तुति का अनुवाद अपने दरबारी कवियों से मत्स्यपुराण के मतानुसार भी यही महापुराण ठहरता कराया। खालसा सैनिकों के उत्साहवर्द्धनार्थ वे इस रचना है । परन्तु मत्स्यपुराण में कथित एक लक्षण श्रीमद्भागवत तथा अन्य हिन्दू कथानकों का प्रयोग करते थे। उन्होंने में नहीं मिलता। उसमें लिखा है कि शारद्वत कल्प में जो और भी कुछ ग्रन्थ तैयार कराये, जिनमें हिन्दी ग्रन्थ मनुष्य और देवता हुए उन्हीं का विस्तृत वृत्तान्त भागवत अधिक थे, कुछ फारसी में भी थे । गुरुजी के देहत्याग के में कहा गया है। किन्तु प्रचलित श्रीमद्भागवत में शारद्वत बाद भाई मणिसिंह ने उनके कवियों और लेखकों के द्वारा कल्प का प्रसङ्ग नहीं है। किन्तु उसी के जोड़ में पाद्म कल्प अनुवादित तथा रचित ग्रन्थों को एक जिल्द में प्रस्तुत को कथा वणित की गयी है । इसलिए जान पड़ता है कि कराया, जिसे 'दसवें गुरु का ग्रन्थ' कहते हैं। किन्तु इसे मत्स्यपुराण में या तो शारद्वत कल्प की चर्चा प्रक्षिप्त है या कट्टर सिक्ख लोग सम्मानित ग्रन्थ के रूप में स्वीकार नहीं शारद्वत और पाद्म दोनों एक ही कल्प के दो नाम हैं, या करते हैं । इस ग्रन्थ का प्रयोग गोविन्दसिंह के सामान्य मत्स्यपुराण में वणित भागवत प्रचलित श्रीमद्भागवत श्रद्धालु शिष्य सांसारिक कामनाओं की वृद्धि के लिए करते नहीं है। हैं, जबकि धार्मिक कार्यों में 'आदि ग्रन्थ' का प्रयोग भक्ति शाखा का, विशेष कर वैष्णव भक्ति का यह होता है। उपजीव्य ग्रन्थ है। इसको 'निगम तरु का स्वयं गलित भागवत उपपुराण-कुछ शाक्त विद्वानों के अनुसार उन्तीस अमृत-फल' कहा गया है । जिस प्रकार वेदान्तियों ने गीता उपपुराणों में भागवत पुराण की भी गणना है। परन्तु । को प्रसिद्ध प्रस्थान मानकर उस पर भाष्य लिखा है वैष्णव लोग इस मत को स्वीकार नहीं करते। उनके उसी प्रकार वैष्णव आचार्यों ने भागवत को वैष्णवधर्म का अनुसार 'भागवत पुराण ही नहीं, अपितु महापुराण है। मुख्य प्रस्थान मानकर उस पर भाष्यों और टीकाओं की दे० 'भागवत पुराण'। रचना की है। वल्लभाचार्य ने भागवत को व्यास की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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