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________________ पुरुषोत्तमतीर्थ उसमें भगवान् विष्णु (वासुदेव) और विश्वकर्मा ब्राह्मण के जगन्नाथपुरी तथा जगन्नाथ की कुछ मौलिक विशेषवेष में प्रकट हुए। विष्णु ने राजा से कहा कि मेरे ताएँ है। पहले तो यहाँ किसी प्रकार का जातिभेद सहयोगी विश्वकर्मा मेरी मूर्ति का निर्माण करेंगे। नहीं है, दूसरी बात यह है कि जगन्नाथ के लिए पकाया कृष्ण, बलराम और सुभद्रा की तीन मूर्तियाँ बनाकर राजा गया चावल वहाँ के पुरोहित निम्न कोटि के लोगों से भी को दी गयीं । तदुपरान्त विष्णु ने राजा को वरदान दिया ले लेते हैं। जगन्नाथ को चढ़ाया हुआ चावल कभी कि अश्वमेध के समाप्त होने पर जहाँ इन्द्रद्युम्न ने स्नान अशुद्ध नही होता, इसे 'महाप्रसाद' की संज्ञा दी गयी किया है वह बाँध (सेतु) उसी के नाम से विख्यात होगा। है । इसकी तीसरी प्रमुख विशेषता रथयात्रा पर्व की जो व्यक्ति उसमें स्नान करेगा वह इन्द्रलोक को जायेगा महत्ता है, यह पुरी के चौबीस पर्वो में से सर्वाधिक महत्त्व और जो उस सेतु के तट पर पिण्डदान करेगा उसके २१ ।। का है। यह आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को आरम्भ पीढ़ियों तक के पूर्वज मुक्त हो जायेंगे। इन्द्रद्यम्न ने इन तीन होता है। जगन्नाथजी का रथ ४५ फुट ऊँचा, ३५ मूर्तियों की उस मन्दिर में स्थापना की। स्कन्दपुराण के वर्गफुट क्षेत्रफल का तथा ७ फुट व्यास के १६ पहियों उपभाग उत्कलखण्ड में इन्द्रद्युम्न की कथा पुरुषोत्तममाहात्म्य से युक्त रहता है। उनमें १६ छिद्र रहते हैं और गरुड़के अन्तर्गत कुछ परिवर्तनों के साथ दी गयी है। कलंगी लगी रहती है । दूसरा रथ सुभद्रा का है जो १२ इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि प्राचीन काल में पहियों से युक्त और कुछ छोटा होता है। उसका मकट पुरुषोत्तमक्षेत्र को नीलाचल नाम से अभिहित किया गया पद्म से युक्त है । बलराम का तीसरा रथ १४ पहियों से था और कृष्ण की पूजा उत्तरी भारत में होती थी । मैत्रा युक्त तथा हनुमान के मुकुट से युक्त है । ये रथ तीर्थयणी उपनिषद् (१.४) से इन्द्रद्युम्न के चक्रवर्ती होने का यात्रियों तथा मजदूरों द्वारा खींचे जाते हैं। भावुकतापूर्ण पता चलता है। ७वीं शताब्दी ई० से वहाँ बौद्धों के गीतों से उत्सव मनाया जाता है। विकास का भी पता चलता है। सम्प्रति जगन्नाथतीर्थ __जगन्नाथमन्दिर के निजी भृत्यों की एक सेना है जो का पवित्र स्थल २० फुट ऊँचा, ६५२ फुट लम्बा तथा ३६ रूपों तथा ९७ वर्गों में विभाजित कर दी गयी है। ६३० फुट चौड़ा है। इसमें ईश्वर के विविध रूपों के पहले इनके प्रधान खुर्द के राजा थे जो अपने को १२० मन्दिर हैं, १३ मन्दिर शिव के, कुछ पार्वती के जगन्नाथ का भृत्य समझते थे । तथा एक मन्दिर सूर्य का है। हिन्दु आस्था के प्रायः काशी की तरह जगन्नाथधाम में भी पंच तीर्थ हैप्रत्येक रूप यहाँ मिलते हैं । ब्रह्मपुराण के अनुसार जगन्नाथ मार्कण्डेय, पट (कृष्ण), बलराम, समुद्र और इन्द्रद्युम्नपुरी में शवों और वैष्णवों के पारस्परिक संघर्ष नष्ट सेत् । इनमें से प्रत्येक के विषय में कुछ कहा जा सकता हो जाते हैं । जगन्नाथ के विशाल मन्दिर के भीतर चार है। मार्कण्डेय की कथा ब्रह्मपुराण में वर्णित है। खण्ड हैं । प्रथम भोगमन्दिर, जिसमें भगवान को भोग (अध्याय ५६.७२-७३) विष्णु ने मार्कण्डेय से जगन्नाथ के लगाया जाता है, द्वितीय रङ्गमन्दिर, जिसमें नृत्य-गान उत्तर में शिव का मन्दिर तथा सेतु बनवाने को कहा था। आदि होते हैं, तृतीय सभामण्डप, जिसमें दर्शक गण (तीर्थ- कुछ समय के उपरान्त यह मार्कण्डेयसेतु के नाम से यात्री) बैठते हैं और चौथा अन्तराल है। जगन्नाथ के विख्यात हो गया। ब्रह्मपुराण के अनुसार तीर्थयात्री मन्दिर का गुम्बज १९२ फुट ऊँचा और चक्र तथा ध्वज को मार्कण्डेयसेतु में स्नान करके तीन बार सिर झुकाना से आच्छन्न है। मन्दिर समुद्रतट से ७ फाग दूर है। तथा मन्त्र पढ़ना चाहिए। तत्पश्चात् उसे तर्पण करना यह सतह से २० फुट ऊँची एक छोटी सी पहाड़ी पर तथा शिवमन्दिर जाना चाहिए । शिव के पूजन में 'ओम् स्थित है। यह गोलाकार पहाडी है जिसे नीलगिरि नमः शिवाय' नामक मूल मन्त्र का उच्चारण अत्यावश्यक कहकर सम्मानित किया जाता है। अन्तराल की प्रत्येक है। अघोर तथा पौराणिक मन्त्रों का भी उच्चारण होना तरफ एक बड़ा द्वार है, उनमें पूर्व का सबसे बड़ा है और चाहिए । तत्पश्चात् उसे वट वृक्ष को जाकर उसकी तीन भव्य है । प्रवेशद्वार पर एक बृहत्काय सिंह है।। इसीलिए बार परिक्रमा करनी चाहिए और मन्त्र से पूजा करनी इस द्वार को सिंहद्वार कहा जाता है। चाहिए। ब्रह्मपुराण (५७.१७) के अनुसार वट स्वयं ५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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