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________________ ३६८ पुरुषन्ति यह नाम ऋग्वेद (१.११२.२३ ९,५८,३) में दो बार उल्लिखित है । पहले परिच्छेद में अश्विनौ द्वारा रक्षित तथा दूसरे में एक संरक्षक का नाम है, जो वैदिक गावकों को उपहार दान करता है। दोनों स्थानों पर यह नाम 'ध्वसन्ति' या 'ध्वच' नाम के साथ संयुक्त है। इन तीनों का जोड़ पुरुषवाचक है, किन्तु व्याकरण की दृष्टि से यह स्त्रीलिङ्ग भी हो सकता है। । पुरुषविशेष - योग प्रणाली में ईश्वर को 'पुरुषविशेष' की संज्ञा दी गयी है। यह पुरुष विशेष योग सिद्धान्त के मुख्य विचारों से शिथिलतापूर्वक संलग्न है वह विशेष प्रकार का आत्मा है जो सर्वज्ञ, शाश्वत एवं पूर्ण है तथा कर्म, पुनर्जन्म एवं मानविक दुर्बलताओं से परे है। वह योगियों का प्रथम शिक्षक है, वह उनकी सहायता करता है जो ध्यान के द्वारा कैवल्य प्राप्त करना चाहते हैं और उसके प्रति भक्ति रखते हैं किन्तु वह सृष्टिकर्ता नहीं कहलाता । उसका प्रकटीकरण रहस्यात्मक मन्त्र 'ओम्' से होता है । 1 1 पुरुषार्थ इसका शाब्दिक अर्थ है 'पुरुष द्वारा प्राप्त करने योग्य । आजकल की शब्दावली में इसे 'मूल्य' कह सकते हैं । हिन्दू विचारशास्त्रियों ने चार पुरुषार्थ माने है - (१) धर्म (२) अर्थ (३) काम एवं (४) मोक्ष धर्म का अर्थ है जीवन के नियामक तत्त्व, अर्थ का तात्पर्य है जीवन के भौतिक साधन, काम का अर्थ है जीवन की वैध कामनाएँ और मोक्ष का अभिप्राय है जीवन के सभी प्रकार के बन्धनों से मुक्ति प्रथम तीन को पवर्ग और अन्तिम को अपवर्ग कहते हैं। इन चारों का चारों आश्रमों से सम्बन्ध है | प्रथम आश्रम ब्रह्मचर्य धर्म का दूसरा गार्हस्थ्य धर्म एवं काम का तथा तीसरा वानप्रस्थ एवं चौया संन्यास मोक्ष का अधिष्ठान है। यों धर्म का प्रसार पूरे जीवनकाल पर है किन्तु यहाँ धर्म का विशेष अर्थ है अनुशासन तथा सारे जीवन को एक दार्शनिक रूप से चलाने की शिक्षा, जो प्रथम या ब्रह्माचर्याधम में ही सीखना पड़ता है। इन चारों पुरुषायों में भी विकास परिलक्षित है, यथा एक से दूसरे की प्राप्ति-धर्म से अर्थ, अर्थ से काम तथा धर्म से पुनः गोक्ष की प्राप्ति होती है। भावक दर्शन केवल अर्थ एवं काम को पुरुषार्थ मानता है । किन्तु चार्वाकों का सिद्धान्त भारत में बहुमान्य नहीं हुआ । पुरुषोत्तम गीता के अनुसार पुरुष की तीन कोटियाँ हैं --- Jain Education International पुरुषन्ति पुरुषोत्तमतीयं (१) क्षर पुरुष, जिसके अन्तर्गत चराचर नश्वर जगत् का समावेश है, (२) अक्षर पुरुष अर्थात् जीवात्मा, जो वस्तुतः अजर और अमर है और (३) पुरुषोत्तम, जो दोनों से परे विश्व के मूल में परम तत्व है, जिसमें सम्पूर्ण विश्व का समाहार हो जाता है। पुरुषोत्तम तत्त्व की प्राप्ति ही जीवन का परम पुरुषार्थ है । पुरुषोत्तमतीर्थं ( जगन्नाथपुरी) - उड़ीसा के चार प्रसिद्ध तीर्थो, भुवनेश्वर, जगन्नाथ, कोणार्क तथा जाजपुर में जगन्नाथ का महत्वपूर्ण अस्तित्व है। इसे पुरुषोत्तम तीर्थ भी कहा जाता है । ब्रह्मपुराण में इसके सम्बन्ध में लगभग ८०० श्लोक मिलते हैं । जगन्नाथपुरी शंखक्षेत्र के नाम से भी विख्यात है । यह भारतवर्ष के उत्कल प्रदेश में समुद्र तट पर स्थित है । इसका विस्तार उत्तर में विराजमण्डल तक है । इस प्रदेश में पापनाशक तथा मुक्तिदायक एक पवित्र स्थल है। यह बेत से घिरा हुआ दस योजन तक विस्तृत है। उत्कल प्रदेश में पुरुषोत्तम का प्रसिद्ध मन्दिर है। जगन्नाथ की सर्वव्यापकता के कारण यह उत्कल प्रदेश बहुत पवित्र माना जाता है । यहाँ पुरुषोत्तम ( जगन्नाथ) के निवास के कारण उत्कल के निवासी देवतुल्य माने जाते हैं। ब्रह्मपुराण के ४३ तथा ४४ अध्याओं में मालवास्थित उज्जयिनी ( अवन्ती) के राजा इन्द्रद्युम्न का विवरण है। वह बड़ा विद्वान् तथा प्रतापी राजा था। सभी वेदशास्त्रों के अध्ययन के उपरान्त वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि वासुदेव सर्वश्रेष्ठ देवता है। फलतः वह अपनी सारी सेना, पण्डितों तथा किसानों के साथ वासुदेवक्षेत्र में गया। दस योजन लम्बे तथा पाँच योजन चौड़े इस वासुदेवस्थल पर उसने अपना खेमा लगाया । इसके पूर्व इस दक्षिणी समुद्रतट पर एक वटवृक्ष था जिसके समीप पुरुषोत्तम की इन्द्रनील मणि की बनी हुई मूर्ति थी । कालक्रम से यह वालुका से आच्छत हो गयी और उसी में निमग्न हो गयी। उस स्थल पर झाड़ियाँ और पेड़ पौधे उग आये। इन्द्रद्युम्न ने वहां एक अश्वमेध यज्ञ करके एक बहुत बड़े मन्दिर ( प्रासाद) का निर्माण कराया | उस मन्दिर में भगवान् वासुदेव की एक सुन्दर मूर्ति प्रतिष्ठित करने की उसे चिन्ता हुई। स्वप्न में राजा ने वासुदेव को देखा जिन्होंने उसे समुद्रतट पर प्रातःकाल जाकर कुल्हाड़ी से उगते हुए वटवृक्ष को काटने को कहा। राजा ने ठीक समय पर वैसा ही किया । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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