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________________ त्रियुगीनारायण-त्रिवेणी ३०७ कि त्रियुग एरवर्ती भारत के कालक्रम को कहते हैं तथा त्रिविक्रम-(१) त्रिविक्रम का शाब्दिक अर्थ है 'तीन चरण पौधों की उत्पत्ति उसमें से प्रथम युग में हुई। शतपथ वाला' । यह विष्णु का ही एक नाम है । ऋग्वेद में विष्णु के ब्रा० (७.२,४,२६) में इससे तीन ऋतुओं-वसन्त, वर्षा (लम्बे) डगों से आकाश में चढ़ने का उल्लेख है । 'विष्णु एवं पतझड़ का अर्थ लगाया गया है । सूर्य का ही एक रूप है । वह अपने प्रातःकालीन, मध्याह्नत्रियुगीनारायण-हिमालय स्थित एक तीर्थ स्थान । बदरी- कालीन तथा सायंकालीन लम्बे डगों से सम्पूर्ण आकाश नाथ के मार्ग में पर्वतशिखर पर भगवान् नारायण भूदेवी को नाप लेता है। इसी लिए उसको ऋग्वेद में 'उरुक्रम' तथा लक्ष्मी देवी के साथ विराजमान हैं । सरस्वती गङ्गा (लम्बे डगवाला) कहा गया है । इसी वैदिक कल्पना के की धारा यहाँ है, जिससे चार कुण्ड बनाये गये हैं-ब्रह्म- आधार पर पुराणों में वामन की कथा की रचना हुई और कुण्ड, रुद्रकुण्ड, विष्णुकुण्ड और सरस्वतीकुण्ड । रुद्रकुण्ड उनको त्रिविक्रम कहा गया। पुराणों के अनुसार विष्णु के में स्नान, विष्णुकुण्ड में मार्जन, ब्रह्मकुण्ड में आचमन और वामन अवतार ने अपने तीन चरणों से राजा बलि की सरस्वतीकुण्ड में तर्पण होता है । मन्दिर में अखण्ड धूनी सम्पूर्ण पृथिवी और उसकी पीठ नाप ली। इसलिए जलती रहती है जो तीन युगों से प्रज्वलित मानी जाती विष्णु त्रिविक्रम कहलाये। है । कहते हैं शिव-पार्वती का विवाह यहीं हुआ था । (२) १३वीं शती के उत्तरार्द्ध में वैष्णवाचार्य मध्वरचित त्रिरात्रवत-इस व्रत में अक्षारलवण भोजन तथा भूमिशयन वेदान्तसूत्रभाष्य पर त्रिविक्रम ने 'तत्त्वप्रदीपिका' नामक का विधान है । तीन रात्रि इसका पालन करना पड़ता है, व्याख्या लिखी । गृह्यसूत्रों में विवाह के पश्चात् पति-पत्नी द्वारा इसके त्रिविक्रमत्रिरात्र व्रत-मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी को यह व्रत पालन का आदेश है। बड़े अनुष्ठानों के साथ आनुषङ्गिक प्रारम्भ होता है। प्रति मास दो त्रिरात्रव्रतों के हिसाब से रूप में इसका प्रयोग होता है। चार वर्षों तथा दो मासों में, अर्थात् ५० महीनों में कुल त्रिलोकनाथ-शिव का एक नाम । इस नाम का एक शैव १०० त्रिरात्रव्रत होते हैं । इसमें वासुदेव का पूजन होता तीर्थ है। हिमाचल प्रदेश में रटांग जोत (व्यासकुण्ड) से है । अष्टमी को एकभक्त तथा उसके बाद तीन दिन तक उतरने पर चन्द्रा नदी के तट पर खोकसर आता है । यहाँ उपवास का विधान है। कार्तिक में व्रत की समाप्ति होती डाकबंगला और धर्मशाला है। चन्द्रभागा के किनारे है । दे० हेमाद्रि, २.३१८-३२० । त्रिविक्रम 'विष्णु' का किनारे २८ मील त्रिलोकनाथ के लिए रास्ता जाता है। ही एक विरुद है। ऋग्वेद के विष्णुसुक्क में विष्णु के तीन त्रिलोकनाथ का मन्दिर छोटा परन्तु बहुत सुन्दर बना पदों (त्रिविक्रम) का उल्लेख है । पुराणों के अनुसार विष्णु ने वामन रूप में अपने तीन पदों से सम्पूर्ण त्रिलोकी को हुआ है। नाप लिया था। इस व्रत में इसी रूप का ध्यान किया त्रिलोचन-नामदेव के समकालीन एक मराठा भक्त गायक, जाता है। जिनके बारे में बहुत कम ज्ञात है । ग्रन्थ साहब में उनकी तीन त्रिविक्रमव्रत-यह विष्णुव्रत है। कार्तिक से तीन मास स्तुतियाँ मिलती हैं, किन्तु उनकी मराठी कविताएँ तथा तक अथवा तीन वर्ष तक इस व्रत का अनुष्ठान होता है। स्मृति भी उनकी जन्मभूमि में ही खो गयी ज्ञात होती है। ___ इसके अनुष्ठान से व्रती पापों से मुक्त हो जाता है । दे० ये वैष्णव भक्त थे। हेमाद्रि, २.८५४-८५५ (विष्णुधर्म० से ); कृत्यकल्पतरु, त्रिलोचनयात्रा-(१) वैशाख शुक्ल तृतीया को इस व्रत का ४२९-४३० । अनुष्ठान होता है। इसमें शिवलिङ्ग ( त्रिलोचन ) का त्रिवृत-दुग्ध, दधि तथा घृत समान भाग होने पर त्रिवृत पूजन करना चाहिए । दे० काशीखण्ड । कहलाते हैं (वैखानसस्मार्तसूत्र, ३.१०)। धार्मिक क्रियाओं (२) त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में काशी में कामेश में त्रिवृत का प्रायः उपयोग होता है। का दर्शन करना चाहिए । विशेष रूप से शनिवार के दिन त्रिवेणी-तीन वेणियों (जलधाराओं) का सङ्गम । प्रयाग कामकूण्ड में स्नान का विधान है। दे० पुरुषार्थचिन्ता- तीर्थराज का यह पर्याय है। गङ्गा और यमना दो नदियाँ मणि, २३० । यहाँ मिलती है और विश्वास किया जाता है कि सरस्वती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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