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________________ गोरखनाथी-गोलोक २४९ ग्रन्थ और मिले हैं। सभा ने गोरखनाथ के ही लिखे गोरत्नव्रत-यह गोयुग्म का वैकल्पिक व्रत है। इसमें उन्हीं हिन्दी के ३७ ग्रन्थ खोज निकाले हैं, जिनमें मुख्य ये हैं : मन्त्रों का उच्चारण होता है, जिनका प्रयोग गोयुग्म व्रत में (१) गोरखबोध (२) दत्त-गोरखसंवाद (३) गोरख- किया जाता है। नाथजीरा पद (४) गोरखनाथजी के स्फुट ग्रन्थ (५) गोला गोकर्णनाथ-उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी से ज्ञानसिद्धान्त योग (६) ज्ञानतिलक (७) योगेश्वरी- बाईस मील पर गोला गोकर्णनाथ नामक नगर है। यहाँ साखी (८) नबोध (९) विराटपुराण और (१०) गोरख- एक सरोवर है, जिसके समीप गोकर्णनाथ महादेव का सार आदि । विशाल मन्दिर है। वराहपुराण में कथा है कि भगवान् गोरखनाथी-गोरखनाथ के नाम से सम्बद्ध और उनके शङ्कर एक बार मृगरूप धारण कर यहाँ विचरण कर द्वारा प्रचारित एक सम्प्रदाय । गोरखनाथी (गोरक्षनाथी) रहे थे। देवता उन्हें ढूढ़ते हुए आये और उनमें से ब्रह्मा, लोगों का सम्बन्ध कापालिकों से अति निकट का है। विष्णु तथा इन्द्र ने मृगरूप में शङ्कर को पहचान कर ले गोरखनाथ की पूजा उत्तर भारत के अनेक मठ-मन्दिरों चलने के लिए उनकी सींग पकड़ी । मृगरूपधारी शिव तो में, विशेष कर पंजाब एवं नेपाल में, होती है। फिर भी अन्तर्धान हो गये, केवल उनके तीन सींग देवताओं के इस धार्मिक सम्प्रदाय की भिन्नतासूचक कोई व्यवस्था हाँथ में रह गये । उनमें से एक शृङ्ग देवताओं ने गोकर्णनहीं है। संन्यासी, जिन्हें 'कनफटा योगी' कहते हैं, इस नाथ में स्थापित किया, दूसरा भागलपुर जिले (बिहार) सम्प्रदाय के वरिष्ठ अंग हैं । सम्भव है ( किन्तु ठीक नहीं के शृङ्गेश्वर नामक स्थान में और तीसरा देवराज इन्द्र कहा जा सकता है ) गोरखनाथ नामक योगी ने ही इस ने स्वर्ग में । पश्चात् स्वर्ग की वह लिङ्गमूर्ति रावण द्वारा सम्प्रदाय का प्रारम्भ किया हो। इसका संगठन १३वीं दक्षिण भारत के गोकर्ण तीर्थ में स्थापित कर दी गयी । शताब्दी में हुआ प्रतीत होता है, क्योंकि गोरखनाथ का देवताओं द्वारा स्थापित मूर्ति गोला गोकर्णनाथ में है। नाम सर्वप्रथम मराठा भक्त ज्ञानेश्वररचित 'अमृतानुभव' इसलिए यह पवित्र तीर्थ माना जाता है। ( ई० १२९० ) में उद्धृत है। गोलोक-इसका शाब्दिक अर्थ है ज्योतिरूप विष्णु का लोक ( गौर्योतिरूपो ज्योतिर्मयपुरुषः तस्य लोकः स्थानम् )। गोरखनाथ ने एक नयी योग प्रणाली को जन्म दिया, विष्णु के धाम को गोलोक कहते हैं। यह कल्पना ऋग्वेद जिसे हठयोग कहते हैं। इसमें शरीर को धार्मिक कृत्यों के विष्णुसूक्त से प्रारम्भ होती है। विष्णु वास्तव में एवं कुछ निश्चित शारीरिक क्रियाओं से शुद्ध करके सूर्य का ही एक रूप है। सूर्य की किरणों का रूपक भूरिमस्तिष्क को सर्वश्रेष्ठ एकाग्रता ( समाधि), जो प्राचीन शृंगा ( बहुत सींग वाली ) गायों के रूप में बाँधा गया योग का रूप है, प्राप्त की जाती है। विभिन्न शारीरिक है । अतः विष्णुलोक को गोलोक कहा गया है। ब्रह्मप्रणालियों के शोधन और दिव्य शक्ति पाने के लिए वैवर्त एवं पद्मपुराण तथा निम्बार्क मतानुसार राधा कृष्ण विभिन्न आसन प्रक्रियाओं, प्राणायाम तथा अनेक मुद्राओं नित्य प्रेमिका हैं। वे सदा उनके साथ 'गोलोक' में, जो के संयोग से आश्चर्यजनक सिद्धि लाभ इनका लक्ष्य सभी स्वर्गों से ऊपर है, रहती हैं। अपने स्वामी की तरह होता है। ही वे भी वृन्दावन में अवतरित हुई एवं कृष्ण की विवागोरखपुर-उत्तर प्रदेश के पूर्वाञ्चल में नाथ पन्थियों का । हिता स्त्री बनीं। निम्बाकों के लिए कृष्ण केवल विष्णु यहाँ प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। यहाँ गोरखनाथजी की के अवतार ही नहीं, वे अनन्त ब्रह्म है, उन्हीं से राधा तथा समाधि के ऊपर सुन्दर मन्दिर बना हुआ है। गर्भगृह में असंख्य गोप एवं गोपी उत्पन्न होते हैं, जो उनके साथ समाधिस्थल है, इसके पीछे काली देवी की विकराल 'गोलोक' में भाँति-भाँति की लीला करते है । · मूर्ति है । यहाँ अखण्ड दीप जलता रहता है । गोरखपंथ तन्त्र-ग्रन्थों में गोलोक का निम्नांकित वर्णन पाया का साम्प्रदायिक पीठ होने के कारण यह मठ और जाता है : इसके महन्त भारत में अत्यन्त प्रसिद्ध है। यहाँ के महंत वैकुण्ठस्य दक्षभागे गोलोकं सर्वमोहनम् । सिद्ध पुरुष होते आये हैं। तत्रैव राधिका देवी द्विभुजो मुरलीधरः ।। ३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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