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________________ गोकुल-गोत्र __२४१ से दक्षिण बावर गाँव में वटेश्वर और पांचवां सुने- शान्तौ मृगाजिनं शस्तं मोक्षार्थं व्याघ्रचर्म च । सर गाँव के पश्चिम स्वर्णेश्वर । इनके दर्शनों के लिए बह- गोचर्म स्तम्भने देवि सम्भवे वाजिचर्म च ।। संख्यक यात्री आते हैं। श्रीमद्भागवत में गोकर्ण का इसके अनुसार स्तम्भन क्रिया (शत्रु के जडीकरण) में उल्लेख है : गोचर्म काम आता है। पारस्कर आदि गृह्यसूत्रों के ततोऽभिव्रज्य भनवान् केरलांस्तु त्रिगर्तकान् । अनुसार विवाह संस्कार की एक क्रिया में वर को वृषभगोकर्णाख्यं शिवक्षेत्रं सान्निध्यं यत्र धूर्जटे:।। चर्म पर बैठने का विधान है। यहाँ पर वृषभचर्म वृष्यता [ तदनन्तर बलरामजी केरल देश में गये, पुनः त्रिगर्त अथवा सर्जनशक्ति का प्रतीक है । में पहुंचे जहाँ गोकर्ण नामक शंकरजी विराजते हैं ।] देवी- (२) भूमि का एक माप : भागवत (७.३०.६०) में शाक्त पीठों में इसकी गणना को दशहस्तेन वंशेन दश वंशान् समन्ततः । गयी है : पंच चाभ्यधिकान् दद्याद् एतद् गोचर्म उच्यते ॥ केदारपीठे सम्प्रोक्ता देवी सन्मार्गदायिनी। (वसिष्ठ) मन्दा हिमवतः पृष्ठे गोकर्णे भद्रकणिका ।। [ दस हाथ लम्बे बाँस द्वारा पंद्रह-पंद्रह वर्गाकार में इसके अनुसार गोकर्ण में भद्रकणिका देवी का नापी गयी भूमि गोचर्म कहलाती है।] निवास है। गोतम-गोतम का उल्लेख ऋग्वेद में अनेक बार हुआ है, गोकूल-यह वैष्णव तीर्थ है। विश्वास किया जाता है कि किन्त किसी ऋचा के रचयिता के रूप में नहीं । यह भगवान् कृष्ण ने यहाँ गौएँ चरायी थीं । मथुरा से दक्षिण स्पष्ट है कि उनका सम्बन्ध आङ्गिरसों से था, क्योंकि छः मील दूर यह यमुना के दूसरे तट पर स्थित है । कहा गोतम प्रायः उनका उल्लेख करते हैं। ऋग्वेद की एक जाता है, श्री कृष्ण के पालक पिता नन्दजी का यहाँ गोष्ठ ऋचा में इनका पितृवाचक 'रहुगण' (१.७८.५) था। संप्रति वल्लभाचार्य, उनके पुत्र गुसाई बिट्ठलनाथजी- शब्द आया है। शतपथ ब्राह्मण में इन्हें 'माथ्व एवं गोकुलनाथजी की बैठकें हैं । मुख्य मन्दिर गोकुलनाथ विदेस' का पारिवारिक पुरोहित तथा वैदिक सभ्यता के जी का है। यहाँ वल्लभकुल के चौबीस मन्दिर बतलाये वाहक समझा गया है (१.१४.१.१०) । उसी ब्राह्मण में जाते हैं। इन्हें विदेह जनक एवं याज्ञवल्क्य का समकालीन एवं एक महालिङ्गेश्वर तन्त्र में शिवशतनाम स्तोत्र के अनुसार सूक्त का रचयिता कहा गया है । अथर्ववेद के दो परिच्छेदों महादेव गोपीश्वर का यह स्थान है : में भी इनका उल्लेख है। वामदेव तथा नोधस इनके पुत्र __ गोकुले गोपिनीपूज्यो गोपीश्वर इतीरितः । थे । उनमें वाजश्रवस् भी सम्मिलित हैं। गोकुलनाथ-व्रजभाषा के गद्यलेखक रूप में गोकुलनाथ गोत्र-इसको व्युत्पत्ति कई प्रकार से बतायी गयी है। वल्लभसम्प्रदाय के प्रसिद्ध ग्रन्थकार हुए हैं। इनकी पूर्व पुरुषों का यह उद्घोष करता है, इसलिए गोत्र कह'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' व्रजभाषा की तत्कालीन लाता है । इसके पर्याय है सन्तति, कुल, जनन, अभिजन, टकसाली रचना बहुत ही आदरणीय है। इन्होंने पुष्टि अन्वय, वंश, सन्तान आदि । कुछ विद्वानों के अनुसार मार्गीय सिद्धान्तग्रन्थों की व्याख्या भी लिखी है। 'गोत्र' शब्द का अर्थ 'गोष्ठ' है। आदिम काल में जितने गोचर-इन्द्रियों से प्रत्यक्ष होनेवाला विषय । जितना दृश्य कुटुम्बों की गायें एक गोष्ठ में रहती थीं उनका एक गोत्र जगत् है अथवा जहाँ तक मन की गति है वह सब गोचर । होता था। परन्तु इसका सम्बन्ध प्रायः वंशपरम्परा से माया का साम्राज्य है। परमतत्त्व इससे परे है। वेदान्तसार ही है। वास्तविक अथवा कल्पित आदि पुरुष से वंशमें कथन है 'अखण्डे सच्चिदानन्दमवाङ्मनसगोचरम् ।' परम्परा प्रारम्भ होती है । मनु के अनुसार निम्नांकित मूल गोचर्म-(१) गौ का चमड़ा । कई धार्मिक कृत्यों में गोचर्म गोत्र ऋषि थे: के आसन का विधान है। समयाचारतन्त्र (पटल २) में जमदग्निर्भरद्वाजो विश्वामित्रात्रिगौतमाः । विविध कर्मों में विविध आसन निम्नांकित प्रकार से बत- वसिष्ठ काश्यपागस्त्या मुनयो गोत्रकारिणः । लाये गये हैं : एतेषां यान्यपत्यानि तानि गोत्राणि मन्यते ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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