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________________ २४० गृह्यसूत्र-गोकर्णक्षेत्र वस्तुओं का उल्लेख करता है, जिनमें एक है चूल्हा तथा क्षीरोदन तैयार किया जाता था। ऋग्वेद की दानस्तुति दूसरा है जलकलश )। में गौओं के बड़े-बड़े समूहों का उल्लेख किया गया है। पुरोहितों को गौओं के दान एवं गोपालन अथवा इनके गृह्यसूत्र-धार्मिक जीवन के कर्तव्यनिर्धारक ग्रन्थों में चार स्वामित्व को विशेष महत्त्वपूर्ण ढंग से दर्शाया गया है। प्रकार के सूत्रों का सर्वोपरि महत्त्व है। वे हैं श्रौत, वैदिक कालीन गौएँ रोहित, शुक्ल, पृश्नि, कृष्ण आदि गृह्य, धर्म एवं इन्द्रजालिक ग्रन्थ । गृह्यसूत्रों को 'गृह्य' इसलिए कहा गया है कि वे घरेलू (पारिवारिक) यज्ञों रङ्गों के नाम से पुकारी जाती थीं। बैल हल तथा गाड़ी तथा परिवार के लिए आवश्यक धार्मिक कृत्यों का वर्णन खींचते थे। ये व्यक्तिगत स्वामित्व के विषय थे एवं उपस्थित करते हैं। वस्तुओं के विनिमय एवं मूल्यांकन के भी साधन थे। ___ गो शब्द का प्रयोग गौ से उत्पन्न वस्तुओं के लिए भी गृह्यसूत्रों के तीन भाग हैं। पहले भाग में छोटे यज्ञों का वर्णन है, जो प्रत्येक गहस्थ अपने अग्निस्थान में किया जाता है । प्रायः इसका अर्थ दुग्ध ही लगाया जाता पुरोहित द्वारा (या ब्राह्मण होने पर स्वतः) करता है। है, किन्तु पशु का मांस बहुत कम । इससे पशुचर्म का ये यज्ञ तीन प्रकार के हैं : (अ) घृत, तैल, दुग्ध को अग्नि बोध भी होता है. जिसे अनेक कामों में लाया जाता है। 'चर्मन' शब्द कभी-कभी गो का पर्याय भी समझा में देना, (आ) पका हुआ अन्न देना तथा (इ) पशुयज्ञ । जाता है। दूसरे भाग में सोलह संस्कारों का वर्णन है, यथा जातकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म, यज्ञोपवीत, विवाहादि, गोदान अनेक प्रकार के दानों में महत्त्वपूर्ण है । स्वतन्त्र जो जीवन की विशिष्ट अवस्थाओं से सम्बन्धित कर्म हैं। रूप से गौ का दान पुण्यकारक तो समझा ही जाता है, तीसरे में मिश्रित विषय हैं, जैसे गृहनिर्माण सम्बन्धी कर्म, अन्य धार्मिक कार्यों के साथ-विवाह, श्राद्ध आदि में भी श्राद्ध कर्म, पितृयज्ञ तथा अन्य लधु क्रियाएँ । कौशिक गृ० इसका विधान है। सू० में चिकित्सा तथा दैवी विपत्तियों को दूर करने के गो-उपचार-यगादि तथा यगान्त्य नामक तिथियों के दिन मन्त्र भी पाये जाते हैं। सभी वेदशाखाओं के उपलब्ध __ इस व्रत का विधान है। इसमें एक गौ का सम्मान तथा गृह्यसूत्रों की सूची देना आवश्यक प्रतीत होता है । ये पूजन होना चाहिए । षडशीतिमुख, उत्तरायण, दक्षिणायन हैं : (ऋक् सम्बन्धी) १. शाङ्खायन २. शाम्बव्य ३. आश्व विषुव (समान रात्रि तथा दिवस), प्रत्येक मास की संक्रालायन; (साम सम्बन्धी) ४. गोभिल ५. खादिर ६. न्तियों, पूर्णिमा, चतुर्दशी,; पञ्चमी, नवमी, सूर्य तथा जैमिनि; (शुक्लयजुर्वेद सम्बन्धी) ७. पारस्कर; (कृष्णयजुर्वेद चन्द्र ग्रहण के दिन भी इस व्रत का आचरण करना सम्बन्धी) ८. आपस्तम्ब ९. हिरण्यकेशी १०. बौधायन चाहिए। दे० कृत्यरत्नाकर, ४३३-४३४; स्मृतिकौस्तुभ ११. भारद्वाज, १२. मानव १३. वैखानस; (अथर्ववेद । सम्बन्धी) १४. कौशिक । दे० 'सूत्र' । गोकर्णक्षेत्र-कर्नाटक प्रदेश में गोवा के समीप में स्थित गो (गौ)–गौ हिन्दुओं का पवित्र पशु है। अनेक यज्ञिय एक शैवतीर्थ । यह रावण द्वारा स्थापित कहा जाता है। पदार्थ-घी, दुग्ध, दधि इसी से प्राप्त होते हैं । यह स्वयं उत्तर प्रदेश के खीरी जिले में 'गोला गोकर्णनाथ' भी पूजनीय एवं पृथ्वी, ब्राह्मण और वेद का प्रतीक है। उत्तर का गोकर्ण तीर्थ कहलाता है। गोकर्णक्षेत्र के आसभगवान् कृष्ण के जीवन से इसका घनिष्ठ सम्बन्ध है। पास कई तीर्थ है-१. माण्डव्यकुण्ड (गोकर्ण से चार मील उनको गोपाल, गोविन्द आदि विरुद इसी से प्राप्त हुए। पश्चिम) २. कोणार्क कुण्ड ३. भद्रकुण्ड (गोकर्ण मन्दिर गोरक्षा और गोसंवर्धन हिन्दू का आवश्यक कर्तव्य है।। से आध मील) ४. पुनर्भूकुण्ड और ५. गोकर्णतीर्थ (मन्दिर वैदिक कालीन भारतीयों के धन का प्रमुख उपादान गाय के समीप)। इस क्षेत्र में गोकर्णनाथ को मिलाकर पञ्चअथवा बैल है। गौ के क्षीर का पान या उसका उपभोग घृत लिङ्ग माने जाते हैं, जिनमें मुख्य लिङ्ग गोकर्णजी का है। या दधि बनाने के लिए होता था। क्षीर यज्ञों में सोमरस दुसरा देवकली के पास सरोवर के किनारे देवेश्वर महादेव, के साथ मिलाया जाता था, अथवा अन्न के साथ तीसरा भीटा स्टेशन के पास गदेश्वर, चौथा गोकर्णनाथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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