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________________ २४२ गोत्रिरात्रनत-गोदावरी किन्तु अन्यत्र मनु ने ही चौबीस गोत्रों का उल्लेख (२) भाद्र शुक्ल द्वादशी अथवा कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी किया है : को इस व्रत का प्रारम्भ करना चाहिए । तीन दिन तक उपशाण्डिल्यः काश्यपश्चैव वात्स्यः सावर्णकस्तथा । वास, लक्ष्मी, नारायण तथा कामधेनु का पूजन होना चाहिए। भरद्वाजो गौतमश्च सौकालीनस्तथापरः ॥ इसके अनुष्ठान से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। कल्किपञ्चाग्निवेश्यश्च कृष्णात्रेयवसिष्ठको । (३) यह व्रत भाद्र शुक्ल त्रयोदशी को आरम्भ करना विश्वामित्रः कुशिश्च कौशिकश्च तथापरः ।। चाहिए । तीन दिन पर्यन्त इसका आचरण होना चाहिए। घृतकौशिकमौद्गल्यौ आलम्यानः पराशरः । कामधेनु तथा लक्ष्मीनारायण की पूजा का इसमें विधान सौपायनस्तथात्रिश्च वासुकी रोहितस्तथा ॥ है। दे० हेमाद्रि, व्रतखंड, ३०३-३०८ (भविष्योत्तर पुराण वैयाघ्रपद्यकश्चैव जामदग्न्यस्तथापरः । से); व्रतप्रकाश (पत्रात्मक १६१)। चतुर्विशतिर्वे गोत्रा कथिताः पूर्वपण्डितः ।। गोवा-दक्षिण भारत की प्रेमानुरागवती एक विष्णुभक्त कुलदीपिका में उद्धृत धनञ्जयकृत धर्मप्रदीप के अन- महिला । आलवार भक्तों में पेरिया आलवार अर्थात् 'सर्वसार चालीस गोत्र निम्नांकित हैं : श्रेष्ठ भक्त' का जन्म परम्परा के अनुसार कलिसंवत्सर ४५ सौकालीनकमौद्गल्यौ पराशरबृहस्पती । में हुआ था। उनकी पुत्री अण्डाल, जो कलिसंवत् ९६ में काञ्चनो विष्णुकौशिक्यौ कात्यायनायकाण्वकाः ।। उत्पन्न हुई थी, बहुत बड़ी भक्त थी । बहुत ही मधुरभाषिणी कृष्णात्रेयः साङ्कृतिश्च कौडिन्यो गर्गसंज्ञकः । होने के कारण उसे गोदा कहते थे । उसने तमिल भाषा में आङ्गिरस इति ख्यातः अनावृकाख्यसंज्ञितः ।। 'स्तोत्र रत्नावली' पुस्तक की रचना की है, जिसमें तीन सौ अव्यजैमिनिवृद्धाख्या शाण्डिल्यो वात्स्य एव च । स्तोत्र हैं। तमिल भक्तों में इनका बड़ा आदर है । (इनकी सावालम्यानवैयाघ्रपद्यश्च घृतकौशिकः ॥ जन्मतिथि आदरार्थ अत्यन्त प्राचीन काल में मानी गयी है।) शक्तिः काण्वायनश्चैव वासुकी गौतमस्तथा । गोवान-गो=केशों का दान = खण्डन करने वाला संस्कार, शुनकः सौपायनश्चैव मुनयो गोत्रकारिणः ॥ जो दाढ़ी-मूछों के मुण्डन रूप में होता है। इसीलिए शतएतेषां यान्यपत्यानि तानि गोत्राणि मन्यते ॥ पथ ब्राह्मण में इसका अर्थ 'क्षौरकम' है। गोदान विधि गोत्रों के आदि पुरुष ब्राह्मण ऋषि थे। इसलिए (सिर का मुण्डन) पूर्ण युवावस्था की प्राप्ति पर तथा ब्राह्मणों के जो गोत्र हैं वे ही पौरोहित्य परम्परा से क्षत्रिय, विवाह के अवसर पर होती है । अथर्ववेद में इस विधि का वैश्य और शूद्रों के भी गोत्र हैं । अग्निपुराण के वर्णसङ्करो। उल्लेख है, किन्तु यह नाम नहीं है । बाद में केशान्त संस्कार पाख्यान में इस मत का उल्लेख किया गया है : का यह पर्याय हो गया, क्योंकि प्रथम बार दाढ़ी-मूछ साफ क्षत्रिय-वैश्य-शद्राणां गोत्रं च प्रवरादिकम् । करने के समय गोदान किया जाता था । दे० 'केशान्त' । तथान्यवर्णसङ्कराणां येषां विप्राश्च याजकाः ।। गोदावरी-दक्षिण भारत की गङ्गा। भारत की पवित्र नदियों जिनकी पौरोहित्य परम्परा छिन्न हो गयी है और में इसका तीसरा स्थान है। स्नान करने के समय इसका जिनके गोत्र का पता नहीं लगता उनकी गणना काश्यप ध्यान और आवाहन किया जाता है : गोत्र में की जाती है, क्योंकि कश्यप सबके पूर्वज माने जाते हैं । दे० गोत्रप्रवरमञ्जरी। गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति । गोत्रिरात्र व्रत-(१) यह व्रत आश्विन कृष्ण त्रयोदशी को कावेरि नर्मदे सिन्धो जलेऽस्मिन्सन्निधिं कुरु ॥ आरम्भ होता है । तीन दिन तक इसका आचरण किया वैदिक साहित्य में गोदावरी का उल्लेख नहीं मिलता, जाता है। इसके गोविन्द देवता हैं । गोशाला अथवा पर्ण- किन्तु रामायण के समय से इसकी चर्चा प्रारम्भ हो जाती शाला में वेदिका का निर्माण कर उस पर मण्डल बनाकर है । अरण्यकाण्ड (१३.१३.२१) में कथन है कि पञ्चवटी भगवान् कृष्ण की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए, जिसकी नामक प्रदेश गोदावरी के निकट और अगस्त्य आश्रम से दाहिनी और बायीं ओर चार-चार पटरानियां हों। चौथे दो योजन की दूरी पर स्थित है।। दिन होम, गौओं को अर्घ्यदान तथा उनका पूजन होना महाभारत के वनपर्व (८८.२) में गोदावरी का निम्नांचाहिए। इस व्रत के आचरण से सन्तान की वृद्धि होती है। कित वर्णन पाया जाता है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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