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________________ १९२ पवित्र स्थल है और सरस्वती उससे भी अधिक पवित्र है । सरस्वतीतट पर स्थित तीर्थ सरस्वती से भी अधिक पवित्र है और पृथूदक सरस्वती पर स्थित तीर्थों में भी सबसे अधिक पवित्र है। इससे उत्तम कोई तीर्थ नहीं है । शल्यपर्व ( ३९.३३-३४ ) में कहा गया है कि जो व्यक्ति सरस्वती के उत्तरी तट पर पृथूदक में पवित्र ग्रन्थों का अध्ययन करते हुए जीवन का उत्सर्ग करता है वह निर्वाण को प्राप्त होता है तथा जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है। वामन पुराण (३९.२० और २३ ) में इसे ब्रह्मयोनि तीर्थ कहा गया है । पृथूदक थानेश्वर से १४ मील पश्चिम कर्नाल जिले में स्थित आधुनिक पिहोवा है। वामन ( ३४.३) और नारदीय पुराण ( उत्तरार्द्ध, ६५.४.७ ) में कुरुक्षेत्र के सात वनों - काम्यकवन, अदितिवन, व्यासवन, फलकीवन, सूर्यवन, मधुवन और सीतावन का उल्लेख है जो बहुत पवित्र हैं और पाप का नाश करने वाले हैं । तीर्थों की सूची में कुरुक्षेत्र को सन्तिहती या सन्निहत्य के नाम से अभिहित किया गया है । वामन पुराण ( ३२.३-४ ) के अनुसार सरस्वती का उद्गम प्लक्ष] वृक्ष से हुआ है । वहाँ से कई पहाड़ियों को वेधते हुए वह द्वैतवन में प्रवेश करती है । वामन पुराण ( ३२.६२२ ) में मार्कण्डेय द्वारा सरस्वती की प्रशंसा की गयी है । कुलचूडामणितन्त्र – एक महत्वपूर्ण तन्त्र ग्रन्थ । इसमें ६४ तन्त्रों की सूची दी हुई है, जो 'वामकेश्वरतन्त्र' की सूची से मिलती-जुलती है । कुलशेखर-तमिल वैष्णवों में बारह आलवारों (भक्तकवियों ) के नाम बहुत प्रसिद्ध हैं। कुलशेखर इनमें ही हुए हैं। दे० आलवार स्थानीय परम्परा के अनुसार कुलशेखर का जन्म कलि के आरम्भ में मलावीर के चात्मपट्टन या तिरुमञ्जिक्कोलम् नामक स्थान में हुआ था । उन्होंने 'मुकुन्दमाला' नामक सरस स्तोत्र की रचना की है। कुलसारतन्त्र - 'कुलचूडामणितन्त्र' की सूची में उद्धृत एक ग्रन्थ । इसमें कौल सम्प्रदाय के सिद्धान्तों का संक्षेप में वर्णन किया गया है । कुलार्णव- बहुप्रचलित तन्त्र ग्रन्थ । इसके अनुसार तान्त्रिक । गण कई प्रकार के आचारों में विभक्त है। उनमें वेदाचार सामान्यतः श्रेष्ठ हैं, वेदाचार से वैष्णवाचार महान् है, Jain Education International फुलचूडामणितन्त्र - कुलीनवाद वैष्णवाचार से शैवाचार उत्कृष्ट है, शैवाचार से दक्षिणाचार उत्तम है, दक्षिणाचार से वामाचार प्रशंसनीय है. वामाचार से सिद्धान्ताचार श्रेष्ठ है और सिद्धान्ताचार की अपेक्षा कौलाचार उत्तम है। कौलाचार से उत्तम और कोई आचार नहीं है। इस ग्रन्थ में इन्हीं कौल आचारों और सिद्धान्तों का विस्तृत वर्णन पाया जाता है । कुलालिकाम्नाय - इस तन्त्र ग्रन्थ में भारत के तीन यानों का उल्लेख है : - दक्षिणे देवयानं तु पितृयानं तु उत्तरे । मध्ये तु महायानं विसंज्ञा प्रगीयते ॥ [दक्षिण में देवयान, उत्तर में पितृयान और मध्यदेश में महायान प्रचलित हैं ] इन थानों की विशेषता तो ठीक ठीक मालूम नहीं है, परन्तु महायानी श्रेष्ठ तन्त्र तथागतगुह्यक' से पता लगता है कि रुद्रयामलादि में जिसे वामाचार अथवा कौलाचार कहा गया है वही महायानियों का अनुष्ठेय आचार है । इसी सम्प्रदाय से क्रमश: 'कालचक्रयान' या 'कालोत्तरमहायान' तथा वज्रयान की उत्पत्ति हुई । नेपाल के सभी शाक्त-बौद्ध वज्रयान सम्प्रदाय के हैं । कुलीनवाद 'कुलीन' का मूल अर्थ है श्रेष्ठ परिवार का व्यक्ति । कुलीनवाद का अर्थ हुआ 'पारिवारिक श्रेष्ठता का सिद्धान्त' । इसके अनुसार श्रेष्ठ परिवार में ही उत्तम गुण होते हैं । अतः विवाहादि सम्बन्ध भी उन्हीं के साथ होना चाहिए । धर्मशास्त्र के अनुसार जिस परिवार में लगातार कई पीढ़ियों तक वेद-वेदाङ्ग का अध्ययन होता हो, वह कुलीन कहलाता है । शैक्षणिक प्रतिष्ठा के साथ विवाह सम्बन्ध में इस प्रकार के परिवार बंगाल में श्रेष्ठ माने जाते थे । सेनवंश के शासन काल में कुलीनता का बहुत प्रचार हुआ । विवाह सम्बन्ध में कुलीन परिवारों की प्रतिष्ठा बहुत बढ़ गयी। इस पर बहुत ध्यान दिया जाता था कि पुत्री अपने से उच्च कुल के वर से ब्याही जाय । फल यह हुआ कि कुलीन वरों की माँग अधिक हो गयी और इससे अनेक प्रकार की कुरीतियाँ उत्पन्न हुई । बंगाल में यह कुलीन प्रथा खूब बढ़ी तथा वहाँ एक-एक कुलीन ब्राह्मण ने बहुत ही ऊँचा दहेज लेकर सौ-सौ से अधिक कुमारियों का पाणिग्रहण करते हुए उनका 'उद्धार' कर डाला। शिशुहत्या भी इस प्रथा का एक कुपरिणाम थी, क्योंकि विवाह को लेकर कन्या एक समस्या बन जाती थी। अंग्रेजों ने इस शिशुहत्या को For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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