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________________ कुलेश्वरीतन्त्र-कुल्लूकभट्ट १९३ बन्द कर दिया तथा आधुनिक काल के अनेक सुधारवादी कल्लूकभट्ट-मनुस्मृति की प्रसिद्ध टीका के रचयिता। समाजों को चेष्टा से कुलीनवाद का ढोंग कम होता गया इनका काल बारहवीं शताब्दी है । मेधातिथि और गोविन्दऔर आज यह प्रथा प्रायः समाप्त हो चुकी है। राज के मनुभाष्यों का इन्होंने प्रचुर उपयोग किया है। कुलदीपिका नामक ग्रन्थ में कूल की परिभाषा और इनके अन्य ग्रन्थ है-स्मृतिविवेक, अशौचसागर, श्राद्धकुलाचार का वर्णन निम्नाङ्कित प्रकार से पाया जाता है : सागर और विवादसागर । पूर्वमीमांसा के ये प्रकाण्ड आचारो विनयो विद्या प्रतिष्ठा तीर्थदर्शनम् । पण्डित थे। अपनी टीका 'मन्वर्थमुक्तावली' में इन्होंने निष्ठाऽवृत्तिस्तपो दानं नवधा कुललक्षणम् ॥ लिखा है-"वैदिकी तान्त्रिकी चैव द्विविधा श्रुतिः [ आचार, विनय, विद्या, प्रतिष्ठा, तीर्थदर्शन, निष्ठा, कीर्तिता।" [ वैदिकी एवं तान्त्रिकी ये दो श्रुतियाँ मान्य है। ] इसलिए कुल्लू कभट्ट के मत से तन्त्र को भी श्रुति वृत्ति का अत्याग, तप और दान ये नौ प्रकार के कूल के कहा जा सकता है। कुल्लूक ने कहा है कि ब्राह्मण, लक्षण हैं । ] क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र जातियाँ जो क्रियाहीनता के कुलीनस्य सुतां लब्ध्वा कुनीनाय सुतां ददौ । कारण जातिच्युत हुई है, चाहे वे म्लेच्छभाषी हों चाहे पर्यायक्रमतश्चैव स एव कुलदीपकः ॥ आर्यभाषी, सभी दस्यु कहलाती है। इस प्रकार के कति[ वही कुल को प्रकाशित करनेवाला है जो कुल से पय मौलिक विचार कुल्लूकभट्ट के पाये जाते हैं। कन्या ग्रहण करके पर्यायक्रम से कुल को ही कन्या देता मन्वर्थमुक्तावली की भूमिका में कुल्लूकभट्ट ने अपना है। ] चार प्रकार के कुलकर्म बताये गये हैं : संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दिया है : आदानञ्च प्रदानञ्च कुशत्यागस्तथैव च । गौडे नन्दनवासिनाम्नि सूजनैर्वन्द्ये वरेन्द्रयां कुले प्रतिज्ञा घटकाग्रे च कुलकर्म चतुर्विधम् ।। श्रीमद्भट्टदिवाकरस्य तनयः कुल्लूकभट्टोऽभवत् । [ आदान, प्रदान, कुशत्याग, प्रतिज्ञा और घटकान ये काश्यामुत्तरवाहिजह -तनयातीरे समं पण्डितैस् कुलकर्म कहे गये हैं। ] राजा वल्लालसेन ने पञ्च तेनेयं क्रियते हिताय विदुषां मन्वर्थमुक्तावली ।। गोत्रीय राढीय बाईस कुलों को कुलीन घोषित किया था। गौडदेश के नन्दन ग्रामवासी, सूजनों से वन्दनीय बंगाल में इनकी वंशपरम्परा अभी तक चली आ रही है। वारेन्द्र कुल में श्रीमान् दिवाकर भट्ट के पुत्र कुल्लूक हुए । कुलेश्वरीतन्त्र-यह मिथ तन्त्रों में से एक तन्त्र है। काशी में उत्तरवाहिनी गङ्गा के किनारे पण्डितों के साहकुल्लजम साहेब-अठारहवीं शताब्दी में विरचित सन्त । चर्य में उनके ( कुल्लूकभट्ट के ) द्वारा विद्वानों के हित साहित्य का एक ग्रन्थ । इसके रचयिता स्वामी प्राणनाथ ने के लिए मन्वर्थमुक्तावली ( नामक टीका ) रची जा रही इसमें बतलाया है कि भारत के सभी धर्म एक ही पुरुष है। मेधा तिथि तथा गोविन्दराज के अतिरिक्त अन्य शास्त्र( ईश्वर ) में समाहित हैं। ईसाइयों के मसीहा, मुसल कारों का भी उल्लेख कुल्लूकभट्ट ने किया है, जैसे गर्ग मानों के महदी एवं हिन्दुओं के निष्कलंकावतार सभी ( मनु. २.६ ), धरणीधर, भास्कर ( मनु, १.८,१५), एक ही व्यक्ति के रूप हैं । दे० 'प्राणनाथ' ।। भोजदेव (मनु, ८.१८४ ), वामन ( मनु, १२.१०६), कुल्लू-हिमाचल प्रदेश में ब्यास नदी के तट पर कुल्लू विश्वरूप ( मनु, २.१८९ ) । निबन्धों में कुल्लूक कृत्यनगर स्थित है। यह बहुत सुन्दर स्थान है। यहाँ पठान- कल्पतरु का प्रायः उल्लेख करते हैं । आश्चर्य इस बात का कोट से सीधा मोटरमार्ग भी मण्डी होकर आता है। है कि मन्वर्थमुक्तावली में कुल्लूक ने बंगाल के प्रसिद्ध पठानकोट से कुल्लू एक सौ पचहत्तर मील पड़ता है। निबन्धकार जीमूतवाहन के दायभाग की कहीं चर्चा यह नगर बाजार, रघुनाथ-मन्दिर, धर्मशाला, थाना, नहीं की है। संभवतः वाराणसी में रहने के कारण वे पोस्ट आफिस, बिजली आदि से सम्पन्न है । तुषार- जीमूतवाहन के ग्रन्थ से परिचित नहीं थे । अथवा जीमूतमण्डित गगनचुम्बी भूधरों से वेष्टित यह स्थल समुद्रतल से वाहन अभी प्रसिद्ध नहीं हो पाये थे। ४७०० फुट ऊँचाई पर है। विजयादशमी को यहाँ की कुल्लक भट्ट ने अन्य भाष्यकारों की आलोचना करते विशेष यात्रा होती है और दस दिन तक मेला रहता है। हए अपनी टीका की प्रशंसा की है (दे० पुष्पिका) : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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