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________________ उर्वशीकुण्ड-उशनस्उपपुराण १२७ में पुरूरवा-उर्वशी आख्यान में इसका धर्णन पाया जाता महामाये०' (भविष्योत्तर पुराण)। इस व्रत का उल्का है। ब्राह्मण ग्रन्थों में उर्वशी के ऊपर कई आख्यान है। नाम होने का कारण यह है कि व्रती अपने शत्रु को उल्का कालिदास के नाटक 'विक्रमोर्वशीय' में तो वह नायिका जैसा भयंकर प्रतीत होता है । स्त्री यदि यह व्रत करे तो ही है। इन्द्र अपने किसी भी प्रतिद्वन्द्वी की तपस्या भङ्ग वह अपनी सपत्नी (सौत) के लिए उल्का सी प्रतीत करने के लिए मेनका, उर्वशी आदि अप्सराओं का उपयोग होगी। करता था। उलूक-उल्लू पक्षी, जो लक्ष्मी का वाहन माना गया है। (२) महान् व्यक्तियों को भी जो वश में कर ले, सांसारिक ऐश्वर्य बन्धन का कारण है, जो उसका स्वेच्छा अथवा नारायण महर्षि के ऊरु (जंघा) स्थान में वास करे से वरण करता है, वह पारमार्थिक दृष्टि से उलूक (मूर्ख) उसे उर्वशी कहते हैं । इसकी उत्पत्ति हरिवंश में कही है। लक्ष्मीप्राप्ति की मन्त्रसाधना में इस पक्षी का सहयोग गयी है । उसके अनुसार वह नारायण की जंधा का विदा- लिया जाता है । दे० 'उलूकतन्त्र' । रण करके उत्पन्न हुई थी। यह पक्षी अपनी उग्र बोली के लिए प्रसिद्ध है तथा इसे उर्वशीकुण्ड (चरणपादुका)-बदरीनाथ मन्दिर के पीछे नैऋत्य (दुर्भाग्य का सूचक) भी कहते हैं। पूर्व काल में पर्वत पर सीधे चढ़ने पर चरणपादुका का स्थान आता है। जंगली वृक्षों को अश्वमेधयज्ञ में उलूक दान किये जाते थे, यहीं से नल लगाकर बदरीनाथ मन्दिर में पानी लाया क्योंकि वे वहीं वास करने लगते थे। गया है। चरणपादुका के ऊपर उर्वशीकुण्ड है, जहाँ उशती-उत्तम वाणी, कल्याणमयी वाणी, वेदवाणी: कामभगवान नारायण ने उर्वशी को अपनी जता से प्रकट नाशील, स्नेहमयी महिला : किया था । किन्तु यहाँ का मार्ग अत्यन्त कठिन है। इसी “शूद्रस्येवोशितां गिरम् ।" (भागवत), "जायेव पत्य पर्वत पर आगे कूर्मतीर्थ, तैमिंगिलतीर्थ तथा नरनारायण उशती सुवासाः ।" (महाभाष्य), "उशतीरिव मातरः ।" आश्रम है । यदि कोई सीधा चढ़ता जाय तो वह इसी पर्वत (आर्जन मन्त्र)। के ऊपर से 'सत्पथ' पहँच जायेगा। किन्तु यह मार्ग व्यामिश्र या मोहक वचन : "वर्जयेद् उशती वाचम् ।" दुर्गम है। (महाभारत) उरुगाय-ऋग्वेद के विष्णुसूक्त में कथित विष्णु का एक उशनस् उपपुराण-अठारह महापुराणों की तरह कम से विरुद, जिसका अर्थ है 'जो बहुत लोगों द्वारा गाया जाय।' कम उन्तीस उपपुराण ग्रन्थ हैं। प्रत्येक उपपुराण किसी भगवान् विष्णु अथवा कृष्ण की यह पदवी है : न किसी महापुराण से निर्गत माना जाता है। उनमें जिह्वा सती दार्दुरिकेव सूत न चोपगायत्युरुगायगाथाः । औशनस उपपुराण भी अत्यन्त प्रसिद्ध है । इसके रचयिता [ हे सूत ! जो बहुगेय भगवान् की कथा नहीं कहता उशना अर्थात् शुक्राचार्य कहे जाते हैं। सुनता उसकी जिह्वा दादुर के समान व्यर्थ है । ] उशनस् काव्य-एक भृगु (कवि) वंशज प्राचीन ऋषि, विस्तीर्ण गति के लिए भी इसका प्रयोग हुआ है, जैसे शुक्राचार्य । ऋग्वेद में इनका सम्बन्ध कुत्स एवं इन्द्र से कठोपनिषद् (२.११) में कहा है : दिखलाया गया है। पश्चात् इन्होंने असुरों का पुरोहितस्तोमं महदुरुगायं प्रतिष्ठां दृष्ट्वा धृत्या धीरो नचिकेतो पद ग्रहण किया, उन्होंने देवों से प्रतिद्वंद्विता कर ली। ऽत्यस्राक्षीः । इनके नाम से राजनीति का सम्प्रदाय विकसित हुआ, [ हे नचिकेता ! तुमने स्तुत्य और बड़ी ऐश्वर्ययुक्त, जिसको कौटिल्य ने औशनस कहा है । दे० अर्थशास्त्र । इसके विस्तृत गति तथा प्रतिष्ठा को देखकर भी उसे धैर्यपूर्वक अनुसार केवल दण्डनीति मात्र ही विद्या है, जबकि अन्य त्याग दिया। लोग आन्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता को मिलाकर चार विद्यायें उल्कानवमी-एक प्रकार का अभिचार व्रत, जो आश्विन मानते थे। कौटिलीय अर्थशास्त्र के अनेक स्थलों पर शुक्ल पक्ष की नवमी को किया जाता है। इस तिथि से उशना का उल्लेख हुआ है । ये घोर राजनीतिवादी थे । प्रारम्भ करके एक वर्षपर्यन्त इसमें महिषासुरमदिनी की चरकसंहिता (८.५४) में भी 'औशनस अर्थशास्त्र' का उल्लेख निम्नलिखित मन्त्र से पूजा करनी चाहिए : "महिषनि है । महाभारत के शान्तिपर्व (५६, ४०-४२; १८०,१०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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