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________________ १२८ उशना (स्मृतिकार)-उषःकाल में उशना के राजनीतिक विचारों का उद्धरण मिलता है। परम्परा के अनुसार उशना ने बृहस्पतिप्रणीत विशाल ग्रन्थ का एक संक्षिप्त संस्करण तैयार किया था, जो कालक्रम से लुप्त हो गया। कुछ लोगों का मत है कि 'शुक्रनीतिसार' उसी का लघु संस्करण है। उशना (स्मतिकार)-यद्यपि मुख्य स्मृतियाँ अठारह हैं, किन्तु इनकी संख्या २८ तक पहुँच जाती है। स्मतिकारों में उशना भी एक हैं। इस स्मृति में जाति एवं वृत्ति का विधान और अनुलोम-प्रतिलोम विवाहों से उत्पन्न संकरजातियों का विचार किया गया है । उशना-यह नाम शतपथ ब्राह्मण (३.४; ३.१३;४.२; ५.१५) में उस क्षुप (पौधे) के अर्थ में व्यवहृत हुआ है जिससे सोमरस तैयार किया जाता था । उषा-यह शब्द 'वस्' धातु से बना है, जिसका अर्थ 'चमकना' है। इसकी दूसरी व्युत्पत्ति है 'ओषंति नाशयत्यन्धकारम्' (अन्धकार को नाशती है) । प्रकृति के एक अत्यन्त मनोरम दृश्य अरुणोदय के रूप में उषा का वर्णन एक युवती महिला के रूप में कवियों ने किया है। वैदिक सूक्तों के अन्तर्गत उषा का निरूपण सुन्दरतम रचना मानी जाती है, जहाँ इन्द्र का गुण बल, अग्नि का गुण पौरोहित्य-ज्ञान तथा वरुण का गुण नैतिक शासन है । उषा का गुण उसका स्त्रीसुलभ आकर्षक स्वरूप है। उषा का वर्णन २१ ऋचाओं में हुआ है। एक ही उषा देवी का प्रातःकालीन बेलाओं में देखा जाने वाला विविध शोभामय रूप है । वह सुन्दर युवती है, सुन्दर वस्त्रों से अलंकृत है तथा सुजाता है। वह मुस्कराती, गाती एवं नाचती है तथा अपने मनमोहक रूप को दिखाती है । यदि इन्द्र राजा का प्रतिनिधित्व करता है तो उषा तदनुरूप महिला रानी की प्रतिनिधि है। उषा रात्रि के काले वस्त्रों को दूर करती है, बुरे स्वप्नों को भगाती, बुरी आत्माओं (भूत-प्रेतादि) से रक्षा करती है । वह स्वर्ग का द्वार खोल देती, आकाश के छोर को प्रकाशित करती तथा प्रकृति के भण्डारों को, जिन्हें रात छिपाये रखती है, स्पष्ट कर देती है तथा सभी के लिए सदयता से उन्हें बिखेर देती है। उषा वरदान की देवी है। जब उसका प्रातः उदय होता है, प्रार्थना की जाती है-"दानशीलता का उदय करो, प्राचुर्य का उदय करो।" वह क्षण-क्षण रूप बदलने वाली महिला है, क्योंकि हर क्षण वह अपना नया आकर्षण सभी के लिए उपस्थित करती है। हर प्रातःकाल वह अपने इस रूप के भण्डार को लटाती तथा हर एक को उसका 'भाग' प्रदान करती है। उषा का नियमित रूप से पूर्व में उदय उसे 'ऋत' का रूप प्रमाणित करता है। वह 'ऋत' में उत्पन्न हुई तथा ऋत की रक्षा करने वाली है। वह ऋत की उपेक्षा न करते हुए नित्य उसी स्थान पर आती है । उषा का पूर्व में उदय प्रत्येक उपासक को जगाता है कि वह अपने यज्ञाग्नि को प्रज्वलित करे। ___ उषा का सूर्य से निकट का सम्बन्ध है। सूर्य के पूर्व उदित होने के कारण, इसे सूर्य की माता कहा गया है । किन्तु सूर्य उषा का पीछा उसी प्रकार करता है, जैसे नवयुवक युवती का । इस दृष्टिबिन्दु से उषा सूर्य की पत्नी कहलाती है। इन्द्र का प्रकटीकरण बादल की गरज एवं विद्य त्-ध्वनि में होता है। उषा अपनी प्रातःकालीन पूर्वी लालिमा (सुनहरे रंग) के रूप में उसी प्रकार सुकुमार स्त्री रूपिणी है, जैसे इन्द्र कठोर एवं पुरुष रूपी । अग्नि वैदिक पुरोहित, इन्द्र वैदिक योद्धा एवं उषा वैदिक नारी है। पौराणिक कल्पना में उषा सूर्य की पत्नियोंसंज्ञाछाया, उषा और प्रत्यूषा में से एक है । सूर्य की परिवार मूर्तियों में इसका अंकन होता है और सूर्य के पार्श्व में यह अन्धकार रूपी राक्षसों पर बाणप्रहार करती हुई दिखायी जाती है। [दे० ऋ० ४.५१; १.११३; ७.७९; १.२४; ४.५४; १.११५; १०.५८ ।] उषःकाल-(१) सूर्योदय से पाँच घड़ी पूर्व का काल अथवा पूर्व दिवसीय सूर्योदय से ५५ घड़ी बाद का समय । यथा पञ्च पञ्च उषःकालः सप्त पञ्चारुणोदयः । अष्ट पञ्च भवेत् प्रातः शेषः सूर्योदयो मतः ।। [पहले दिन की ५५ घड़ी बीतने पर उषःकाल, ५७ घड़ी बीतने पर अरुणोदय और ५८ घड़ी के बाद सूर्योदय काल माना गया है। ] (कृत्यसारसमुच्चय) । उषःकाल का धार्मिक कृत्यों के लिए बड़ा महत्त्व है। (२) रात्रि का अवसान भी उषःकाल कहलाता है। वह नक्षत्रों के प्रकाश की मन्दता से लेकर सूर्य के अर्धोदय तक रहता है । तिथितत्त्व में वराह का कथन है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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