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________________ १२६ करना चाहिए, किन्तु चतुर्दशी को ही संकल्प कर लेना चाहिए। इसमें स्वर्ण अथवा रजत की शिव तथा पार्वती की प्रतिमाओं के पूजन का विधान है। यह कर्णाटक में अत्यन्त प्रसिद्ध है । (२) पूर्णिमा, अमावस्या, चतुर्दशी अथवा अष्टमी को इसे प्रारम्भ करना चाहिए। उमा तथा शिव का पूजन होना चाहिए । हविष्यान्न के साथ नक्त का भी विधान है । (३) अष्टमी अथवा चतुर्दशी तिथियों को प्रारम्भ करना चाहिये। व्रती को अष्टमी तथा चतुर्दशी को एक वर्षपर्यन्त उपवास रखना चाहिये । (४) मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि, वही देवता । (५) मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया को इस व्रत का आरम्भ होना चाहिए। एक वर्षपर्यन्त । वही देवता । दे० भवि ष्योत्तरपुराण, २३.१-२८, लिङ्गपुराण, पूर्वार्द्ध ८४ । व्रतार्क, हेमाद्रि, प्रखंड उमायामलतन्त्र - शाक्त साहित्य के कुलचूडामणि' एवं 'वामकेश्वर' तन्त्रों में तन्त्रों की तालिका है, जिसमें तीन प्रकार के तन्त्र उल्लिखित हैं-आठ भैरव, आठ बहुरूप एवं आठ यामल । यामल के अन्तर्गत ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, लक्ष्मी, उमा, स्कन्द, गणेश एवं ग्रह यामल तन्त्र हैं । यामल शब्द यमल से बना है, जिसका अर्थ है 'जोड़ा' । इसका सन्दर्भ एक देवता तथा उसकी शक्ति के युगल सहयोग से है । उमावन-उमा के बिहार का काम्यक वन पुरविशेष उसके पर्याय है- (१) देवीकोट, (२) कोटिवर्ष (३) बाणपुर, (४) शोणितपुर | उमावन ( काम्यकवन) में ही शिव-पार्वती (उमा) का विवाहोत्तर विहार हुआ था । इस वन के सम्बन्ध में शिव का शाप था कि जो कोई पुरुष इसमें प्रवेश करेगा वह स्त्री हो जायेगा। मनु के पुत्र इल भूल से इस वन में चले गये । वे शाप के कारण तुरन्त स्त्री 'इला' बन गये । उमासंहिता - शिवपुराण की रचना में कुल सात खण्ड है। इसका पाचवा खण्ड 'उमासंहिता' है। उमासुत - उमा के पुत्र कार्तिकेय या गणेश । उमा हैमवती - जिस प्रकार शिव ( गिरीवा) पर्वतों के स्वामी कहे जाते हैं, वैसे ही उनकी पत्नी पार्वती (पर्वतों की पुत्री) कहलाती हैं। शिव ने हिमालय की पुत्री उमा से विवाह Jain Education International उमायामलतन्त्र - उर्वरा किया । केनोपनिषद् (३.२५) में वे प्रथम बार उमा हैमवती कही गयी हैं, जिससे एक स्वर्गीय (दिव्य ) महिला का बोध होता है, जो ब्रह्मज्ञानसम्पन्ना हैं । स्पष्टतः, ये प्रथमतः एक स्वतन्त्र देवी थीं अथवा कम से कम एक दैवी शक्ति थीं, जो हिमालय का चक्कर लगाया करती थीं और पश्चात् उन्हें द्र की पत्नी समझा जाने लगा । केनोपनिषद् में उमा हेमवती ने देवताओं की शक्ति का उपहास करते हुए सभी शक्तियों के स्रोत ब्रह्म का प्रति पादन किया है । उमेश — उमा के पति, महादेव । उर्वरा - कृषि योग्य भूमि को व्यक्त करने के लिए क्षेत्र के साथ उर्वरा शब्द का प्रयोग ऋग्वेद तथा परवर्ती साहित्य में होता आया है। ऋग्वेद एवं अथर्ववेद में सिंचाई की सहायता से गहरी कृषि का उल्लेख मिलता है। खाद देने का भी वर्णन है । ऋग्वेद के अनुसार क्षेत्र भलीभाँति मापे जाते थे जिससे खेतों पर व्यक्तिगत स्वामित्व का पता चलता है। क्षेत्रों की विजय उर्वरा-सा 'उर्वरा जित्', 'क्षेत्र-सा' का भी उल्लेख है, साथ ही 'क्षेत्रपति' नामक एक देवता की कल्पना में 'उर्वरापति' एक मानवीय उपाधि का आरोप है। ऋग्वेद में क्षेत्रों का उल्लेख संतान के उल्लेख के साथ ही हुआ है तथा संहिताओं में 'क्षेत्राणि संजि' अर्थात् क्षेत्रों की विजय का उल्लेख है। क्षेत्रों से सीमित 1 । वेदों में साम्प्र सह स्वामित्व का पिशेल के मतानुसार क्षेत्र घास के होता था, जिसे खिल्ल या खिल्य कहते दायिक खेती का उल्लेख या सामूहिक उल्लेख नहीं मिलता । व्यक्तिगत स्वामित्व भी उत्तरकालीम है छान्दोग्य उप० में धन को व्यक्त करने वाले पदार्थों में क्षेत्र एवं घर कहे गये ( आयतनानि ) हैं । यवन लेखकों के उद्धरणों से भी व्यक्तिगत स्वामित्व का पता लगता है। प्रायः एक परिवार के सदस्य एक भूभाग में बिना विभाजन के सह स्वामित्व रखते थे। स्वामित्व के उत्तराधिकार सम्बन्धी नियमों का सूत्रों के पूर्व अस्तित्व नहीं था । शतपथ ब्राह्मण में पुरोहित को पारिश्रमिक रूप में भूमि दान करने का उल्लेख है । फिर भी भूमि एक विशेष धन थी जिसे आसानी से किसी को न तो दिया जा सकता था और न उसे त्यागा जा सकता था । उर्वशी - ( १ ) स्वर्गीय अप्सरा, जिसका उल्लेख संस्कृत साहित्य में अनेक स्थलों पर हुआ है । सर्वप्रथम ऋग्वेद For Private & Personal Use Only थे www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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