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________________ ९२ आर्य समाज-आर्यावर्त मत देने का अधिकार प्राप्त है, जो स्थायी सदस्य होते हैं। थो, यद्यपि अजमेर में स्वामी दयानन्द की निर्माणस्थली अस्थायित्व काल एक वर्ष का होता है। सहानुभूति एवं वैदिक-यन्त्रालय (प्रेस) होने से वह लाहौर का प्रतिदर्शाने वालों की भी एक अलग श्रेणी है। द्वन्द्वी था । लाहौर के पाकिस्तान में चले जाने के पश्चात् स्थानीय समाज के निम्नांकित पदाधिकारी होते है- आर्यसमाज का मुख्य केन्द्र आजकल दिल्ली है। सभापति, उपसभापति, मंत्री, कोशाध्यक्ष और पुस्तकालया- _जहाँ तक इसके भविष्य का प्रश्न है, कुछ ठीक नहीं ध्यक्ष। ये सभी स्थायी सदस्यों द्वारा उनमें से ही चुने जाते कहा जा सकता। यह उत्तर भारत की सबसे मूल सुधारहैं । प्रान्तीय समाज के पदाधिकारी इन्हीं समाजों के प्रति- वादी एवं लोकप्रिय संस्था है। स्त्रीशिक्षा, हरिजनसेवा, निधि एवं भेजे हुए सदस्य होते हैं। स्थानीय समाज के । अश्पृश्यता-निवारण एवं दुसरे सुधारों में यह प्रगतिशील प्रत्येक बीस सदस्य के पीछे एक सदस्य को प्रान्तीय समाज है । वेदों को सभी धर्म का मूल आधार एवं विश्व के में प्रतिनिधित्व करने का अधिकार है। इस प्रकार इसका विज्ञान का स्रोत बताते हुए, यह देशभक्ति को भी स्थापना, गठन प्रतिनिधिमूलक है। करता है । इसके सदस्यों में से अनेक ऐसे हैं जो वास्तविक पूजा पद्धति-साप्ताहिक धार्मिक सत्संग प्रत्येक रविवार देशहितैषी एवं देशप्रेमी है। शिक्षा तथा सामाजिक को प्रातः होता है, क्योंकि सरकारी कर्मचारी इस दिन सुधार द्वारा यह भारत का खोया हुआ पूर्व-गौरव लाना छुट्टी पर होते हैं। यह सत्संग तीन या चार घण्टे का चाहता है। होता है । भाषण करने वाले के ठीक सामने पूजास्थान में आर्यावर्त-इसका शाब्दिक अर्थ है 'आर्या आवर्तन्तेऽत्र' - वैदिक अग्निकुण्ड रहता है। धार्मिक पूजा हवन के साथ आर्य जहाँ सम्यक् प्रकार से बसते है । इसका दूसरा अर्थ प्रारम्भ होती है। साथ ही वैदिक मन्त्रों का पाठ होता है 'पुण्यभूमि' । मनुस्मृति (२.२२) में आर्यावर्त की परिहै । पश्चात् प्रार्थना होती है। फिर दयानन्द-साहित्य का भाषा इस प्रकार दी हुई है : प्रवचन होता है, जिसका अन्त समाजगान से होता है। ___ आसमुद्रात्तु वै पूर्वादासमुद्रात्तु पश्चिमात् । इसमें स्थायी पुरोहित या आचार्य नहीं होता। योग्य तयोरेवान्तरं गिर्योरार्यावतं विदुर्बधाः ॥ सदस्य अपने क्रम से प्रधान वक्ता या पूजा-संचालक का [पूर्व में समुद्र तक और पश्चिम में समुद्र तक, (उत्तर स्थान ग्रहण करते हैं। दक्षिण में हिमालय, विन्ध्याचल) दोनों पर्वतों के बीच कार्यप्रणाली-आर्य समाज दूसरे प्रचारवादी धर्मों के अन्तराल (प्रदेश) को विद्वान् आर्यावर्त कहते हैं । ] मेधासमान भाषण, शिक्षा, समाचार पत्र आदि की सहायता से तिथि मनुस्मृति के उपर्युक्त श्लोक का भाष्य करते हए अपना मत-प्रचार करता है। दो प्रकार के शिक्षक है, लिखते हैं : प्रथम वेतनभोगी और द्वितीय, अवैतनिक । अवैतनिक में "आर्या आवर्तन्ते तत्र पुनः पुनरुद्भवन्ति । स्थानीय वकील, अध्यापक, व्यापारी, डाक्टर आदि आक्रम्याक्रम्यापि न चिरं तत्र म्लेच्छाः स्थातारो भवन्ति ।" लोग होते हैं, जबकि वेतनभोगी सम्पूर्ण समय देने वाले [आर्य वहाँ बसते हैं, पुनः पुनः उन्नति को प्राप्त शास्त्रज्ञ और विद्वान् प्रचारक होते हैं। पहला दल शिक्षा होते हैं। कई बार आक्रमण करके भी म्लेच्छ (विदेशी) पर जोर देता है; दूसरा दल उपदेश और संस्कार पर स्थिर रूप से वहाँ नहीं बस पाते ।] बल देता है। आर्यसमाज का प्रत्येक संगठन कुछ आजकल यह समझा जाता है कि इसके उत्तर में हाईस्कूल, गुरुकुल, अनाथालय आदि की व्यवस्था हिमालय शृंखला, दक्षिण में विन्ध्यमेखला, पूर्व में पूर्वकरता है। सागर (वंग आखात) और पश्चिम में पश्चिम पयोधि यह मुख्यतः उत्तर भारतीय धार्मिक आन्दोलन है यद्यपि (अरब सागर) है। उत्तर भारत के प्रायः सभी जनपद इसके कुछ केन्द्र दक्षिण भारत में भी हैं। बरमा तथा पूर्वी इसमें सम्मिलित है । परन्तु कुछ विद्वानों के विचार में अफ्रीका, मारीशस, फीजी आदि में भी इसको शाखाएँ हिमालय का अर्थ है पूरी हिमालय शृङ्खला, जो प्रशान्त है जो वहाँ बसे हुए भारतीयों के बीच कार्य करती हैं। महासागर से भूमध्य महासागर तक फैली हुई है और आर्य समाज का केन्द्र एवं धार्मिक राजधानी लाहौर में जिसके दक्षिण में सम्पूर्ण पश्चिमी एशिया और दक्षिण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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