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________________ ४२ जैन आगम वाद्य कोश वाद्यों में इसे श्री मंडल, थाली तरंग, घंटी बाजा, सुनाली आदि नामों से जाना जाता हैं। इसे मुख्य रूप से विवाह के अवसरों एवं लोक संगीत में बजाया जाता है। सदुय (सदुय) निसि. १७/१३६ सदुय, डक्का, डंका। आकार-हुडुक्का सदृश। विवरण-यह वाद्य हुडुक्का जाति का ही एक वाद्य है। संगीत ग्रंथों में डक्का के नाम से इसका उल्लेख प्राप्त होता है। यह एक वालिस्त लम्बा एवं भीतर से पोला काष्ठ का बना होता है। इसका मध्य भाग पतला तथा दोनों मुखों का विवरण-प्राचीन वाद्यों में शृंग वाद्यों का विशेष व्यास आठ अंगुल का होता है। महत्त्व रहा हैं और हैं। यह प्राचीन सींग वाद्य इसके दोनों मुखों पर चार-चार तांबे की कीलें पहले बैल के और बाद में धातु के बनने लगे। रखी जाती हैं, जिनमें दो उर्ध्वमुखी तथा दो प्राचीन यहूदी ग्रंथों में बकरी अथवा मेंढ़े के सींग अधोमुखी होती हैं। इन कीलों में दो-दो तांतें बांधी के प्रयोग का वर्णन मिलता है। इनके सींग को जाती हैं। इनके दोनों मुख हुडुक्का की भांति चमड़े भांप में गर्म करके बनाया जाता था ताकि यह से मढे जाते हैं। इसका बारह अंगुल की शलाका कोमल हो जाये तथा इसकी भीतरी मज्जा निकल लेकर दाहिने हाथ से वादन किया जाता है। बायें जाये और सींग मुड़ जाये। नववर्ष के अवसर पर हाथ में हाथी दांत का एक टुकड़ा, जो जवा की मंदिरों में बजाया जाने वाला सींग बकरी का होता भांति होता है, लेकर तांतों को बजाया जाता है। था, जिसका नल सोने से मढ़ा जाता था। उपवास इसमें हुडुक्का के ही पाटाक्षर होते हैं। के दिनों में बजने वाले सींग मेंढ़े, गोल और चांदी संगीत ग्रंथों में इसके निर्माण एवं वादन विधि के से मढ़े नल वाले होते थे। अनुसार इसे तत् और अवनद्ध दोनों वाद्यों का रूप आदिवासी जीवन व्यवहार में शृंग शब्द का प्रचुर माना है। प्रयोग हुआ है। उदाहरणार्थ भील इसे सींग कहते लोक भाषा में यह सदुय, डक्का, डंका के नाम से हैं। मध्यप्रदेश के मड़िया इसे कोहुक कहते हैं। जाना जाता है। उत्तर-पूर्व के आदिवासी क्षेत्र में 'अगामी' और ल्होटा नागाओं द्वारा भैंसों के सींग का प्रयोग होता है जिसे अंशामी-रेलिकी कहते हैं। वह आधा सिंग (शृंग) राज. ७७ मीटर लम्बा होता है और नल या माउथ पीस की शृंग, सिंगि, कोहुक (म. प्र.), सींग। तरह काम आने के लिए उसमें बांस की एक छोटी आकार-गोल, लम्बे, विभिन्न आकार के। सी नली लगी होती है। संथालों के पास 'साकना' For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016097
Book TitleJain Agam Vadya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size5 MB
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